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विशेष संपादकीय वैदिक संपत्ति

मनुष्य का आदिम ज्ञान और भाषा-7

गतांक से आगे….नौकरों की हालत इस विज्ञापन से ज्ञात हो जाती है और पता लग जाता है कि नौकरों की कितनी खुशामद करनी पड़ती है। इस वर्णन से स्पष्ट हो रहा है कि अब नौकरों के द्वारा विलास की वृद्घि नही की जा सकती। यह तो नौकरों का हाल हुआ। अब जरा कारखानों के बारे […]

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विशेष संपादकीय

‘नीरो’ का बांसुरीवादन

अथर्ववेद (3/4/2) में आया है :-ततो न उग्रो विभजा वसूनि।यहां राजा से उसकी प्रजा कह रही है कि तू तेजस्वी होकर हमारे लिए धन का समुचित और यथोचित विभाग कर, अर्थात हमारे खान-पान, ज्ञान-विज्ञान, परिधान आदि के लिए जितना-जितना जिसके लिए आवश्यक है, उतना-उतना उसे दे।वेद का यह मंत्र स्पष्ट कर रहा है कि राष्ट्र […]

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विशेष संपादकीय वैदिक संपत्ति

मनुष्य का आदिम ज्ञान और भाषा-6

गतांक स आग….अनुभवी लोग कहत हैं कि कृत्रिम साधनों क उपयोग स स्त्रियों को कंसर आदि रोग हो जात हैं। स्त्रियों क कोमल स कोमल मज्जातंतुओं पर इन कृत्रिम साधनों का बहुत खराब असर होता है, जिसस अनकों रोग उत्पन्न होत हैं। बहुत स प्रतिष्ठित डॉक्टरों का कहना है कि इन कृत्रिम साधनों क कारण […]

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विशेष संपादकीय

हमारे दरवाजे पर उत्पात मचाती प्रलय

वेद-मत का प्रचार प्रसार करना महर्षि दयानंद जी महाराज का जीवनोद्देश्य था। उनके सत्प्रयासों और कठोर तपस्वी जीवन के परिणाम स्वरूप मिथ्या-पंथों-संप्रदायों एवं मत मतांतरों के मठाधीशों के हृदय की धड़कनें बढ़ गयी थीं। क्योंकि सबको अपने मिथ्यावाद की चूलें हिलती दिख रही थीं। अंग्रेजों के ईसाई पादरी भी महर्षि के शुद्घि अभियान और शास्त्रार्थ […]

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विशेष संपादकीय वैदिक संपत्ति

मनुष्य का आदिम ज्ञान और भाषा-5

गतांक से आगे….पाश्चात्य विद्वानों ने इतनी लंबी स्कीम देखकर और वर्तमान भौतिक अंधाधुंध से आरी आकर जो विचार प्रकट किये हैं, उन्हें हम ‘कुदरत की ओर लौटो’ नामी पुस्तक से लेकर बहुत कुछ लिख चुके हैं। अब आगे उन्हीं सिद्घांतों की पुष्टि में भिन्न भिन्न विद्वानों ने जो अन्य पुस्तकें और लेख लिखे हैं, उनके […]

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विशेष संपादकीय

हमारा कत्र्तव्यबोध और गौमाता

गाय की रीढ़ की हड्डी में सूर्यकेतु नाड़ी होती है। यह नाड़ी गाय के रक्त में स्वर्णक्षार बनाती है। यही स्वर्णक्षार पीले पीले सुनहरे रंग में हमें गाय के दूध घी आदि में स्पष्ट दीखता है। यही कारण है कि गौदुग्ध का सेवन करने वाले व्यक्ति के रंग से स्वर्णिम आभा झलकने लगती है। भारत […]

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विशेष संपादकीय वैदिक संपत्ति

मनुष्य का आदिम ज्ञान और भाषा-4

गतांक से आगे….चसोने के लिए तो घास और लकड़ी के बने हुए सादे झोंपड़े ही उत्तम हैं। ये झोंपड़े खुली वायु में जहां सघन वृक्षावलि और काफी रोशनी मिलती हो बनाने चाहिए। जमीन पर मुलायम घास बिछाकर अथवा रेतीली मिट्टी बालू बिछाकर सोना उत्तम है। मिट्टी के स्नान से दाह और अन्य पुराने रोग भी […]

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विशेष संपादकीय वैदिक संपत्ति

मनुष्य का आदिम ज्ञान और भाषा-3

गतांक से आगे….उनकी भौतिक प्रवृत्ति से यही प्रतीत होता है कि न उनका कोई पशु है न पक्षी। जो है वह मारकर खाने के ही लिये हैं। इसी तरह न उनका कोई इष्टमित्र है न नौकर चाकर। जो है वह अपना स्वार्थ साधन करने के लिए अथवा अपना काम कराने के लिए। इसी तरह न […]

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विशेष संपादकीय

भद्रपुरूष बनाम जैंटलमैन

अंग्रेजी के जैंटलमैन को हिंदी के ‘भद्रपुरूष’ (भले आदमी) का समानार्थक मानने की भूल उसी प्रकार की जाती है जिस प्रकार रिलीजन को धर्म का पर्यायवाची मानकर की जाती है। ‘भले आदमी’ को किसी के विषय में इस प्रकार प्रयोग किया जाता है जैसे वह दिमागी रूप से कमजोर हो या किसी प्रकार से भी […]

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विशेष संपादकीय वैदिक संपत्ति

मनुष्य का आदिम ज्ञान और भाषा-2

वैदिक संपत्तिउपक्रम : संसार के सभी मनुष्य सुख शांति चाहते हैं और उसको प्राप्त करने के लिए अपनी परिस्थिति के अनुसार कभी भौतिक और कभी आध्यात्मिक साधनों के द्वारा प्रयत्न भी करते हैं। परंतु उनकी सुख शांति का आदर्श वही होता है, जिससे कि वे प्रभावित होते हैं, और उसी प्रकार के ही प्रयत्नों का […]

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