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कविता

कविता : श्रम

कब तक पूर्वज के श्रम सीकर पर यूँ मौज मनाओगे। आज बीज श्रम का रोपोगे तब कल फल को पाओगे। पूर्वज की थाती पर माना पार लगा लोगे खुद को- लेकिन अगली पीढ़ी को बद से बदतर कर जाओगे।। इसीलिए उठ नींद त्यागकर सूरज का दीदार करो। श्रम सीकर की कीमत समझो और कर्म स्वीकार […]

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