यहां पर हम यह स्पष्ट करने का प्रयास करेंगे कि राष्ट्र का निर्माण किस प्रकार हुआ ? राष्ट्र जैसी संस्था के खड़े करने में वेद का क्या योगदान रहा ? सरस्वती जी महाराज कहते हैं कि”जब स्वयंभूव मनु महाराज ने देखा कि सृष्टि में कुछ सूक्ष्मता आ गई है और लोगों के विचारों में […]
लेखक: देवेंद्र सिंह आर्य
लेखक उगता भारत समाचार पत्र के चेयरमैन हैं।
मूढ जो होते हैं वह गूढ़ को न समझ कर रूढ़ की बात करते हैं। ऐसे लोगों से क्षमा चाहते हुए विचारवान विद्वान , सत्यान्वेषी, सत्यपारखी ,सत्याग्रही, लोगों के समक्ष एक प्रकरण उद्धत करना चाहूंगा। शिव किसको कहते हैं? शिवलिंग क्या है? कैलाशपति क्या है? शिव के पर्यायवाची क्या क्या हैं? शिवनाद और डमरु […]
!!—: महर्षि दयानन्द सरस्वती कौन थे :—!!! ●एक ऐसे ब्रह्मास्त्र थे जिन्हें कोई भी पंडित,पादरी,मौलवी, अघोरी, ओझा, तान्त्रिक हरा नहीं पाया और न ही उन पर अपना कोई मंत्र,तंत्र या किसी भी प्रकार का कोई प्रभाव छोड़ पाया। ●एक ऐसा वेद का ज्ञाता जिसने सम्पूर्ण भारत वर्ष में ही नहीं अपितु पूरी दुनिया में वेद […]
कहते हैं, विभीषण अपने अग्रज रावण व देश के स्थान पर राम का साथ दिया | यदि इसमें धर्म-अधर्म, न्याय-अन्याय, सत्य-असत्य की दृष्टि मिला दिया जाये तभी विभीषण की दृष्टि व मानसिकता को समझा जा सकता है | क्या राम से मिलने से पूर्व विभीषण ने अग्रज भाई को समझाने का पुरजोर प्रयास नहीं किया […]
लेखक- डॉ. भवानीलाल भारतीय भारतीय नवजागरण के अग्रदूत महर्षि दयानन्द द्वारा प्रतिपादित विचारों की भारत की राष्ट्रीय एकता को सुदृढ़ करने तथा देश की अखण्डता की रक्षा में क्या उपयोगिता है? यदि हम संसार के सर्वाधिक प्राचीन ग्रंथ वेदों का अवलोकन करें, तो हमें विदित होता है कि वैदिक वाङ्मय में सर्वप्रथम राष्ट्र की […]
कुछ संधियों के तहत कुछ रियासतें ऐसी थी जिन पर ब्रिटिश सम्राज्य का सीधा शासन नहीं था। ऐसी रियासतें अपने आंतरिक फैसले लेने के लिए स्वतंत्र थी। इन रियासतों को ये अधिकार था कि वे भारत और पाकिस्तान दोनों में से किसी भी देश के साथ विलय कर सकती है या फिर स्वयं को […]
कांग्रेसी , कांग्रेस के समर्थक और गांधीवादी तो सब यह कहते हैं कि गांधी के चरखा चलाने से हमें आजादी प्राप्त हो गई थी। यदि इस बात पर विचार किया जाए तो संसार के ज्ञात इतिहास का यह सबसे बड़ा झूठ है। भारतवर्ष के संदर्भ में तो इस बात को पूरी तरह समझ लेना […]
धर्म संस्थापक योगेश्वर श्री कृष्ण सम्पूर्ण राष्ट्र को एक सूत्र में बाँधने वाला कोई ना था। कंस, जरासन्ध, शिशुपाल, दुर्योधन आदि जैसे दुराचारी व विलासियों का वर्चस्व बढ़ रहा था। राज्य के दैवीय सिद्धान्त से भीष्म जैसे योद्धा तक बंधे हुए थे। ऐसी घोर अन्धकार युग में श्री कृष्ण का अविर्भाव हुआ। अपने अद्भुत चातुर्य […]
वैदिक संपत्ति गतांक से आगे… (1) इस तैत्तिरीय कृष्ण यजुर्वेद के विषय में नए और पुराने सभी विद्वानों ने कहा है कि यह मलिन बुद्धि से रचा गया है,इसलिए यह द्रविड़ो का ही रचा हुआ है।वेदभाष्यकार महीधर कहते हैं कि ‘तानि यजूषि बुद्धिमालिन्यात्कृष्णानि’ अर्थात बुद्धिमालिन्य से कृष्ण यजुर्वेद की उत्पत्ति हुई है।इसी तरह स्वामी […]
यह लोग स्वयं को न तो मुसलमान मानते हैं, न पारसी और न ईसाई। यह अपने को ‘यजीदी’ कहते हैं। इस समुदाय के उपासना-स्थल हिन्दू मंदिरों की तरह होते हैं, ये सूर्य की भी पूजा करते हैं और इनमें मोर की बहुत मान्यता है। उल्लेखनीय है कि मोर केवल दक्षिण एशिया में पाया जाता है। […]