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भारतीय संस्कृति

क्या है मन , बुद्धि ,अंतः करण, तेज ,स्मृति आदि

योगी जन किस प्रकार अपने मूल आधार से ब्रह्मरंध्र तक रमण करते हुए यौगिकता को प्राप्त होते हैं ? ईश्वर ने उनको दो प्रकार के प्राण दिए हैं । एक सामान्य प्राण ,दूसरा विशेष प्राण। सामान्य प्राण कौन सा है ? सामान्य प्राण वह है जो संसार को चला रहा है , लोक लोकान्तरों में […]

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आत्मा का ब्रह्मरंध्र और कर्म चक्र से संबंध

बहुत सुना है आपने क्या लेकर तू आया जग में क्या लेकर तू जाएगा ? दूसरा सुना है कि न कुछ लेकर के आए ना कुछ लेकर जाना। खाली हाथ आए थे खाली हाथ जाना है। पर वास्तव में यह सब झूठ है । हम ले करके आते भी हैं और लेकर के जाते भी […]

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ईश्वर ,जीव की समानता और प्रकृति के गुण

मनुष्य का जन्म प्राप्त करने के पश्चात जो गर्भ में रहते हुए शुभ कर्म करने की प्रतिज्ञा की थी , मनुष्य उसको प्राय: भूल जाता है और प्रकृति व जगत में रमण करता है । ईश्वर में रमण नहीं कर पाता । जो प्रकृति में और जगत में रमण करता है वह बंधन में पड़ […]

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भारतीय संस्कृति में 16 संस्कारों का महत्व

वैदिक संस्कृति संस्कारों पर बड़ा बल देती है । यदि यह कहा जाए कि वैदिक संस्कृति का निर्माण संस्कारों से ही हुआ है तो कोई अतिशयोक्ति न होगी । वास्तव में किसी व्यक्ति के कद – काठी, रूप – रंग, कुल आदि से उसकी सही पहचान नहीं हो पाती । व्यक्ति की सही पहचान उसके […]

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अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर विशेष : बिना त्याग और तप के योगी बनना असंभव है

वर्तमान काल में प्रत्येक व्यक्ति योग करना चाहता है। वास्तव में योग को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वर्तमान भाजपा सरकार ने निश्चित कर मान्यता प्रदान करा दी है। इसमें योग को पुनर्जीवित करने में और भारत के लोगों को योग के प्रति जागरूक करने में स्वामी रामदेव जी का भी बहुत बड़ा योगदान है। इसके अलावा […]

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मुक्ति का महत्व क्या है ?

संसार का सुख क्षणभंगुर है।लेकिन मुक्ति का आनंद वर्णनातीत है जो केवल अनुभव किया जा सकता है । उस परमानंद के सामने सांसारिक सुख कदापि महत्व नहीं पा सकते ।मानव के जीवन का उद्देश्य एकमात्र यही है कि वह परम आनंद को पाता रहे। परमानंद को पाकर उसकी पूर्ण आयु ,महाकाल पर्यंत रमण करता रहे […]

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ब्रह्मा के दिन रात और दिया हुआ दान

सतयुग ,त्रेता, द्वापर एवं कलयुग चारों युगों का योग 43 लाख 20 सहस्त्र वर्ष होता है। ऐसी 71 चतुर्युगियों का एक मन्वंतर होता है। 14 मन्वन्तरों का सृष्टि काल होता है। 14 मन्वन्तरों को ब्रह्म का एक दिन कहते हैं। इन के पश्चात प्रलय काल हो जाता है ।इस प्रलय काल को ब्रह्म की रात्रि […]

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ईश्वर ने मनुष्य के कर्म करने के लिए बनाई है सृष्टि

  सृष्टि के प्रारंभ में अमैथुनी सृष्टि थी।इसमें भी मानव युवावस्था में उत्पन्न हुआ । क्योंकि यदि वह बाल्यावस्था में पैदा होता तो उसका पालन-पोषण कौन करता ? मनुष्य के अंदर बुद्धि का मंडल है, मन का मंडल है, प्रकृति का मंडल है, अंतरिक्ष का मंडल है ,आत्मा का मंडल है, अंतः करण का मंडल […]

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ईश्वर ने सृष्टि की उत्पत्ति क्यों की ?

ब्रह्म ने अपने अंदर व्याप्य प्रकृति और परमाणु से स्थूल जगत को बनाकर बाहर स्थूल रूप कर और आप उसी में व्यापक होकर साक्षी भूत आनंदमय हो रहा है। जब जगत उत्पन्न होता है तभी जीवों के विचार, ज्ञान ,ध्यान, उपदेश श्रवण में परमेश्वर प्रसिद्ध और बहुत स्थूल पदार्थों से सह वर्तमान होता है ।लेकिन […]

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प्रभु की शरणागति और उसके समक्ष समर्पण

  इस प्रश्न का उत्तर प्राप्त करने के लिए हमें अपने पूर्वजों ,ऋषियों ,ज्ञानियों , ध्यानियों द्वारा स्थापित कुछ परंपराओं का निर्वहन करना होगा। हमें अपनी पुरातन व सनातन संस्कृति एवं सभ्यता में लौटना होगा। हमें वेदों की ओर चलना होगा । वेदों में बताए गए रास्ते पर चल कर ही जीवन और जगत में […]

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