हमें दिव्य संगति कैसे प्राप्त हो सकती है?
हमें दिव्य संगति कैसे प्राप्त हो सकती है?
हमें दिव्य संगति क्यों प्राप्त करनी चाहिए?
होतारं सप्त जुह््वो३ यजिष्ठं यं वाघतो वृृणते अध्वरेषु।
अग्निं विश्वेषामरतिं वसूनां सपर्यामि प्रयसा यामि रत्नम््।।
ऋग्वेद मन्त्र 1.58.7 (कुल मंत्र 680)
(होतारम्) पदार्थों का लाने वाला और स्वीकार करने वाला (सप्त) सात (जुह््वः) ज्ञान की आहुतियाँ देता है (यजिष्ठम्) आह्वान करता है (यम्) जिसको (वाघतः) बुद्धि की शक्ति (वृृणते) स्वीकार और धारण करता है (अध्वरेषु) दूसरों के कल्याण के लिए त्याग हेतु (अग्निम्) सर्वोच्च ऊर्जा, परमात्मा को (विश्वेषाम्) सब (अरतिम्) उपलब्ध कराता है (वसूनाम्) आवास के लिए (सपर्यामि) उस अग्नि, परमात्मा की मैं पूजा करता हूँ, आह्वान करता हूँ (प्रयसा) प्रयास के साथ, संवेदनशील प्रेम के साथ (यामि) प्राप्त करने के लिए (रत्नम््) गौरवशाली सम्पदा, भोगने लायक आनन्द।
व्याख्या:-
हमें दिव्य संगति कैसे प्राप्त हो सकती है?
अग्नि, सर्वोच्च ऊर्जा, परमात्मा! आप हर पदार्थ को लाने वाले और देने वाले हो जिसे बुद्धि की सात शक्तियाँ ज्ञान की आहुति देते हुए आह्वान करती हैं, स्वीकार करती हैं और धारण करती हैं जिससे दूसरों का कल्याण हो। आप सबके आवास के लिए हर पदार्थ उपलब्ध कराते हो।
मैंे, परमात्मा के आनन्द को भोगने के समान, गौरवशाली सम्पदा को प्राप्त करने के लिए उस अग्नि, परमात्मा की अपने प्रयासों और संवेदनशील प्रेम के साथ पूजा करता हूँ और आह्वान करता हूँ। बुद्धि की सात शक्तियाँ हैं – पांच ज्ञानेन्द्रियाँ, मन तथा बुद्धि। इन्हें सात ऋषि भी कहा जाता है।
जीवन में सार्थकता: –
हमें दिव्य संगति क्यों प्राप्त करनी चाहिए?
हमारी सभी इन्द्रियाँ, हमारे शरीर का प्रत्येक अंग, प्रत्येक क्षण, इस जीवन में सर्वोच्च दिव्यता की संगति के लिए ही लगना चाहिए। सर्वोच्च दिव्यता की संगति प्राप्त करने के दो स्पष्ट कारण हैं:-
1. क्योंकि दूसरों के कल्याण के लिए त्याग करने योग्य प्रत्येक वस्तु को केवल वही उपलब्ध कराता है।
क्योंकि केवल उसकी संगति ही हमें गौरवशाली सम्पदा अर्थात् भोगने लायक आनन्द प्रदान कर सकती है।
महर्षि दयानन्द सरस्वती जी ने इस मन्त्र का एक सूत्रीय फार्मूला दिया है:-
‘‘जो लोग, अपनी आत्मा को जानकर, परब्रह्म को जानते हैं, केवल वही मुक्ति प्राप्त करते हैं।’’
अपने आध्यात्मिक दायित्व को समझें
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