प्रभु-मिलन की चाह है, तो: -*

नाम, जन्म, स्थान को,
केवल जानै ईश।
अन्तःकारण पवित्र रख,
मिल जावै जगदीश ॥2712॥

तत्त्वार्थ:- प्रायः देखा गया है कि स्वर्ग तो सभी चाहते हैं किन्तु पुण्य – प्रार्थना कोई और करें क्या यह सम्भव है ? म
नही! ठीक इसी प्रकार जिस अन्तःकरण चतुष्ट्य अर्थात् मन बुद्धि, चित्त,अहंकार को निर्मल किये बिना परमात्म-प्राप्ति हो सकती है? नहीं।
परमात्म प्राप्ति के लिए अन्त: करण की पवित्रता नितान्त आवश्यक है साधक को पग-पग पर सदैव सतर्क रहना पड़ता है। ध्यान रहे, जीवात्मा की यात्रा अनन्त काल से चल रही है और अनन्त काल तक चलती रहेगी।
अतीत काल में जीवात्मा के क्या-क्या नाम रखे गये,किस-किस योनि में जन्म लिया तथा कौन-कौन से स्थान पर जीवन निर्वाह किया,, इसके अतिरिकत भविष्य में हमारे क्या नाम, जन्म, स्थान होंगे? इस रहस्य क्यो सिवाय परम पिता परमात्मा के कोई नही जानता है। इसलिए सदैव शुभ कर्म करो तथा परम पिता परमात्मा का सिमरन करो। यही जीवनादर्श है और यही मनुष्य जीवन कागंतव्य और प्रात्तव्य हैं।
क्रमशः

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