मेरे मानस के राम , अध्याय : 42 , मन मैला लंकेश का…
रावण का एक-एक योद्धा संसार से विदा हो रहा था। अब उसके पास अपना सबसे बड़ा योद्धा उसका अहंकार ही शेष बचा था। यद्यपि इसी अहंकार ने उसके अनेक योद्धाओं का अंत करवा दिया था। उसके हरे-भरे देश को शवों का ढेर बना दिया था। अब ऐसी स्थिति आ चुकी थी, जिससे रावण पीछे हट नहीं सकता था। व्यावहारिक जीवन में ऐसा होता भी है कि जब हम पीछे हटने योग्य भी नहीं होते और आगे बढ़ने योग्य भी नहीं होते। रावण के साथ अब यही हो चुका था। उसका प्राणप्रिय पुत्र मेघनाद भी संसार से विदा हो गया – यह सुनकर उसे असीम वेदना हुई।
करनी करता जा रहा, किया ना सोच विचार।
विनाश उसको घेरता, धिक्कारे संसार।।
बदल गया परिवेश सब , रावण हुआ हताश।
समय सिमटता देखकर, मन में बहुत निराश।।
काल गति टेढ़ी पड़ी , टेढ़ी मन की चाल।
मन जिनका टेढ़ा रहे , बुरा हो उनका हाल।।
मन को सुंदर राखिए , जगत भी सुंदर होय।
मन को मैला देखकर , जगत भी मैला होय।।
मन मैला लंकेश का, सिया हरी वन जाय।
कुल का नाश करा लिया, लिया देश मिटवाय।।
उपालंभ सब कर रहे, अहंकार अभी शेष ।
जीवित होकर मर गया , अपयश पा लंकेश।।
परमेश्वर की शक्तियां , कोई ना लेने पाय।
अहंकार सबसे बुरा , कुल को देय डुबाय।।
वेद ज्ञान प्राप्त करके भी जो लोग उसका आचरण नहीं करते, जिनके मनन करने की गति पूर्णतया शून्य पर अटकी रहती है उनके लिए वेद पाठ कोई अर्थ नहीं रखता। ऐसे व्यक्ति को बिल्कुल उसी प्रकार का मानना चाहिए जैसे स्वर्ण कलश में विष भरा हो। बगुला भक्ति सदा निरर्थक ही होती है । क्योंकि वह दूसरों के विनाश के लिए की जाती है। यदि ज्ञान भी दूसरों के विनाश के लिए प्राप्त किया जाता है तो समझो कि वह सबसे पहले आत्मविनाश ही करेगा। रावण के पास ज्ञान तो था , परन्तु उसकी मनन शक्ति बड़ी दुर्बल थी, जिसने उसे बगुला भक्ति वाला बना दिया। ज्ञान प्राप्त करने पर भी यदि मन पवित्र नहीं हुआ, हृदय निश्छल और निष्पाप नहीं हुआ तो ऐसा ज्ञान निरर्थक ही होता है, जो अंत में आत्मविनाश का कारण बनता है।
वेद पाठ तो कर लिया , मनन रहा अति शून्य ।
स्वर्ण कलश में विष भरा , कर देता गति शून्य ।।
सन्मति और सम्मान की, जो जन करे संभाल।
यश बल में रखे संतुलन , सच्चा बुद्धिमान।।
बुद्धि भ्रष्ट लंकेश की, सम्मान हुआ सब क्षीण ।
बुद्धि दोष से हो गया , बलवानों से हीन।।
लक्ष्मण ने पहुंचा दिया, इंद्रजीत यमलोक।
रावण के संग राक्षस , सभी मना रहे शोक ।।
भाई का मत कीजिए , जानबूझ तिरस्कार।
भाई बाजू होत है, दुश्मन को तलवार।।
सदा संभाले राखिए , अपना सब परिवार।
बिखर गया परिवार तो , बिखरे सब संसार।।
विधाता ने तुमको दिया , भाई एक उपहार।
सदा संवारे राखिए, गाये गीत संसार।।
प्रताड़ित मत कीजिए , भाई होय अनमोल।
बाजू को मत काटिए , कर देगी कमजोर।।
डॉ राकेश कुमार आर्य
( लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता है। )
मुख्य संपादक, उगता भारत