(ये लेखमाला हम पं. रघुनंदन शर्मा जी की ‘वैदिक संपत्ति’ नामक पुस्तक के आधार पर सुधि पाठकों के लिए प्रस्तुत कर रहें हैं ] प्रस्तुति: देवेन्द्र सिंह आर्य (चेयरमैन ‘उगता भारत’) गतांक से आगे….. इसके आगे राशिचक्र का वर्णन इस प्रकार है- नाभि यज्ञानां सदनं रयीणां महामाहावमभि सं नवन्त । वैश्वानरं रथ्यमध्वराणां यज्ञस्य केतु जनयन्त […]
Author: देवेंद्र सिंह आर्य
लेखक उगता भारत समाचार पत्र के चेयरमैन हैं।
स्वामी दयानंद और आर्द्देयोश्यरत्नमाला
महर्षि दयानंद द्वारा आर्य उद्देश्य रत्न माला नामक पुस्तक लिखी है। इसमें 100 सिद्धांत बताए गए हैं एक सिद्धांत जो सबसे मुख्य और महत्वपूर्ण है ईश्वर । अब दूसरी परिभाषा धर्म की की गई है। जिसमें कहा गया है कि ईश्वर की आज्ञा का पालन और पक्षपातरहित सर्वहित करना है। जो प्रत्येक प्रत्यक्ष आदि आठ […]
सुप्रभातम आज देवोत्थान एकादशी की शुभकामनाएं। देवोत्थान क्या होती है? यह तिथि देवों के उठने की तिथि है। तो क्या देव अभी तक सोए हुए थे? नहीं,देव कभी नहीं सोते। जब देव सोते ही नहीं तो देवों के उठने से क्या तात्पर्य है? इसके लिए पहले हम यह समझ लें कि देव किसको कहते हैं। […]
(ये लेखमाला हम पं. रघुनंदन शर्मा जी की ‘वैदिक संपत्ति’ नामक पुस्तक के आधार पर सुधि पाठकों के लिए प्रस्तुत कर रहें हैं ] प्रस्तुति: देवेन्द्र सिंह आर्य (चेयरमैन ‘उगता भारत’) गतांक से आगे….. इसके आगे नक्षत्रों का वर्णन इस प्रकार है- यानि नक्षत्राणि दिव्य१न्तरिक्षे अप्सु भूमौ यानि नगेषु दिक्षु । प्रकल्पय श्रवन्द्रमा यान्येति सर्वाणि […]
रावण के राष्ट्र में नीति थी, धर्म नहीं था ।नीति भी अधर्म की नीति थी। यदि उसके साथ धर्म भी होता तो निश्चित था कि रावण की पताका संसार में सबसे ऊंची कहलाती। आज संसार में प्रत्येक मनुष्य यह कह देता है कि वह तो पाखंडी है, लेकिन पाखंड कहते किसको हैं ? इसको देखें […]
वैदिक सम्पत्ति गतांक से आगे…
इसीलिए वेद में विविध प्रकार के कारीगरों को मानपान देने की आज्ञा इस प्रकार दी गई है- नमस्तक्षभ्यो रथकारेभ्यश्च वो नमो नमः कुलालेभ्यः कमरेभ्यश्च वो नमो । नमो निषादेभ्यः पुञ्जिष्ठेभ्यश्च वो नमो नमः श्वनिभ्यो मृगयुभ्यश्च वो नमः ।। (यजु० 16/27) अर्थात् तक्षा, रथकार, कुलाल, बढ़ई, निषाद और अन्य छोटे बड़े कारीगरों का सत्कार हो । […]
सर्वप्रथम वेदों का प्रादुर्भाव भारतवर्ष की धर्म धरा पर हुआ । ईश्वरीय वाणी वेद का यह निर्मल ज्ञान संसार में सर्वत्र फैलाने का काम हमारे ऋषियों ने किया। वैसे तो वेद एक ही है पर संख्या की दृष्टि से इसे चार भागों में बांटकर देखा जाता है। प्रत्येक वेद का एक उपवेद है। इस प्रकार […]
वैदिक सम्पत्ति गतांक से आगे.
.. यहाँ हमने तीन मन्त्र उद्धत किये हैं, जिनमें क्रम से दो-दो और चार-चार बढ़ाकर एक, तीन, पाँच, सात, नौ, ग्यारह, तेरह, सत्रह, इक्कीस, पचीस, उनतीस और तेंतीस आदि तथा चार, ग्राठ, बारह, सोलह, बीस, चोबीस, बत्तीस, चालीस, चवालीस और अड़तालीस आदि संख्याओं का वर्णन किया गया है। इसी तरह ॠग्वेदवाले मन्त्र में निन्यानवे का […]
क्रमश: । दसवीं किस्त। महर्षि पतंजलि ने 27 वे सूत्र में परिणाम शब्द की व्याख्या करके ईश्वर का वाचक प्रणय बताया। प्रणव के वाच्य वाचक संबंध को बताने का प्रयास किया ,समझाने का प्रयास किया। इसी को ईश्वर प्राणिधान कहा। तब शिष्य ने निम्न प्रकार शँका उठाई। शंका संख्या 91—– उस ईश्वर का जप और […]
भारत को समझो’ अभियान के तहत वास्तव में पहले यह समझना चाहिए कि भारत क्या था? भारतवर्ष की सभ्यता और संस्कृति विश्व में कैसे फैली? प्रथमतया इस तथ्य की जानकारी होना आवश्यक है। तभी भारत को वास्तविक अर्थ में समझा जा सकता है। हमें समझना होगा कि इसराइल के यहूदी कौन हैं? शेख कौन हैं? […]