प्रधानमंत्री मोदी बनेंगे तीसरी बार पीएम ?

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इस समय 17वीं लोकसभा का चुनाव प्रचार अपने चरम पर है।
प्रधानमंत्री मोदी ने प्रारंभ से ही इस चुनाव को गंभीरता से लेते हुए ‘भाजपा 400 पार’ का नारा दिया है। उनके विरोधियों का कहना है कि प्रधानमंत्री मोदी घबरा गए हैं।इसलिए वह लोगों को भ्रमित करने के लिए 400 पार की बात कर रहे हैं। भाजपा और विशेष रूप से मोदी विरोधी राजनीतिक दल मोदी के इस नारे की हवा निकालने के लिए बार-बार यही रट लगा रहे हैं कि मोदी पराजित मानसिकता का शिकार हो गए हैं।
यदि अब तक के 16 लोकसभा चुनावों के परिणामों पर हम विचार करें तो जिस समय भारत में बहुत कम पढ़े-लिखे लोग थे, उस समय भी हमारे देश के लोगों ने बहुत सोच समझ कर मतदान किया था। नेहरू और इंदिरा गांधी को उनकी लोकप्रियता के कारण वोट मिला। 1977 में इंदिरा गांधी इसलिए हारी थीं कि वह अपनी लोकप्रियता खो चुकी थीं। पर जब देश के लोगों ने देखा कि मोरारजी देसाई या जनता पार्टी का कोई भी नेता उनका विकल्प नहीं बन पाया तो लोगों ने फिर इंदिरा गांधी को चुन लिया। राजीव गांधी का चुनाव केवल सहानुभूति लहर बन जाने के कारण किया गया था। जैसे ही लोगों के दिमाग से सहानुभूति लहर समाप्त हुई तो लोगों को यह देखने समझने में देर नहीं लगी कि राजीव गांधी एक अपरिपक्व नेता थे। लोगों ने प्रचंड बहुमत से जीते हुए राजीव गांधी को उनकी राजनीतिक अपरिपक्वता का दंड देते हुए उन्हें सत्ता से हटा दिया।
वी0पी0 सिंह, चंद्रशेखर, एच0डी0 देवगौड़ा , इंद्र कुमार गुजराल आदि अल्पावधि के लिए बने प्रधानमंत्री परिस्थितियों की उपज थे। उनकी कोई लोकप्रियता नहीं थी। उस समय देश संक्रमण काल से गुजर रहा था। पहले को छोड़कर नये की तलाश थी। पी0वी0 नरसिम्हाराव योग्य और विद्वान प्रधानमंत्री थे, पर वह भी जनता की पसंद ना होकर कांग्रेस की मजबूरी थे, इसलिए कभी लोकप्रिय नहीं हो पाए। डॉ मनमोहन सिंह अच्छे अर्थशास्त्री थे, पर उनको भी जनता ने नहीं चुना। उन्हें पार्टी ने चुना और जिस समय जनता नया नेता खोज रही थी उस समय उन्होंने 10 साल तक देश को धीमी गति से आगे बढ़ाने का काम किया। जहां तक अटल जी की बात है तो 1999 का चुनाव वह अपनी लोकप्रियता के कारण ही जीत पाए थे। पर अगला चुनाव वह नहीं जीत पाए क्योंकि फीलगुड भाजपा को तो हो रहा था, पर जनता को नहीं हो रहा था।
कुल मिलाकर 2014 में लोगों को मोदी के रूप में एक लोकप्रिय नेता मिला। जिसे उन्होंने 2019 के चुनाव में भी जिताया। इस लोकप्रिय नेता के बारे में देखने वाली बात है कि क्या इसका आचरण, व्यवहार देश विरोधी है या देश के लिए खतरनाक सिद्ध हो चुका है ? ऐसा कहीं से कोई संकेत नहीं मिलता कि जनता प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता से खिन्न है और प्रधानमंत्री मोदी जनता के बीच अलोकप्रिय हो चुके हैं।
प्रधानमंत्री मोदी की जीत की पहली गारंटी यही है कि वह निरंतर अपनी लोकप्रियता को बनाए रखने में सफल हुए हैं। देश किसी भी दृष्टिकोण से 1977 जैसे हालात से नहीं गुजर रहा है, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी लोगों के बीच अलोकप्रिय हो गई थीं।
कुछ समय पूर्व शीर्ष अर्थशास्त्री सुरजीत भल्ला ने कहा था कि 2024 में भारतीय जनता पार्टी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में 330 से 350 तक सीटें अपने दम पर ला सकती है। पिछले 40 वर्ष से चुनावों पर नजर रखने वाले श्री भल्ला ने एनडीटीवी को इंटरव्यू देते समय कहा कि जब वह भाजपा के बारे में यह कह रहे हैं कि वह 330 से 350 तक सीटें ला सकती है तो उनके कहने का अभिप्राय केवल भाजपा से है। उसके गठबंधन के साथी अलग से अपनी सीटें लेंगे। इस प्रकार भाजपा 400 पार जा सकती है। उनका यह भी कहना है कि भाजपा आश्चर्यजनक परिणाम देते हुए तमिलनाडु में भी पांच सीट ला सकती है। श्री भल्ला अपनी नई किताब ‘हाउ वी वोट’ का विमोचन करने के उपरांत उपरोक्त चैनल के साथ बातचीत कर रहे थे। उनका मानना है कि 2019 की अपेक्षा 2024 में भाजपा 5 से 7 सीट अधिक मिल सकती है। जबकि कांग्रेस 44 सीटों पर सिमट सकती है। श्री भल्ला ने अपने अनुभव के आधार पर कहा कि देश के लोग अर्थव्यवस्था को देखकर वोट करते हैं। इस समय देश की अर्थव्यवस्था बहुत ही संतोषजनक दौर से गुजर रही है। इसके अतिरिक्त देश का नेतृत्व भी मतदाताओं की दृष्टि में होता है । इसके लिए कहा जा सकता है कि प्रधानमंत्री मोदी का नेतृत्व निश्चित रूप से मतदाताओं को प्रभावित कर रहा है।
इसके उपरांत भी मोदी को देश का तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने से रोकने के लिए देश के भीतर की राष्ट्र विरोधी शक्तियां जिस प्रकार ध्रुवीकरण कर रही हैं और उनका साथ देने के लिए जिस प्रकार अमेरिका, कनाडा, चीन और पाकिस्तान जैसे देश भारत की अंदरूनी राजनीति में हस्तक्षेप कर रहे हैं, वह सब भी चिंता का विषय है। केजरीवाल को चुनाव प्रचार के लिए सर्वोच्च न्यायालय से जमानत मिल जाना बहुत कुछ मायने रखता है। इन सबसे यह बात भी स्पष्ट हो जाती है कि घबराहट प्रधानमंत्री मोदी को नहीं है, घबराहट देश विरोधी शक्तियों को है जो देश की सत्ता को कब्जाने के लिए प्रत्येक घटिया स्तर उतरने के लिए तैयार हैं।
यह देश के सनातन की सुरक्षा के लिए ही रहा चुनाव है। देश की संस्कृति की रक्षा के लिए, देश के सांस्कृतिक मूल्यों की रक्षा के लिए, सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की रक्षा के लिए और वेद तथा वैदिक संस्कृति को बचाने के लिए हो रहा चुनाव है। तनिक ध्यान से देखिए एक व्यक्ति को घेरने के लिए कितने लोग खड़े हैं ? और देश के भीतर के ‘जयचंद’ ही नहीं बाहर के गौरी, गजनी और लॉर्ड मैकाले सब एक साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं ? चेहरे बदल गए हैं, पर चाल और चरित्र वही हैं। पात्र बदल गए हैं पर भूमिका वही है। इसलिए संभलकर खेलने की आवश्यकता है।
हम भविष्यवक्ता तो नहीं हैं और ना ही किसी प्रकार की भविष्यवाणी में विश्वास करते हैं पर इतना निश्चित है कि यदि सब कुछ सामान्य रहा और हमने किसी प्रकार के आलस्य या प्रमाद का परिचय नहीं दिया तो एक शानदार बहुमत के साथ प्रधानमंत्री मोदी सत्ता में वापसी कर रहे हैं।

डॉ राकेश कुमार आर्य
( लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता है।)

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