गतांक से आगे20वीं किस्त। छांदोग्य उपनिषद के आधार पर पृष्ठ संख्या 814. प्रजापति और इंद्र की वार्ता। प्रजापति ने इंद्र से प्रश्न किया है। “हे इंद्र !यह शरीर निश्चय मरण धर्मा है, और मृत्यु से ग्रसा अर्थात ग्रसित है। यह शरीर उस अमर, शरीर रहित जीवात्मा का अधिष्ठान अर्थात निवास स्थान है। निश्चय शरीर के […]
लेखक: देवेंद्र सिंह आर्य
लेखक उगता भारत समाचार पत्र के चेयरमैन हैं।
गतांक से आगे 19वीं किस्त छांदोग्य उपनिषद के आधार पर। भारतीय मनीषा का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण उपनिषद हैं। यह आध्यात्मिक चिंतन के सर्वोच्च नवनीत हैं ।’उपनिषद ‘शब्द का अर्थ ‘रहस्य’ भी है। उपनिषद अथवा ब्रह्म -विद्या अत्यंत गूढ होने के कारण साधारण विधाओं की भांति हस्तगत( प्राप्त)नहीं हो सकती ।इन्हें ‘रहस्य ‘कहा जाता है। इसके अतिरिक्त […]
(यह लेखमाला हम पंडित रघुनंदन शर्मा जी की वैदिक सम्पत्ति नामक पुस्तक के आधार पर सुधि पाठकों के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं।) प्रस्तुति – देवेंद्र सिंह आर्य चैयरमेन ‘उगता भारत’ गतांक से आगे… इसी तरह जोंक (जलौका) बड़े-बड़े तूफानों को बतला देती है। आप एक गिलास में पानी भरिए और एक जोंक को उसमें […]
18वीं किस्त छांदोग्य उपनिषद के आधार पर , हमारे इस शरीर को ब्रह्मपुर भी उपनिषद में कहा गया है। और उसमें जो अंतराकाश है उसको कमल ग्रह भी पुकारा गया है। पृष्ठ संख्या 787 “अब इस ब्रह्मपुर (शरीर) में जो यह सूक्ष्म कमल ग्रह है इसमें जो सूक्ष्म अंतराकाश है और उसमें जो स्थित है, […]
17वीं किस्त आत्मा का शरीर में महत्व कितना है? छांदोग्य उपनिषद पृष्ठ संख्या 776 (महात्मा नारायण स्वामी कृत,उपनिषद रहस्य, एकादशो पनिषद)पर इस विषय में बहुत ही महत्वपूर्ण और सुंदर विवरण आया है, जो निम्न प्रकार है। “आत्मा ही नीचे, आत्मा ही ऊपर, आत्मा ही पीछे अर्थात पश्चिम में, आत्मा ही पूर्व अर्थात आगे, आत्मा ही […]
इससे पूर्व की 15वीं किस्त में छांदोग्य उपनिषद में आत्मा के संबंध में क्या विवरण आता है उसकी प्रस्तुति की गई थी। पृष्ठ संख्या 835 पर बहुत ही सुंदर विवरण आता है। जीवात्मा को पुरुष क्यों कहते हैं? इसको निम्न प्रकार स्पष्ट किया गया है। ‘पुरुष’ शब्द दो शब्दों की संधि हो करके बना है। […]
पृष्ठ संख्या 1149 (बृहदारण्यक उपनिषद) ” उस जीवन मुक्त के लिए जब तक वह शरीर में रहता है, नेत्र पुरुष– नेत्र शक्ति अर्थात आंखों की ज्योति सर से पांव तक ईश्वर के रूप में रंगी हुई रहती है। जब भी वह जीवन मुक्त आंखों से देखता है तो उस ईश्वर का स्वरूप उसे हर जगह […]
(ये लेखमाला हम पं. रघुनंदन शर्मा जी की ‘वैदिक संपत्ति’ नामक पुस्तक के आधार पर सुधि पाठकों के लिए प्रस्तुत कर रहें हैं) प्रस्तुतिः देवेन्द्र सिंह आर्य (चेयरमैन ‘उगता भारत’) गताक से आगे … चेतन सृष्टि का पारस्परिक सम्बन्ध जिस प्रकार प्राणियों का जड़ सृष्टि के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध है, उसी प्रकार उनका आपस में […]
यजुर्वेद के 34वें अध्याय के प्रथम छः मंत्र शिव संकल्प के विषय में लिखे गए हैं इन शिव संकल्प के मंत्रों का ऋषि शिव संकल्प है। मन इनमें देवता है। स्वर धैवत है। विराट त्रिष्टुप छंद है ।इन मंत्रों में प्रतिपाद्य विषय मन है। मन का उपादान कारण प्रकृति है। मन के भी कई प्रकार […]
13वीं किस्त। बृहदारण्यक उपनिषद पृष्ठ संख्या 1145,1146 “जगत उत्पन्न होने से पहले प्रलय काल में प्रकृति गति शून्य और जड़ता पूर्ण हुआ करती है। जब ईश्वर गति देता है तो वह आंदोलित होकर विकृत हुआ करती है।(जिसको बहुत से विद्वानों ने महा विस्फोट का नाम दिया है) प्रकृति की असली हालत न रहने और महतत्व […]