खिलजी की असंख्य सेना से गोरा घिरे हुए थे

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टूट पड़ों मेवाड़ी शेरों बादल सिंह ललकारा
हर हर महादेव का गरजा नभ भेदी जयकारा
निकल डोलियों से मेवाड़ी बिजली लगी चमकने
काली का खप्पर भरने तलवारें लगी खटकने

राणा के पथ पर शाही सेनापति तनिक बढ़ा था
पर उस पर तो गोरा हिमगिरि सा अड़ा खड़ा था
कहा ज़फर से एक कदम भी आगे बढ़ न सकोगे
यदि आदेश न माना तो कुत्ते की मौत मरोगे

रत्न सिंह तो दूर न उनकी छाया तुम्हें मिलेगी
दिल्ली की भीषण सेना की होली अभी जलेगी
यह कह के महाकाल बन गोरा रण में हुँकारा
लगा काटने शीश बही समर में रक्त की धारा

खिलजी की असंख्य सेना से गोरा घिरे हुए थे
लेकिन मानो वे रण में मृत्युंजय बने हुए थे
पुण्य प्रकाशित होता है जैसे अग्रित पापों से
फूल खिला रहता असंख्य काटों के संतापों से

वो मेवाड़ी शेर अकेला लाखों से लड़ता था
बढ़ा जिस तरफ वीर उधर ही विजय मंत्र पढता था
इस भीषण रण से दहली थी दिल्ली की दीवारें
गोरा से टकरा कर टूटी खिलजी की तलवारें

मगर क़यामत देख अंत में छल से काम लिया था
गोरा की जंघा पर अरि ने छिप कर वार किया था
वहीँ गिरे वीर वर गोरा जफ़र सामने आया
शीश उतार दिया, धोखा देकर मन में हर्षाया

मगर वाह रे मेवाड़ी गोरा का धड़ भी दौड़ा
किया जफ़र पर वार की जैसे सर पर गिरा हथौड़ा
एक वार में ही शाही सेना पति चीर दिया था
जफ़र मोहम्मद को केवल धड़ ने निर्जीव किया था
ज्यों ही जफ़र कटा शाही सेना का साहस लरज़ा
काका का धड़ देख बादल सिंह महारुद्र सा गरजा

अरे कायरो नीच बाँगड़ों छल से रण करते हो
किस बुते पर जवान मर्द बनने का दम भरते हो
यह कह कर बादल उस क्षण बिजली बन करके टुटा था
मानो धरती पर अम्बर से अग्नि शिरा छुटा था

ज्वाला मुखी फटा हो जैसे दरिया हो तूफानी
सदियाँ दोहराएँगी बादल की रण रंग कहानी
अरि का भाला लगा पेट में आंते निकल पड़ी थीं
जख्मी बादल पर लाखो तलवारें खिंची खड़ी थी

कसकर बाँध लिया आँतों को केशरिया पगड़ी से
रंचक डिगा न वह प्रलयंकर सम्मुख मृत्यु खड़ी से
अब बादल तूफ़ान बन गया शक्ति बनी फौलादी
मानो खप्पर लेकर रण में लड़ती हो आजादी

उधर वीरवर गोरा का धड़ अरिदल काट रहा था
और इधर बादल लाशों से भूतल पाट रहा था
आगे पीछे दाएँ बाएँ जम कर लड़ी लड़ाई
उस दिन समर भूमि में लाखों बादल पड़े दिखाई

मगर हुआ परिणाम वही की जो होना था
उनको तो कण कण अरियों के शौन से धोना था
मेवाड़ी सीमा में राणा सकुशल पहुच गए थे
गारो बादल तिल तिल कर रण में खेत रहे थे

एक एक कर मिटे सभी मेवाड़ी वीर सिपाही
रत्न सिंह पर लेकिन रंचक आँच न आने पायी
गोरा बादल के शव पर भारत माता रोई थी
उसने अपनी दो प्यारी ज्वलंत मणियाँ खोयी थी

धन्य धरा मेवाड़ धन्य गोरा बादल बलिदानी
जिनके बल से रहा पद्मिनी का सतीत्व अभिमानी
जिसके कारन मिट्टी भी चन्दन है राजस्थानी

( यह कविता मेवाड़ के राजकवि प. नरेंद्र मिश्र जी द्वारा लिखी गयी है.. )

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