कांग्रेसी कारखाने के जहरीले उत्पाद
क्या आपने मनोहर मलगांवकर की पुस्तक ‘द मैन हू किल्ड गांधी’ पढ़ी है?
इसमें जिक्र है कि एल.बी.भोपतकर से बातचीत में तत्कालीन विधि मंत्री डॉ.भीमराव आंबेडकर ने स्वयं बताया था कि कहीं कोई सबूत नहीं होने के बाद भी नेहरू किसी भी कीमत पर सावरकर को गांधी हत्याकांड से जोड़ना चाहते थे।यानी यह गांधी से प्रेम नहीं बल्कि सावरकर से भय का प्रश्न था कि नेहरू उन्हें किसी भी प्रकार लांछित करने का षडयंत्र रच रहे थे।
आज झूठ,नफरत और जिद की वही परिवारवादी राजनीति एक और कदम फलांग गई है।हिंदू को लांछित करने की जिद जो अब हद से आगे बढ़ गई है।
पहले राहुल गांधी ने कहा था कि ‘जो लोग मंदिर जाते हैं, वही लड़कियों-महिलाओं को छेड़ते हैं।’अब उनका कहना है ‘जो अपने आप को हिंदू कहते हैं,वह हिंसा,हिंसा, हिंसा की बात करते हैं।’
यह किसी से प्रेम नहीं बल्कि द्वेष और उन्माद है। इस देश की संस्कृति से भय और सहिष्णु हिन्दू समाज पर उंगली उठाने की कुचेष्टा।आज कांग्रेस पूरे हिन्दू समाज को निशाने पर लेने का फंदा फेंक रही है।
तब निशाने पर व्यक्ति साफ देखा जा सकता था- सावरकर।
आज घृणा के निशाने पर इस राष्ट्र का विचार है-हिंदुत्व।
भारतीय राजनीति में हिंदुत्व पर कांग्रेस के हमले कोई नई बात नहीं हैं।
मत भूलिए,इस्लामी कट्टरता पर सदा आंखें मूंदने वालों के लिए हिन्दू को हिंसक और तो और आतंकी ठहराने की ‘थ्योरी’ इसी कांग्रेसी कारखाने से निकली थी।दिग्विजय सिंह के गढ़े ‘हिंदू आतंकवाद’, ‘भगवा आतंकवाद’ के झूठ को स्थापित करने के तहत कांग्रेस ने अजीज बर्नी से बाकायदा किताब लिखवाई,उसका विमोचन किया और पारितोषिक के रूप में अल्पसंख्यक मंत्रालय का सलाहकार बना दिया था।इसलिए संसद में कांग्रेस द्वारा हाल ही में सीधे-सीधे ‘हिन्दू’ को हिंसा और नफरत से जोड़ने को मात्र नासमझी भरा बयान नहीं समझना चाहिए। बल्कि इसे हिन्दू समाज की संगठित शक्ति से राजनैतिक घृणा और हिन्दू समाज के विरुद्ध क्रमिक रूप से बढ़ते दुस्साहस के रूप में देखना चाहिए।
वैसे भी अंग्रेजों के बांटो और राज करो की तर्ज पर देश को हिन्दू-मुस्लिम में बांट देने वाली कांग्रेस हिन्दू समाज को बांट कर ही चलती रही है।‘यह हिन्दू’ और ‘वह हिन्द’, हिंदू और हिंदुत्व के बीच अंतर यह सारे प्रयास भी कांग्रेस की उसी एक रणनीति का हिस्सा रहे हैं।
राहुल गांधी केवल तात्कालिक चेहरा हैं।हिंदुओं से नफरत की इस मुहिम का एक लंबा इतिहास है।सोनिया गांधी के रिमोट कंट्रोल वाली मनमोहन सरकार के समय भी कांग्रेस ने ‘हिंदू आतंकवाद’ या ‘भगवा आतंकवाद’ की अवधारणा को स्थापित करने का भरपूर प्रयास किया था।गृह मंत्रियों सुशील कुमार शिंदे और पी. चिदंबरम ने इस्लामिक आतंकवाद को ढांपने और हिंदुओं को आतंकी ठहराने के लिए पूरा जोर लगाया था।
‘भगवा आतंक’ का हौवा हो या मालेगांव विस्फोट मामले में गवाहों पर दबाव बनाने का खुलासा,हर घटना बताती थी कि तत्कालीन सरकार ‘हिन्दू विचार’ और संगठनों को निशाना बनाने के लिए तड़प रही थी।कांग्रेस की ओर से यह लगातार जारी रहने वाला आक्रमण है।यानी हिंदुत्व के विरुद्ध नफरत का ऐसा हल्ला बोल है,जिसका बीड़ा बार-बार अलग क्षत्रप उठाता है किंतु सबका लक्ष्य वही रहता है।
