पं चमूपति जी के स्वामी दयानंद जी के प्रति उदगार
पं चमूपति जी के स्मृति दिवस 15 जून के अवसर पर प्रकाशित
पं चमूपति जी लिखते हैं कि आज केवल भारत नहीं, सारे संसार पर दयानंद का सिक्का है। मतों के प्रचारकों ने अपने मन्तव्य बदल लिए हैं, धर्म पुस्तकों का संशोधन किया है, महापुरूषों की जीवनियों में परिवर्तन किया है। स्वामी जी का जीवन इन जीवनियों में बोलता है।ऋषि मरा नहीं करते, अपने भावों के रूप में जीते हैं।
दलितोद्धार का प्राण कौन है? पतित पावन दयानंद। समाज सुधार की जान कौन है? आदर्श सुधारक दयानंद। शिक्षा के प्रचार की प्रेरणा कहां से आती है? गुरूवर दयानंद के आचरण से। वेद का जय जयकार कौन पुकारता है? ब्रह्मर्षि दयानंद। माता आदि देवियों के सत्कार का मार्ग कौन सिखाता है? देवी पूजक दयानंद। गोरक्षा के विषय में प्राणीमात्र पर करूणा दिखाने का बीड़ा कौन उठाता है? करूणानिधि दयानंद।
आओ हम अपने आप को ऋषि दयानंद के रंग में रंगे। हमारा विचार ऋषि का विचार हो, हमारा अचार ऋषि आचार हो, हमारा प्रचार ऋषि का प्रचार हो। हमारी प्रत्येक चेष्टा ऋषि की चेष्टा हो। नाड़ी नाड़ी से धवनि उठे।
महर्षि दयानन्द
पापों और पाखंङो से ऋषि
राज छुङाया था तूने।
भयभीत निराश्रित जाति को,
निर्भिक बनाया था तूने।।
बलिदान तेरा था अदिव्तीय
हो गई दिशाएं गुंजित थी
जन जन को देगा प्रकाश वह
दीप जलाया था तूने।।
हमारा सौभाग्य है और अपने इस सौभाग्य पर हमें गर्व है कि हम महर्षि दयानंद द्वारा प्रदर्शित ईश्वरीय ज्ञान वेदों के अनुयायी हैं। महर्षि दयानंद द्वारा प्रदर्षित मार्ग ऐहिक व पारलौकिक उन्नति अथवा अभ्युदय व नि:श्रेयस प्राप्त कराता है। इसे यह भी कह सकते हैं कि वेद मार्ग योग का मार्ग है। जिस पर चलकर धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष की प्राप्ति होती है। संसार की यह सबसे बड़ी संपदाये हैं। अन्य सभी भौतिक संपदाये तो नाशवान हैं परन्तु दयानंद जी द्वारा दिखाई व दिलाई गई संपदाये जीते जी तो सुख देती हैं मरने के बाद भी लाभ ही लाभ पहुंचाती है। इसी के साथ लेखनी को विराम देते हैं।
#dayanand200