मेरे मानस के राम , अध्याय 11 : जटायु , अयोमुखी और कबंध
जिस समय लंका का राजा रावण सीता जी को वायु मार्ग से अपहरण करके ले जा रहा था उस समय सीता जी विलाप करुण चीत्कार करती हुई जा रही थीं। वह मार्ग में अपना कोई कीमती आभूषण या कोई वस्त्र भी नीचे डाल रही थीं। जिससे रामचंद्र जी और लक्ष्मण जी जब उन्हें खोजते हुए उधर को आएं तो उन्हें उनकी कोई ना कोई निशानी ऐसी मिल जाए जिससे उन्हें उनकी खोज करने में सुविधा हो सके। सीता जी ने वृद्ध पुरुष जटायु जी को देखा तो उन्होंने वहां भी अपनी करुणा जनक चीख निकाली। जब जटायु ने किसी महिला के इस प्रकार के करुणाजनक शब्दों को सुना तो उन्होंने वायुमार्ग से सीता जी का अपहरण कर ले जा रहे रावण को युद्ध की चुनौती दी। रावण ने युद्ध की चुनौती को स्वीकार किया और युद्ध में जटायु जी को गंभीर रूप से घायल कर वह अपने गंतव्य स्थल की ओर बढ़ गया।
जटायु जी के कान में, गिरे करुणा के बोल।
चेताया महानीच को, संघर्ष किया दिल खोल।।
जटायु जी घायल किए , पहुंचा नीच निज देश।
सीता जी करती रहीं, फटकार भरे उपदेश।।
अपने महल में ले जाकर रावण ने सीता जी पर अपने साथ विवाह करने का दबाव बनाया। जब वह हर प्रकार से असफल हो गया तो उसने सीता जी को 12 महीने का समय दिया और स्पष्ट कर दिया कि यदि इतने काल में उसका पति उसे खोजता हुआ यहां आ गया और मुझसे युद्ध करने में वह विजयी हो गया तो ठीक है, अन्यथा तुम्हें मेरी पटरानी बनना ही पड़ेगा।
बारह मास निश्चित किये, यदि आए ना राम।
बनोगी मेरी भार्या, करो तब तक आराम।।
दशानन की सुन बात को , सीता जी हुईं मौन।
सत्यवती की लाज को, छेड़ सकेगा कौन।।
उधर जब रामचंद्र जी अपने भाई लक्ष्मण के साथ अपनी कुटिया पर पहुंचे और वहां उन्हें सीता नहीं मिली तो वह बहुत दु:खी हुए। अत्यंत शोकाकुल श्री राम ने अपने भाई लक्ष्मण के साथ मिलकर सीता की खोज का अभियान आरंभ किया।
सीता जी की खोज में, निकल पड़े दोऊ भ्रात।
खग मृगों से पूछते, घूम रहे दिन रात।।
भूखे प्यासे घूमते, पहुंच गए उस देश।
जटायु जहां घायल पड़ा, किया था युद्ध विशेष।।
रावण के अपराध का, खोल दिया सब राज।
सीता जी की मिल गई , सही सूचना आज।।
जटायु के उपकार पर , व्यक्त किया आभार।
पूर्ण मान सम्मान से , अंतिम किया संस्कार।।
जटायु जी का अंतिम संस्कार करने के पश्चात राम और लक्ष्मण पश्चिम दिशा की ओर चले। यहां से आगे तीन कोश चलने पर वे क्रौंच नाम के महावन में प्रविष्ट हुए। इस वन में उन्हें एक विकराल मुख वाली राक्षसी मिली । इसी का नाम अयोमुखी था। इस राक्षसी के नाक , कान और स्तनों को लक्ष्मण जी ने तलवार से काटकर अलग कर दिया। तब वह भयंकर नाद करती हुई जिधर से आई थी, उधर ही भाग गई। उसके भाग जाने के पश्चात वहां पर कबंध नाम का एक राक्षस उपस्थित हुआ।
अयोमुखी पापिन मिली, करने लगी आलाप।
लक्ष्मण ने उसका किया, शूर्पणखा सा हाल।।
कबंध अधम से हो गई, आगे चल मुठभेड़।
दोनों भुजाएं कट गईं , मारा खदेड़ खदेड़ ।।
बारे में सुग्रीव के , बोला सही कबंध।
उससे करना मित्रता, रखना सही संबंध।।
कबंध को युद्ध में पराजित करने के पश्चात श्रीराम जब आगे बढ़े तो उनका शबरी से परिचय हुआ।
शबरी के आतिथ्य से, हुए राम अभि भूत।
उपदेश दिया श्री राम ने, शबरी को खुशी खूब।।
शबरी ने कहा राम से, जीवन हुआ है धन्य।
ब्रह्म धाम को चल बसी, संचित करके पुण्य।।
डॉ राकेश कुमार आर्य
( लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता है। )