मेरे मानस के राम : अध्याय 17 रावण के महल और अशोक वाटिका का चित्रण

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जब हनुमान जी रावण की राजधानी लंका में पहुंच गए तो वहां उन्होंने बने हुए उत्तम राजप्रासाद के मध्य एक स्वच्छ और निर्मल विशाल भवन को देखा। अब उनकी एक ही इच्छा थी कि यहां पर सीता जी कहां हो सकती हैं ? उस भवन में इधर-उधर देखने पर हनुमान जी ने अनेक महिलाओं को गहरी नींद में सोते हुए देखा। एक स्फटिक से निर्मित रत्न से विभूषित एक सुंदर पलंग पर सोते हुए रावण को भी देखा। रावण के पैताने अर्थात उसके चरणों के समीप पड़ी हुई उसकी स्त्रियों को भी महात्मा हनुमान जी ने देखा। मद्यपान और स्त्रियों के साथ क्रीडा से तृप्त होकर सोए हुए रावण को देखकर भी उन्होंने समझ लिया कि यह कौन हो सकता है ? पर उन्हें यह समझ नहीं आया कि इन महिलाओं में से सीता जी कौन सी हो सकती हैं ? क्योंकि उन्होंने सीता जी को उससे पहले कभी नहीं देखा था। मंदोदरी के विशेष आभूषणों को देखकर उन्हें एक बार ऐसा लगा कि संभवत: यही सीता हैं ?

एक तरफ रावण पड़ा , महिलाओं के बीच ।
ताड़ गए हनुमान जी, यह कौन है पापी नीच।।

स्फटिक युक्त पलंग पर , सोई हुई एक नार।
रूप यौवन शालिनी , सुंदर बहुत अपार।।

रावण की मंदोदरी, थी वह सुंदर नार।
हनुमान लगे सोचने, यही है सीता नार।।

खोज खोज कर थक गए, मन में थे बेचैन।
जनकदुलारी ना मिली, बीती जाती रैन।।

प्रवाह विचारों का चला , हो गए बहुत उदास।
सीता जी यदि ना मिली, करूं ग्रहण संन्यास।।

इसी उहापोह की स्थिति के बीच उन्हें वहां पर एक वाटिका दिखाई दी। जिसमें गुमसुम सी, दु:खी सी और अपने ही संसार में खोई हुई एक महिला उन्हें दिखाई दी। उन्होंने देखा कि वह वाटिका अत्यन्त रमणीक है।

दी दिखाई वाटिका , वृक्ष घनों के बीच।
पक्षी कलरव कर रहे, गा रही कोयल गीत।।

अश्रुपूरित नेत्र हैं , चेहरा है भयभीत।
दुर्बल सी महिला दिखी , पीली साड़ी बीच।।

हाव – भाव को देखकर, प्रसन्न हुए हनुमान ।
सीता माता हैं यही , सटीक मेरा अनुमान।।

देख सिया के हाल को, करने लगे विचार।
नारी बड़ी पवित्र है, दिव्य भव्य विचार।।

पति आने की आस में, प्राण रहे हैं सूख।
अनर्थ कष्ट को झेलते , प्यास लगे ना भूख।।

डॉ राकेश कुमार आर्य

( लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता है। )

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