पृष्ठ संख्या 1149 (बृहदारण्यक उपनिषद) ” उस जीवन मुक्त के लिए जब तक वह शरीर में रहता है, नेत्र पुरुष– नेत्र शक्ति अर्थात आंखों की ज्योति सर से पांव तक ईश्वर के रूप में रंगी हुई रहती है। जब भी वह जीवन मुक्त आंखों से देखता है तो उस ईश्वर का स्वरूप उसे हर जगह […]
Author: देवेंद्र सिंह आर्य
लेखक उगता भारत समाचार पत्र के चेयरमैन हैं।
(ये लेखमाला हम पं. रघुनंदन शर्मा जी की ‘वैदिक संपत्ति’ नामक पुस्तक के आधार पर सुधि पाठकों के लिए प्रस्तुत कर रहें हैं) प्रस्तुतिः देवेन्द्र सिंह आर्य (चेयरमैन ‘उगता भारत’) गताक से आगे … चेतन सृष्टि का पारस्परिक सम्बन्ध जिस प्रकार प्राणियों का जड़ सृष्टि के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध है, उसी प्रकार उनका आपस में […]
यजुर्वेद के 34वें अध्याय के प्रथम छः मंत्र शिव संकल्प के विषय में लिखे गए हैं इन शिव संकल्प के मंत्रों का ऋषि शिव संकल्प है। मन इनमें देवता है। स्वर धैवत है। विराट त्रिष्टुप छंद है ।इन मंत्रों में प्रतिपाद्य विषय मन है। मन का उपादान कारण प्रकृति है। मन के भी कई प्रकार […]
आत्मा शरीर में कहां रहता है? भाग 13
13वीं किस्त। बृहदारण्यक उपनिषद पृष्ठ संख्या 1145,1146 “जगत उत्पन्न होने से पहले प्रलय काल में प्रकृति गति शून्य और जड़ता पूर्ण हुआ करती है। जब ईश्वर गति देता है तो वह आंदोलित होकर विकृत हुआ करती है।(जिसको बहुत से विद्वानों ने महा विस्फोट का नाम दिया है) प्रकृति की असली हालत न रहने और महतत्व […]
शरीर में आत्मा मृत्यु के समय हृदय में अपनी इंद्रियों की सारी शक्तियों को लेकर वापस आ जाती है । और वहां से विदाई लेती है।विगत किस्त में हम ऐसा वर्णन पढ रहे थे। तथा आत्मा के द्वारा योनि परिवर्तन के विषय में भी पढ़ रहे थे। इसको और अधिक स्पष्ट करते हुए एक अन्य […]
जीव अर्थात आत्मा जब पंचभूत और सूक्ष्म शरीर को प्राप्त करता है उस समय की जन्म लेने की स्थिति और मृत्यु के समय समस्त इंद्रियों के द्वारा जीव की विदाई की स्थिति पर दसवीं किस्त में चर्चा हो चुकी है। इससे आगे बृहदारण्यक उपनिषद का अध्ययन करते हैं। जिसके पृष्ठ संख्या 1170 पर निम्न प्रकार […]
(ये लेखमाला हम पं. रघुनंदन शर्मा जी की ‘वैदिक सम्पत्ति’ नामक पुस्तक के आधार पर सुधि पाठकों के लिए प्रस्तुत कर रहें हैं) प्रस्तुतिः देवेन्द्र सिंह आर्य (चेयरमैन ‘उगता भारत’) गताक से आगे … जड़ सृष्टि से चेतन सृष्टि का सम्बन्ध जड़ सृष्टि की उत्पत्ति का वर्णन करते हुए हम लिख आये हैं कि हमारा […]
दसवीं किस्त। बृहद आरण्यक उपनिषद् आज की चर्चा बहुत सुंदर है। पृष्ठ संख्या 1114 पर निम्न उल्लेख मिलता है। स्वप्न से सुषुप्ति और तूर्य अवस्था में जीव के जाने की बात बतला कर उसका जागृत अवस्था में लौटना पूर्व में आठवीं, नवी किस्त में बताया जा चुका है। “एक योनि से दूसरी योनि में जीव […]
नवीं किस्त गतांक से आगे। बृहद्राण्यक उपनिषद के आधार पर , प्रष्ठ संख्या 1099 “यह स्पष्ट है कि शरीर जो जीव का क्रीडा स्थल है, वही देखा जाता है। क्रीड़क( क्रीडा करने वाले अथवा खेल करने वाले) जीव को कोई नहीं देख सकता ,क्योंकि वह निराकार और अदृश्य है। सोते हुए व्यक्ति को जब वह […]
आत्मा शरीर में कहां रहती है? भाग 8
गतांक से आगे आठवीं किस्त। लेकिन एक महत्वपूर्ण ज्ञानवर्धक किस्त। इस संबंध में बृहदारण्यक उपनिषद में जो विवरण आया है उसको सुधी पाठकों के समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं। महर्षि याज्ञवल्क्य महाराज का नाम आपने सुना होगा। आप उनकी विद्वत से भी परिचित होंगे। राजा जनक से भी आप परिचित हैं जिनको विदेह कहा जाता […]