भारत की अधिकांश विकट समस्याएं हिन्दू-मुस्लिम संबंधों से जुड़ी रही हैं। खलीफत आंदोलन से शुरू होकर सांप्रदायिक दंगे, देश-विभाजन, कश्मीर, पाकिस्तान से चार युद्ध, जिहादी आतंकवाद, सेक्यूलर-सांप्रदायिक विवाद, अयोध्या-काशी-मथुरा पर अतिक्रमण, अल्पसंख्यक तुष्टीकरण से लेकर अभी चल रहे ‘नागरिकता संशोधन कानून’ पर विरोध, हर समस्या की मूल फाँस वहीं है, लेकिन इसे यथावत् छोड़कर सारी […]
लेखक: डॉ शंकर शरण
लगभग आरंभ से ही कम्युनिस्टों को अपनी वैज्ञानिक विचारधारा और प्रगतिशील दृष्टि का घोर अहंकार रहा है। लेकिन अनोखी बात यह है कि इतिहास व भविष्य ही नहीं, ठीक वर्तमान यानी आंखों के सामने की घटना-परिघटना पर भी उनके मूल्यांकन, टीका-टिप्पणी, नीति, प्रस्ताव आदि प्राय: मूढ़ता की पराकाष्ठा साबित होते रहे हैं। यह न तो […]
शंकर शरण वर्ष २००८ में भारत में मौलाना अबुल कलाम आजाद के जन्मदिन 11 नवंबर को ‘राष्ट्रीय शिक्षा दिवस’ घोषित किया था। यह भारत के शैक्षिक-सांस्कृतिक पतन का ठोस प्रमाण है, कि शिक्षा के ऐसे क्षुद्र राजनीतिकरण पर भी कोई आवाज नहीं उठी। उलटे अधिकांश बौद्धिक हर साल इस दिन को मौलाना आजाद का गुणगान […]
( लेखक : डॉ० शंकर शरण ) ——————————————– हमारे अनेक बुद्धिजीवी एक भ्रांति के शिकार हैं, जो समझते हैं कि गौतम बुद्ध के साथ भारत में कोई नया ‘धर्म’ आरंभ हुआ। तथा यह पूर्ववर्ती हिन्दू धर्म के विरुद्ध ‘विद्रोह’ था। यह पूरी तरह कपोल-कल्पना है कि बुद्ध ने जाति-भेदों को तोड़ डाला, और किसी समता-मूलक […]
धार्मिक अनुष्ठानों में फेथ चल सकता है मगर राजनीति में नहीं। इसमें घालमेल के कारण ही खुद इस्लामी समाज सदैव हिंसाग्रस्त रहे हैं। वास्तव में आम मुसलमानों को भड़का कर राजनीतिक इस्लाम का दावा बुलंद रखा जाता है। मुल्लाओं को छोड़ हर वर्ग के लोग हजारों की संख्या में अफगानिस्तान से भागने के लिए बदहवास […]
अनुसूचित जाति-जनजाति संबंधित (अत्याचार निरोधक) कानून को सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुधारने, फिर उसे संसद द्वारा संशोधित कर यथावत कर देने और नए संशोधित कानून को पुन: सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का मसला गरम है। बहस हो रही है कि क्या कोर्ट द्वारा उस कानून के अंतर्गत गैर-जमानती गिरफ्तारी वाला प्रावधान सुधारना अनुसूचित जातियों के […]
———————————————— 1950 ई. में बने भारतीय संविधान की “प्रस्तावना” ने भारत को ‘लोकतांत्रिक गणराज्य’ कहा था। उस में छब्बीस वर्ष बाद दो भारी राजनीतिक शब्द जोड़ दिये गये – ‘सेक्यूलर’ और ‘सोशलिस्ट’ । तब से भारत को ‘लोकतांत्रिक समाजवादी सेक्यूलर गणराज्य’ कर डाला गया। अब सुप्रीम कोर्ट डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी की याचिका पर सुनवाई करने […]
———————————————— गत सौ सालों में अंतर्राष्ट्रीय इस्लामी उग्रवाद को खाद-पानी देने में सब से बड़ी भूमिका भारत के हिन्दू नेताओं की है। पहली बार, 1920-22 में तुर्की में इस्लामी खलीफा की गद्दी बहाल करने का आंदोलन महात्मा गाँधी ने चलाया, जब कि खुद तुर्की और अरब में वातावरण खलीफा के विरुद्ध था। अंततः स्वयं तुर्की […]
लेखक डॉ. शंकर शरण (लेखक राजनीतिशास्त्र के प्रोफेसर एवं वरिष्ठ स्तंभकार हैंl) साभार:: दैनिक जागरण 05.08.22 देश में एक समुदाय के लोगों की चुन-चुन कर हत्याएं पुरानी चुनौती का ही नया रूप हैं। इसे नई प्रेरणा सत्ताधारी दल के एक विवेकहीन फैसले से मिली। वास्तव में यह दशकों से जारी अन्याय है कि राज्यतंत्र विभिन्न […]
डॉ. शंकर शरण इन दिनों यूरोप और अमेरिका में ब्लासफेमी यानी ईशनिंदा रोकने के लिए कानून बनाने पर विवाद हो रहा है। एक ओर राजनीतिक इस्लाम के सिद्धांत, व्यवहार और इतिहास के प्रति चेतना बढ़ रही है, तो दूसरी ओर “इस्लामोफोबिया” यानी इस्लाम से डराने का आरोप बढ़ रहा है। हाल में संयुक्त राष्ट्र की […]