जेपी नड्डा के बयान पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की चुप्पी

प्रवीण दुबे

भारतीय जनता पार्टी के मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने क्या सच में इसबार चुनाव को लेकर उदासीनता बरती है। क्या भारतीय जनता पार्टी के बहुमत से दूर रहने के पीछे की यह एक प्रमुख वजह है।

कहा जा रहा है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इस बार बीजेपी के चुनाव अभियान के प्रति उदासीन रहा और चुनाव के दौरान पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा की टिप्पणी से नाराज था. इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक इंटरव्यू में जेपी नड्डा ने आरएसएस को एक “वैचारिक मोर्चा” या ‘आइडियोलॉजिकल फ्रंट’ बताया था और कहा था कि बीजेपी “अपने आप चलती है.”

हालांकि जेपी नड्डा का यह बयान चुनाव प्रचार के बीच सामने आया था और उसके बाद इस बयान को लेकर बहुत कुछ लिखा भी गया और कहा भी गया। संघ विचारों के विपरीत सोच रखने वाले वामपंथी और अर्बन नक्सलाइट सहित टुकड़े टुकड़े गैंग से संबंधित लेखकों और कथित बुद्धिजीवियों ने इस प्रसंग के माध्यम से भाजपा और संघ के बीच मतभेद पैदा कराने को लेकर पूरे का पूरा अभियान चलाया।

अब जबकि चुनाव समाप्त हो चुके हैं और आशातीत सफलता न मिल पाने के पीछे गिनाए जा रहे कारणों में एक प्रमुख कारण नड्डा के बयान के बाद संघ की उदासीनता या बेरूखी को बताया जा रहा है।

निसंदेह इस संपूर्ण घटनाक्रम ने देश के करोड़ों ऐसे लोगों को परेशान कर रखा है जिनकी राष्ट्रीय सोच है और इसी वजह से उनकी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा के प्रति भी श्रद्धा है।

लाखों ऐसे लोग हैं जो राष्ट्रवादी ताकतों को मजबूती मिले इस उद्देश्य को लेकर अनेक अभियानों जिसमें कि चुनाव भी शामिल है अपने सारे कार्य छोड़ सहयोग की दृष्टि से समय देते हैं ।

ऐसी देशभक्त ताकतें इस समय बेहद असमंजस में हैं कि इस प्रसंग को लेकर जो कुछ लिखा और कहा गया और अब जो चुनाव परिणाम सामने आए हैं वे क्या इसी बात पर कि संघ ने उदासीनता बरती वाली बात को सच साबित करते दिख रहे हैं।

अब ऐसे हालात में इस प्रसंग पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की चुप्पी बेहद आश्चर्यजनक दिखाई देती है। संघ को उसके क्रियाकलाप पर भ्रम पैदा करने वाले इस प्रसंग पर अपनी स्थिति स्पष्ट करने की जरूरत है।

यह सच है कि संघ के कार्य करने की अपनी एक शैली है समाज में उसको लेकर कोई क्या कह रहा है संघ कभी भी इस विवाद में उलझकर सीधे कोई जवाब नहीं देता है।

लेकिन जब किसी प्रसंग को लेकर भ्रम के हालात पैदा होने लगें और उसका फायदा संघ विरोधी ताकतें फूट डालने के लिए करती दिखाई दें तो संघ नेतृत्व की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह इसको लेकर अपनी स्थिति साफ करे। इसके लिए संघ के पास अपनी बात रखने के लिए तमाम माध्यम हैं जिनका कि उपयोग किया जा सकता है।

जहां तक उस बात का सवाल है जो कि नड्डा ने अपने इंटरव्यू में कही उसके पीछे दंभ या संघ के प्रति कोई अनादर का भाव नजर नहीं आता और यह कहना कि इसको लेकर संघ भाजपा से नाराज हो गया और चुनावों के प्रति उदासीनता धारण कर ली समझ से परे है

संघ बहुत दूरगामी सोच और विस्तृत अवधारणा के उद्देश्य को लेकर काम करने वाला संगठन है अतः ऐसा नहीं लगता कि नड्डा की किसी टिप्पणी को लेकर उसने मुंह फुलाकर चुनाव में काम नहीं किया होगा।

संघ में किसी बात को लेकर मतभेद तो संभव हो सकता है लेकिन इतने बड़े मनभेद को वहां कोई स्थान नहीं होता कि जिससे किसी बड़े उद्देश्य में संघ के कारण उदासीनता बरती जाए। अतः संघ को जल्द से जल्द इस प्रसंग की समाप्ति के लिए अपनी चुप्पी तोड़कर सच उजागर करना चाहिए।

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