मां हम विदा हो जाते हैं, हम विजय केतु फहराने आज। तेरी बलिवेदी पर चढ़ कर मां निज शीश कटाने आज॥ मलिन वेश ये आंसू कैसे, कंपित होता है क्यों गात? वीर प्रसूति क्यों रोती है, जब लग खंग हमारे हाथ॥ धरा शीघ्र ही धसक जाएगी, टूट जाएंगे न झुके तार। विश्व कांपता रह जाएगा, […]
Author: अमन आर्य
हाथी जी के रुपए
हाथी जी से हो गई चूक।खुली छोड़कर गए संदूक।। बीस रुपए ले गई बिल्ली।रेल में बैठ, पहुंची दिल्ली।। सोलह रुपए ले गया भालू।खरीद लिए दो किलो आलू।। पन्द्रह रुपए ले गया बंदर।खरीदे दौ सौ ग्राम चुकंदर।। चुपके-चुपके आया सियार।वह भी ले गया रुपए चार।। होटल देखा मन ललचाया।उसने तुरंत समोसा खाया।। संदूक में रुपए थे […]
प्रवीण गुगनानी भारत जैसे विशाल राष्ट्र मैं विवाद और विषय आते जाते रहते है और इनका उलझना सुलझना भी एक सामान्य प्रक्रिया है किन्तु जिस प्रकार से पिछले वर्षों मैं संस्कृति से जुड़े विषयों पर सरकार का रुख प्रगतिवादी होने के नाम पर भारतीयता और हिन्दुत्व का विरोधी होता जा रहा है वह एक बड़ी […]
शक्कर की मिठास में कड़वाहट
सतीश सिंहमिठास में कड़वाहट घोलने की तैयारी लगभग पूरी हो चुकी है। उत्पाद शुल्क फिलहाल तो नहीं बढ़ाया गया है, लेकिन महज इसकी चर्चा मात्र से बीते सप्ताह में इसके वायदा भाव में 2.5 प्रतिशत और हाजिर भाव में 1 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। तत्पश्चात उत्तर प्रदेश में शक्कर का भाव (मिल कीमत) तकरीबन […]
गतांक से आगे…..शांता कुमारजीवन की गाड़ी का कांटा ही मानो बदल गया। बिलासिता प्रिय मदन पर अब देश भक्ति का रंग चढऩे लगा। उन्हीं दिनों खुफिया पुलिस ने रिपोर्ट दी थी कि मदनलाल घंटों अकेले फूलों को देखता रहता है। पुलिस का अनुमान था कि वह या तो कोई कवि हो सकता है या फिर […]
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में : राजधर्म और भारतीय संविधानमहाभारत को नीति और राजनीति के दृष्टिकोण से विद्वानों ने पांचवां वेद माना है। महाभारत आदि पर्व में कहा गया है-धर्मे चार्थे च कामे च मोक्षे च भरतर्षभ।यदिहास्ति तदन्यत्र यन्नेहास्ति न तत क्वचित।।हे भरत श्रेष्ठ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के संबंध में जो बात इस ग्रंथ में […]
गतांक से आगे….‘ध’धकार को दकार का विपरीतार्थक माना गया है। दकार में यदि देना ही देना है तो इसमें लेना ही लेना है अर्थात धारण करना। धारण करके धारणा स्थापित कराना बुद्घि का कार्य है, इसलिए बुद्घि को संस्कृत में धी: कहा गया है। गायत्री मंत्र में हम कहते हैं-धियो योन: प्रचोदयात अर्थात हे जगदीश्वर! […]
आशीष वशिष्ठदेश के आम आदमी की बात आखिरकर कौन करेगा ये यक्ष प्रश्न है। राजनीतिक दल, सामाजिक संगठन, सामाजिक कार्यकर्ता या फिर मीडिया। आम आदमी किसी की प्राथमिकता नहीं है। अगर देश के किसी कोने से आम आदमी के लिए आवाज उठती है तो उसमें स्वार्थ की चासनी लिपटी होती है। नि:स्वार्थ भाव से कोई […]
बी.पी. गौतमविशिष्ट और अति विशिष्ट लोगों की सुरक्षा में लगे जवानों और उन पर किये जा रहे खर्च का मुद्दा उच्चतम न्यायलय तक पहुँच गया है। विशिष्ट और अति विशिष्ट लोगों को सुरक्षा देनी चाहिए या नहीं, इस पर बहस भी छिड़ गई है। कोई कह रहा है कि सुरक्षा देनी चाहिए, तो किसी का […]
राकेश कुमार आर्यबात 1947 की है। देश का बंटवारा हो चुका था, देश के सामने देशी रियासतों को भारत के साथ मिलाने की सबसे बड़ी चुनौती थी। क्योंकि अंग्रेजों ने सभी रियासतों को खुली छूट दे दी थी कि वे चाहें तो भारत के साथ अपना मिलाप कर लें, चाहें तो पाकिस्तान के साथ चली […]