मेरे मानस के राम : अध्याय 28, रावण के गुप्तचर और श्रीराम

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इसी समय शुक और सारण नाम के दो गुप्तचर फिर रामचंद्र जी की गुप्त सूचनाओं लेने के लिए आ गए। रामचंद्र जी ने इस बार फिर अपनी उदारता का परिचय दिया और उनसे बड़े प्यार से कह दिया कि यदि आप सफल मनोरथ हो गए हो तो ससम्मान अपने देश लौट जाओ। वास्तव में रामचंद्र जी के इस आचरण ने लंकावासियों में और भी अधिक फूट डालने का काम किया। जहां गुप्तचर रामचंद्र जी की गुप्त जानकारी लेने के लिए आ रहे थे वहां वे रामचंद्र जी के चरित्र की ऊंची बातों को भी ले जाकर रावण की सेना के अधिकारियों और मंत्रियों के साथ-साथ जनसाधारण में भी उसकी चर्चा करते थे । इससे लंकाजनों में राम के प्रति अच्छी भावना का प्रचार – प्रसार होता था। इस प्रकार गुप्तचर रावण से अधिक रामचंद्र जी का काम कर रहे थे।

गुप्तचर बनकर आ गए,  शुक  सारण  बदमाश।
पकड़  विभीषण  ले  गए,  उन्हें  राम  के   पास।।

यदि सफल  मनोरथ  हो  गए ,  लौटो  अपने  देश।
निसंकोच अभी  ठहरिए, कुछ करना  यदि शेष ।।

सुन  बचन   श्री  राम  के ,  गुप्तचर   थे   हैरान।
समझ में उनकी आ गया ,  क्यों हैं – राम महान।।

वास्तव में गुप्तचरों को रामचंद्र जी का सद्भाव मन को प्रसन्न करने वाला लगा था। रामचंद्र जी की उदारता और हृदय की पवित्रता को देखकर वे अत्यंत प्रभावित थे। यही कारण था कि उन्होंने जाकर अपने राजा रावण से भी राम के प्रति मैत्री का भाव रखते हुए उनसे संधि करने की बात कही। श्री राम सहज और सरल थे। उन्होंने अपने शत्रु के गुप्तचर लोगों के साथ भी उदारता का व्यवहार किया।

कह  दिया  लंकेश  से, व्यक्तित्व   अनोखा   राम।
मानव   देव   समान   हैं,  दिव्य  गुणों  की  खान।।

शुक   सारण  की  भर्त्सना,  करने  लगा   लंकेश।
तुमको   लज्जा  है  नहीं,  और नहीं दीखता देश।।

शार्दूल   को  लंकेश  ने ,  भेजा  राम   की  ठौर।
क्या है इरादा  राम  का ,  करो  ध्यान  से  गौर।।

शार्दूल   पकड़ा  गया,     उसका  दुष्ट   स्वभाव।
बहुत धुनाई  हो   गई ,  और    हुई   बिन भाव।।

राम   ने  छुड़वा   दिया ,  किया   बड़ा   उपकार।
गुप्तचरों का  धर्म   है ,     नहीं  कोई   अपराध।।

आज   भी   आदर्श  हैं ,    पुरुषोत्तम    श्री राम।

राजनीति  को  कर  रहे, लोग   बहुत   बदनाम।।

राम- राज्य   आदर्श   है ,  कहता    संविधान।
आदर्श हमारे राम को ,   रहा आज  भी  मान।।

राम शब्द  के  साथ  में ,   हुआ   प्रेम    अगाध।
शब्द   में   जो  आस्था  ,   बनी    रहे   निर्बाध।।

डॉ राकेश कुमार आर्य

( लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता है। )

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