-अशोक “प्रवृद्ध” वैदिक मतानुसार वेद सब सत्य विधाओं की पुस्तक है। वेद अपौरुषेय हैं। वेद ईश्वर की वाणी है। वेद सब सत्य विद्याओं का मूल है। इसलिए केवल वेद विद्या पर ही विश्वास करना चाहिए। ईश्वर प्राप्ति का एकमात्र उपाय महर्षि पतंजलि प्रणीत यम ,नियम, आसान, प्रत्याहार, ध्यान, धारणा और समाधि है। महर्षि दयानंद सरस्वती […]
लेखक: अशोक 'प्रवृद्ध'
-अशोक “प्रवृद्ध” ईसा मसीह और क्रिसमस को लेकर लोगों के मन में अनेक भ्रांतियां, अनगिनत प्रश्न और असंगत कथाओं के कारण अनंत कौतूहल है। यह भी सिद्धप्राय है कि 25 दिसम्बर का ईसा मसीह के जन्मदिन से कोई सम्बन्ध ही नहीं है। एन्नो डोमिनी काल प्रणाली के आधार पर यीशु का जन्म 7 ईसा पूर्व […]
देश के कई शहरों व प्रदेशों के नाम परिवर्तित कर पारम्परिक नामों में बदले जाने के पश्चात क्या ऐसा नहीं लगता कि अब देश का नाम भी इंडिया से बदलकर भारत कर देने का उचित समय आ गया है? विभाजित भारत का कोई हिस्सा अब ऐसा नहीं रह गया है, जो अब ब्रिटिश शासकों द्वारा […]
शीतातंक के अपसार हो चलने के पश्चात जराजीर्ण शिशिर का का बहिष्कार करते हुए वसंत ऋतु ने समस्त वसुंधरा सहित मानव मन के ह्रदय पटल पर एक साथ अपने आगमन की दुदुम्भि बजा दी है। मधुमाधवौ वसंत: स्यात् -की उक्ति को चरितार्थ करते हुए वनस्पतियों में नवीन रस का संचार ऊपर की ओर हो रहा […]
-अशोक “प्रवृद्ध” विभाजित भारतवर्ष में 26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान लागू होने के उपलक्ष्य में प्रतिवर्ष 26 जनवरी को गणतन्त्र दिवस मनाया जाता है। वर्तमान केंद्र सरकार के द्वारा नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के जन्म दिवस 23 जनवरी को पराक्रम दिवस के रूप में मनाये जाने और उस दिन से ही […]
अशोक प्रवृद्ध यह एक आश्चर्यजनक तथ्य है कि पश्चिम में जिस अरण्य अर्थात जंगल को असभ्यता की निशानी माना जाता है और जिस जंगल के कानून को बर्बरता का पर्यायवाची माना जाता है, वही जंगल हमारे देश भारतवर्ष में संस्कृति के अद्भुत केंद्र रहे हैं और जंगलों में बनाए गये कानूनों अर्थात स्मृति ग्रन्थों से […]
कम लागत, ज्यादा मुनाफा, यही तो प्राकृतिक खेती है। आज दुनिया जब बैक टू बेसिक की बात करती है तो उसकी जड़ें भारत से जुड़ती दिखाई पड़ती है। कृषि से जुड़े हमारे प्राचीन ज्ञान को हमें न सिर्फ फिर से सीखने की जरूरत है, बल्कि उसे आधुनिक समय के हिसाब से तराशने की भी जरूरत […]
-अशोक “प्रवृद्ध” वर्तमान में मांसाहारी होना, राम, कृष्ण, साईं जैसे मनुष्यों को भगवान मानकर पूजन करना, जाति, घूंघट व पर्दा प्रथा का प्रचलन आदि को सनातन वैदिक हिन्दू धर्म का वास्तविक स्वरूप माना जाने लगा है, जो कि हिन्दू धर्म का वास्तविक सनातन स्वरूप नहीं है। आदि काल में सनातन धर्म का ऐसा स्वरूप कदापि […]
–अशोक “प्रवृद्ध” आसान व सुलभ ढंग से जीवन -यापन के लिए प्रत्येक व्यक्ति को धन-सम्पदा से सम्पन्न और धन- संपदा के लिए सदैव प्रयत्नशील होना ही चाहिए, और इसमें कोई संदेह नहीं कि निष्ठापूर्वक परिश्रम अथवा साधना करने से मनुष्य को सफलता अर्थात कुछ निधियां अवश्य ही प्राप्त होती हैं। पौराणिक मान्यतानुसार अष्ट सिद्धियों […]