वेद के मन्त्र ‘ओ३म् समिधाग्निं दुवस्यत घृतैर्बोधयतातिथिम्। आस्मिन् हव्या जुहोतन स्वाहा।। इदमग्नयेे-इदन्न मम।।’ में कहा गया है कि विद्वान लोगों ! जिस प्रकार प्रेम और श्रद्धा से अतिथि की सेवा करते हो, वैसे ही तुम समिधाओं तथा घृतादि से व्यापनशील अग्नि का सेवन करो और चेताओ। इसमें हवन करने योग्य अच्छे द्रव्यों की यथाविधि आहुति […]
Author: देवेंद्र सिंह आर्य
लेखक उगता भारत समाचार पत्र के चेयरमैन हैं।
मनुष्य जीवन में यज्ञ का महत्व
मनुष्य के द्वारा भिन्न भिन्न प्रकार के जाप और तप किए जाते हैं , जिनमें यज्ञ भी एक प्रकार का साधन है। यज्ञ सृष्टि के आदि काल से अर्थात स्वाम्भुवमनु के काल से प्रचलन में है। हमारे पूर्वज ऋषि – महर्षियों ने यज्ञ को पूजा की सर्वाधिक प्राचीन पद्धति बताया है । वेदों में अग्नि […]
सभ्य आचरण और समय का मूल्य
एक मनुष्य अपने जीवन में जितने कर्म एवं क्रियाएं करता है उनका संबंध इच्छा, संवेग ,भावना आदि से न रखते हुए ज्ञान, बुद्धि और विवेक से स्थापित करना चाहिए। यह सभी कर्म क्रियाएं तात्कालिक रूप से अभ्यांतर में अथवा कुछ समय पश्चात मनुष्य के जीवन में दूसरे मनुष्यों को प्रभावित करती हैं । जिनसे दूसरे […]
वास्तविक संपत्ति और मित्रता
जब दुनिया में आए हो तो कुछ ना कुछ जोड़ा भी अवश्य होगा। कितनी संपत्ति जोड़ दी ? कितने मकान बना दिए ? कौन-कौन से बेटे के लिए क्या क्या कर दिया ? हमारी जीवन भर यही सोच बनी रही कि उनके लिए धन-संपत्ति जोड़कर जाना है ।उससे अगले आने वाली पीढ़ी के लिए भी […]
आज समय नहीं सोने का है , आज समय नहीं खोने का है, युग के प्रहरी जाग कि मंजिल तेरी पास है। शूल सुसज्जित डोली पर विजय की चढ़ी बारात है। उपनिषद कहते हैं- चरैवेति, चरैवेति अर्थात् चलते रहो। चलते रहने का नाम जीवन है। हर स्थिति और परिस्थिति में आगे ही आगे बढ़ते चलने […]
दान , सच्चरित्रता और स्वाभिमान
किसी वस्तु का बिना मोल लिए किसी को दिया जाना दान कहा जाता है । दान देने में स्नेह , प्रेम , आत्मीयता , लगाव , मानवता आदि ऐसे दिव्य गुण समाविष्ट होते हैं जो कभी इच्छा से तो कभी कभी अनिच्छा से भी किसी को कुछ देने के लिए हमें प्रेरित करते हैं । […]
भौतिक भवन अथवा काया की हवेली के विनष्ट,ध्वस्त अथवा ढहने के साथ ही मनुष्य की सारी उपलब्धियां सारी योजनाएं , सारी इच्छाएं एवं वास्तविक ध्येय समाप्त हो जाते हैं। जिन योजनाओं को दृष्टिगत रखकर मनुष्य अपनी कामना, महत्वाकांक्षाओं व अपेक्षाओं की नींव रखता है ,मोह जाल को बुनता है ,अपने वास्तविक ध्येय से विमुख होकर […]
शुद्धि से ही सिद्धि संभव है। शुद्धिसिद्धि की सीढ़ी है। शुद्धि सिद्धि का साधन है। शुद्धि के बिना सिद्धि प्राप्त नहीं हो सकती। शुद्धि सिद्धि वालों को प्राप्त होती है। शुद्धि से सिद्धि भई सिद्धि जीवन ध्येय । जगत में ऐसे लोग ही पा जाते हैं ज्ञेय ।। इस प्रकार शुद्धि की जीवन में बहुत […]
मेरा मन शिवसंकल्प वाला हो
एक मनुष्य के जीवन में शुभ संकल्पों का होना अति आवश्यक है ।क्योंकि शुभ संकल्प ही मनुष्य के कल्याण का हेतु है। शुभ का तात्पर्य अच्छे और संकल्प का तात्पर्य विचार से होता है , अर्थात अच्छे विचार होना मनुष्य के जीवन में आवश्यक हैं । यजुर्वेद के 34 वें अध्याय में निम्न प्रकार मंत्र […]
विद्या और मानव समाज
परमेश्वर ने मनुष्य को जीवन को श्रेष्ठ कर्म करते हुए मुक्ति को प्राप्त करने का सुअवसर देने के लिये साधनरूप में देह को प्राप्त कराया है। मनुष्य विवेक प्राप्त कर मैं कौन हूं ? मेरा लक्ष्य क्या है ? आदि प्रश्नों के समाधान प्राप्त करता है। परमात्मा ने मनुष्य को सद्कर्मों से स्वयं आनन्द भोगने […]