*ओ३म् खं ब्रह्म: का भावार्थ*

डॉ डी के गर्ग

अक्सर कुछ संप्रदाय के साधु ,तांत्रिक आदि कान में एक मंत्र फूकते है और एससी मुसीबत की स्थिति में `ओ३म् खं ब्रह्म: ‘ शब्द का का जोर जोर से जाप करने की सलाह देते है। मंत्र क्या है ?
ओ३म् खं ब्रह्म ।। ( यजुर्वेद ४०/१७ )
ये यजुर्वेद से लिया गया है। जिसका अर्थ इस प्रकार है –
ओ३म् = सबका रक्षक ब्रह्म परमेश्वर जो आकाश के समान सर्वत्र व्यापक है |
गुरुवाणी में भी यही लिखा है — इक ओंकार सतनाम (गुरुवाणी) ~ वह एक ओ३म् ही जपने योग्य है।
पूरा मंत्र इस प्रकार है — ऋषिः दीर्घतमाः । देवता पुरुष: ( परमात्मा) । छन्दः आर्षी अनुष्टुप् । हि॒र॒ण्मये॑न॒ पात्रे॑ण स॒त्यस्यापि॑हितं॒ मुख॑म् यो॒ऽसावा॑दि॒त्ये पुरु॑ष॒ः सोऽसाव॒हम् । ओ३म् खं ब्रह्म ॥ I – यजु० ४० । १७

मंत्र का भावार्थ –हे मनुष्यो ! जिस (हिरण्मयेन) ज्योतिःस्वरूप (पात्रेण) रक्षक मुझसे (सत्यस्य) अविनाशी यथार्थ कारण के (अपिहितम्) आच्छादित (मुखम्) मुख के तुल्य उत्तम अङ्ग का प्रकाश किया जाता (यः) जो (असौ) वह (आदित्ये) प्राण वा सूर्य्यमण्डल में (पुरुषः) पूर्ण परमात्मा है (सः) वह (असौ) परोक्षरूप (अहम्) मैं (खम्) आकाश के तुल्य व्यापक (ब्रह्म) सबसे गुण, कर्म और स्वरूप करके अधिक हूँ (ओ३म्) सबका रक्षक जो मैं उसका ‘ओ३म्’ ऐसा नाम जानो ॥

यजुर्वेद में इस विषय में और भी प्रकाश डाला गया है –वेद, उपनिषद्, ब्राह्मण ग्रंथ, महाभारत गीता, योगदर्शन, मनुस्मृति में एक “ओंकार का ही स्मरण और जप” करने का उपदेश दिया गया है। ओ३म् का जाप स्मरण शक्ति को तीव्र करता है,इसलिए वेदाध्ययन में मन्त्रों के आदि तथा अन्त में “ओ३म् “शब्द का प्रयोग किया जाता है।

ओ३म् क्रतो स्मर ।।-(यजु० ४०/१५) “हे कर्मशील ! ‘ओ३म् का स्मरण कर।”

ओ३म् प्रतिष्ठ ।।-(यजु० २/१३) ” ओ३म्’ में विश्वास-आस्था रख !”

ब्रह्म शब्द का वेद मंत्रों है में अर्थ -“ब्रह्मणा भूमिर्विहिता ब्रह्म द्यौरुत्तरा … ” (अथर्ववेद १०/२/२५)
ब्रह्म ने ही यह भूमि बनाई और विशेष रूप से धारण तथा स्थिर की, ब्रह्म ने ही ऊपर का आकाश बनाया और स्थिर किया है।
इसलिए पौराणिक में ब्रह्म शब्द को बिगाड़कर शरीरधारी व्यक्ति ब्रह्मा की कल्पना की है और फिर काल्पनिक कथाओं के माध्यम से अंधविश्वासी को जन्म दिया है। वास्तविक रूप में ब्रह्म ईश्वर का ही एक अन्य नाम है।
(बृह बृहि वृद्धौ) इन धातुओं से ‘ब्रह्मा’ शब्द सिद्ध होता है। ‘योऽखिलं जगन्निर्माणेन बर्हति वर्द्धयति स ब्रह्मा’ जो सम्पूर्ण जगत् को रच के बढ़ाता है, इसलिए परमेश्वर का नाम ‘ब्रह्मा’ है।
ब्रह्मा का अर्थ है सबसे महान , विष्णु का अर्थ है सर्वव्यापक, और महेश का अर्थ है सब (जड़ और चेतन ) का ईश अर्थात स्वामी ।ईश्वर अनन्त शक्ति वाला है और अपने सभी काम वह स्वयं ही करता है, उसका कोई सहायक नही है ।

संक्षेप में ओ३म् खं ब्रह्म: कोई मंत्र जाप के लिए नहीं है। ईश्वर की स्तुति के लिए अलग से वेद मंत्र है जैसे गायत्री मंत्र आदि जिनका जाप करने से ईश्वर का प्रेम और सानिध्य मिलता है।

Comment: