ओ३म् -श्रद्धांजलि- ‘शीर्ष वैदिक विद्वान् और अपने व्याख्यानों से श्रोताओं को सम्मोहित करने वाले ऋषिभक्त आचार्य वेद प्रकाश श्रोत्रिय जी नहीं रहे’

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आर्यसमाज के शीर्ष विद्वान् एवं समर्पित ऋषिभक्त आचार्य पं. वेदप्रकाश श्रोत्रिय जी अब नहीं रहे। शनिवार दिनांक 11-5-2024 की रात्रि लगभग 1.00 उनकी मृत्यु का समाचार फेसबुक पर उनके भक्तों द्वारा डाली गई कुछ पोस्टों से ज्ञात हुआ। आचार्य श्रोत्रिय जी आर्यसमाज के शीर्ष विद्वान् एवं ऋषिभक्त एक अद्वितीय विद्वान थे। वह धारा प्रवाह बोलते थे। उनके व्याख्यान का प्रभाव ऐसा था जिसे शब्दों में बताया नहीं जा सकता। हम जब उनके प्रवचन सुना करते थे तो मन्त्रमुग्ध हो जाते थे। यह व्याख्यान शैली उनको अपने विद्यागुरु आचार्य विश्वबन्धु शास्त्री जी से मिली थी ऐसा हमारे कुछ मित्र बताते हैं। उनकी भाषा संस्कृतनिष्ठ, अलंकारिक एवं काव्यात्मक सी लगती थी। श्रोतात्रों के मन व मस्तिष्क पर उसका अद्भुत प्रभाव होता था। श्रोता उनके व्याख्यान को सुनकर स्वयं को सम्मोहित हुआ अनुभव करते थे। अब उनकी वह वाणी सदा के लिए मौन हो गई है। अब उनके प्रशंसक एवं भक्त उनकी वाणी को आडियो एवं वीडियों के अतिरिक्त सीधे उनके श्रीमुख से नहीं सुन सकेंगे। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि ईश्वर उनकी आत्मा को शान्ति एवं सद्गति प्रदान करें। वह पुनः भारत भूमि में जन्म लेकर ऋषि मिशन के कार्य को सफल करने का प्रयास करें। उच्च संस्कारों से युक्त उनकी आत्मा के लिए ऐसी प्रार्थना करना हमें सार्थक लगता है।

आचार्य वेद प्रकाश श्रोत्रिय जी का जन्म उत्तर प्रदेश के बदायूं जनपद के ग्रामीण अंचल में हुआ था। वहां उनके पिता और उनका परिवार आज भी निवास करते हैं। श्रोत्रिय जी लम्बे समय से दिल्ली में अपने परिवार के साथ निवास करते थे। श्रोत्रिय जी ऐसे विद्वान थे जिन्होंने गुरुकुल परम्परा से संस्कृत भाषा का अध्ययन किया था और आधुनिक भौतिक विज्ञान आदि अनेक विषयों का भी उनको उच्चस्तरीय ज्ञान था। उन्होंने विदेशों में जाकर अंग्रेज विद्वानों, वैज्ञानिकों के मध्य भी वैदिक सिद्धान्तों का तर्क एवं युक्ति के साथ पोषण किया था और विदेशी विद्वानों से वैदिक सिद्धान्तों का लोहा मनवाया था।

हमने पं. वेदप्रकाश श्रोत्रिय जी के दर्शन फरवरी, सन् 1997 में उदयपुर में आयोजित सत्यार्थप्रकाश न्यास के तीन दिवसीय सत्यार्थप्रकाश-महोत्सव में किए थे। यहां हमने उनके अनेक व्याख्यान सुने थे। ऐसे प्रभावशाली एवं मन्त्रमुग्ध कर देने वाले व्याख्यान हमने जीवन में पहली बार सुने थे। इस आयोजन में स्वामी विद्यानन्द सरस्वती जी का सम्मान किया गया था तथा उन्हें उनके योगदान के लिए 31 लाख रूपये की सम्मान धनराशि भेंट की गई थी जिसे स्वामी जी महाराज ने न्यास को न्यास की योजनाओं को पूरा करने के लिए लौटा दी थी। सौभाग्य से उदयपुर महोत्सव समाप्त होने के बाद हम जिस रेलगाड़ी से दिल्ली आ रहे थे उसी गाड़ी के उसी कोच में श्रोत्रिय जी, पं. राजेन्द्र जिज्ञासु जी, डा. सुरेन्द्र कुमार (मनुस्मृति के भाष्यकार एवं समीक्षक) एवं अन्य कुछ ऋषि भक्त यात्रा कर रहे थे। हमने इस महोत्सव में विद्वानों के जो जो व्याख्यान सुने और अन्य जिन वक्ताओं को सुना था उसका विस्तृत समाचार लिखकर स्थानीय एवं आर्यसमाज की पत्र-पत्रिकाओं को भेजा था। सर्वहितकारी के अंक में पूरे पृष्ठ का यह समाचार प्रकाशित हुआ था। श्रोत्रिय जी से यह हमारे पहले परिचय का वृतान्त है।

जून सन् 2000 में देहरादून में गुरुकुल पौंधा की स्थापना स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती जी ने की थी। इसके बाद से जून के प्रथम रविवार को समाप्त किए जाने वाले तीन दिवसीय उत्सव गुरुकुल में होते आ रहे हैं। हमें अब तक गुरुकुल के सभी उत्सवों में सम्मिलित होने का अवसर मिला है। श्री वेद प्रकाश श्रात्रिए, डा. रघुवीर वेदालंकार, स्वामी धर्मेश्वरानन्द सरस्वती, डा. सोमदेव शास्त्री, डा. ज्वलन्त कुमार शास्त्री, पं. धर्मपाल शास्त्री, मेरठ, ओम्प्रकाश वर्मा, यमुनानगर, पं. सत्यपाल पथिक जी अमृतसर स्वामी प्रणवानन्द जी के निकट सहयोगी विद्वान रहे हैं। यह सभी प्रत्येक वर्ष गुरुकुल के उत्सवों में आते रहे हैं। अतः सन् 2020 से हमें गुरुकुल पौंधा में आचार्य श्रोत्रिय जी के व्याख्यानों को सुनने का अवसर मिलता आ रहा था। हम श्रोत्रिय जी के जो उपदेश सुनते थे उन्हें अपनी नोट बुक में लिखते थे जिसका समाचार वा विज्ञप्ति बनाकर उसे फेसबुक, व्हटशप तथा इमेल के द्वारा पत्र-पत्रिकाओं को प्रसारित करते थे। हमारे लिखे इन वर्णनों के आधार पर गुरुकुल पौंधा-देहरादून की मासिक पत्रिका के कुछ वर्षों के अंक भी प्रकाशित हुए हैं। इस कार्य को करते हुए हम इन विद्वानों के मानसिक रूप से निकट आ गये थे। इन सबसे सम्वाद भी करते थे और उनका आशीर्वाद भी प्राप्त करते थे। करोना रोग के कारण जून, 2020 का उत्सव विद्वानो ंसे आनलाइन सम्पर्क कर फेसबुक एव यूट्यूब पर लाइव प्रसारित करके किया गया था। ऐसा ही शायद जून, 2021 का उत्सव भी फेसबुक आदि के द्वारा गुरुकुल प्रेमियों तक मोबाइल फोन आदि के माध्यम से लाइव प्रेषित व प्रसारित किया गया था। रोग के कारण जून, 2020 के उत्सव के बाद श्रोत्रिय जी गुरुकुल नही आ सके थे। इस बीच कभी कभी कुछ महीनों के अन्तर पर वह हमें फोन करते थे, हालचाल पूछते थे और हमें अनेक परामर्श देते थे जो अत्यन्त उपयोगी होते थे।

हमें आचार्य श्रोत्रिय जी के व्याख्यानों को सुनने का अवसर गुरुकुल गौतमनगर, दिल्ली के दिसम्बर महीने में होने वाले उत्सवों के अवसर पर भी मिला। एक बार हम किसी कार्य से दिल्ली गए थे। दिल्ली में हमारा प्रवास गुरुकुल गौतमनगर, दिल्ली में स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती के पास होता था। उस दिन श्रोत्रिय जी स्वामी जी से चर्चा करने आये हुए थे। हम भी उस अवसर पर चर्चा में सम्मिलित हुए थे। उस दिन की भेंट को भी हम अपने जीवन में एक सौभाग्य दिवस के रूप में अनुभव करते हैं।

श्री श्रोत्रिय जी का निधन आर्यसमाज की बहुत बड़ी क्षति है जिसकी पूर्ति नहीं हो सकती। श्रोत्रिय जी के बहुत से व्याख्यान यूट्यूब पर उपलब्ध हैं। पाठक उपनी रूचि के अनुसार उनका कोई व्याख्यान सुन सकते हैं और उनके व्यक्तित्व एवं व्याख्यान के गुणों से परिचित हो सकते हैं। श्री श्रोत्रिय जी हमें अपने शेष जीवन काल में याद आते रहेंगे। हम उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं और उनके परिवार जनों के साथ सम्वेदना में स्वयं को सम्मिलित करते हैं। ओ३म् शम्।

-मनमोहन कुमार आर्य

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