*कंकाल पुष्प क्या सिखलाता है* ?

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लेखक आर्य सागर खारी

यह स्केलेटन फ्लावर की दो छवियां है हिंदी में इसे कंकाल पुष्प कहते हैं इसे कंकाल पुष्प क्यों कहा जाता है? यह समझने के लिए यह लेख पूरा पढ़ना होगा। आमतौर पर इस फूल का रंग दूधिया सफेद अपारदर्शी होता है जैसे ही इस पर पानी की बूंदे पड़ती है यह पारदर्शी हो जाता है रंगहीन हो जाता है। इसकी पत्तियों में पोषण लाने वाली सुक्ष्म वानस्पतिक संरचनाएं ऐसी प्रतीत होती है मानों वह इस फूल की अस्थियां हो यही कारण है इसे कंकाल पुष्प कहा जाता है।

यह पुष्प जापान चीन अमेरिका में प्राकृतिक तौर पर पाया जाता है। यह बारहमासी पुष्प है लेकिन सर्दियों में इस पर पतझड़ होता है अप्रैल से जुलाई के बीच यह खुलकर खिलता है।

जापान की संस्कृति में इस फूल को विशेष महत्व दिया जाता है जापानी लोक कथाओं के अनुसार यह फूल जीवन की क्षणभंगुरता का संदेश देता है। जापान की इकेबानी व हनामी जैसी प्रथाओं में इस फूल का विशेष महत्व है ।यह फूल जन्म और मृत्यु के बीच होने वाले विभिन्न मानवीय जीवन के परिवर्तनों का प्रतीक है सुंदर युवावस्था के पश्चात कुरुप कष्ट दायक वृद्धावस्था भी अवसंभावी है सुंदर शरीर को पाकर इतराना नहीं चाहिए चरक संहिता में महर्षि चरक ने शरीर की यही परिभाषा की है जो “क्षण क्षण में क्षीण होता है वही शरीर होता” है। चीन में भी इस पुष्प का सांस्कृतिक महत्व है। डिफेलिया ग्रेई इसका बोटेनिकल नाम है।

जितना विचित्र जंतु जगत है उतना ही विचित्र वनस्पति जगत है इन दोनों ही जगत में में सृष्टि की आदि से चौंकाने की प्रतिस्पर्धा चल रही है ।नेचर की बुक ऐसे असंख्य चमत्कारों अचरजों से भरी पड़ी है लेकिन व्यवस्थित नियमों से शासित आम जन को यह चमत्कार नहीं सुहाते समझ आते।

अधिकांस मनुष्यों को मौलवियों के गंडा ताबीज़ो , पादरियों के पवित्र जल से कैंसर जैसे असाध्याय रोग दूर हो जाने वाले फर्जी मिथ्या दावों चंगाई सभाओं में चमत्कार नजर आता है, अंधी श्रद्धा आडंबर का यह सिलसिला यहीं नहीं रुकता फर्जी बाबाओं ओझाओ तांत्रिकों भविष्यवक्ताओं की ठगाई में चमत्कार नजर आता है।

लेखक आर्य सागर खारी

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