धरती को रखना हरा-भरा,
यह जीवन धर्म हमारा।
वृक्षों का रक्षण परिपोषण,
पावन कर्तव्य हमारा।।

कुछ याद करे उस बलिदानी,
अमृता देवी की अमर कथा,
जो जूझ गयी तलवारों से,
कटते पेड़ों के देख व्यथा।
आखिर राजा भी नतमस्तक,
टपकी टप अश्रु धारा ।।1।।

अनमोल रतन जल धरती पर,
वेदों ऋषियों ने यह माना
हम भूल गए कर्तव्यों को
जल बूंद-बूंद है बचाना,
पानी का रक्षण परिशोधन
पावन संकल्प हमारा ।।2।।

देव रमण इस धरती को,
कचरे का ढेर बनाया
कागज- कपड़े को भूल गए,
पॉलिथीन को अपनाया।
कचरे का चक्रण निस्तारण
यह साधु कार्य हमारा।।3।।

भूमि महके, पंछी चहके,
निर्भय हो सब बढ़ते जाएँ,
वायु पावन भरपूर मिले,
धरती को स्वच्छ बनाएं।
हर घर को हरित बनाएंगे,
हो आनंदित जग सारा ।।4।।

प्रस्तुति: धर्मेंद्र बुंदेला
(राष्ट्रीय संगठन मंत्री भारत को समझो अभियान समिति)

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