कहने की बात नहीं कि हिंदुत्व से घृणा की इस राजनीति ने देश में कटुता और साम्प्रदायिता का विषैला वातावरण तैयार किया है।तथ्य यह भी है कि हिंदू आस्था,परंपरा और संस्कृति के विरुद्ध दुनिया भर में लंबे समय से ऐसे आयोजन हो रहे हैं।भारत में इस घृणा अभियान का नेतृत्व कांग्रेस और गांधी-नेहरू परिवार कर रहा है।इस मुहिम में कांग्रेस के सहयोगी दलों के नेता और अकादमिक संस्थाओं का प्रपंची नेटवर्क भी जुड़ा है।
हिंदुत्व की विचारधारा को विभाजक और असहिष्णु मानते मनमोहन।
रामचरित मानस के विरुद्ध मुहिम चलाते सपा नेता।
हिन्दू और सनातन शब्द को ‘गन्दा’ मानते कर्नाटक कांग्रेस के नेता।
इस कुचक्र की कड़ियां बहुत हैं और इनका विस्तार देश से बाहर तक है।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर होने वाले सेमिनार और सम्मेलन में कट्टरपंथी मत पंथों और आतंकवाद की स्पष्ट घटनाओं और प्रेरणाओं से कन्नी काटते हुए हिंदुत्व को निशाने पर लेने का ‘खेल’ होता है।देशी-विदेशी नेता और आंदोलनकारी बुद्धिजीवियों के रूप में शामिल होते हैं। विदेशी संगठन और संस्थान मंच सजाते हैं।सबका उद्देश्य बस एक- भारतीय समाज में विभाजन और असहिष्णुता को बढ़ावा।
हाल के कुछ उदाहरण याद कीजिए,हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने एक सेमिनार आयोजित किया था,जिसका विषय था- ‘हिंदुत्व और भारतीय लोकतंत्र’।इसमें हिंदुत्व की विचारधारा और इसके राजनीतिक प्रभावों पर चर्चा की गई।कॉमनवेल्थ के सैन फ्रांसिस्को सम्मेलन में ‘भारतीय राजनीति में धर्म’ पर चर्चा के बहाने हिंदुत्व को निशाने पर रखा गया।एल्सवर्थ कांग्रेस का अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन हो या एशिया सोसाइटी इंडिया की गोष्ठी, इनमें भी हिंदुत्व की राजनीति के नकारात्मक प्रभावों पर बात की गई।
बर्कले सेंटर फॉर रिलीजन,पीस एंड वर्ल्ड अफेयर्स, आक्सफोर्ड इंडिया सोसाइटी,यूनेस्को के सेमिनार- सम्मेलन और एशिया सोसाइटी की गोष्ठी में भी हिंदुत्व और इसकी विचारधारा को विकृत रूप में प्रस्तुत किया गया कि यह भारतीय समाज,भारतीय राजनीति और लोकतंत्र को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर रही है।
कोई आश्चर्य नहीं कि2014के बाद से हिंदुत्व,हिंदू आस्था, परंपरा और संस्कृति पर हमले बढ़े हैं।यह हिंदुत्व की वास्तविकता को विकृत करने के सतत और सुनियोजित प्रयास का हिस्सा है, जो भारतीय समाज और उसकी विविधता के लिए खतरा है।
कांग्रेस का हिंदुत्व पर हमला और राहुल गांधी के बयान तात्कालिक घटना भर नहीं बल्कि सतत अभियान है।
केवल वर्तमान में नहीं बल्कि नेहरू काल से ही चला आ रहा है। हिंदुत्व के प्रति कांग्रेस का दुराग्रह और इसे अपराधबोध में डालने की कोशिशें जारी हैं।पूरे समाज को इस षडयंत्र को समझने और इसके खिलाफ सतर्क रहने की आवश्यकता है।हिंदुत्व की सर्वसमन्वयकारी सोच और इसकी समस्याओं के समाधान की दृष्टि को समझ कर ही हम इसे सशक्त बना सकते हैं।
कभी भगवा को आतंक बताने का षडयंत्र तो कभी हिन्दू को हिंसा का पैरोकार बताने का दुस्साहस… सनातन को निशाना बनाने की हर चाल,आका और मोहरों को भारी पड़ेगी।
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