भागवत कथा रहस्य* भाग 3
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भागवत कथा कहने वाले कथाकार कुछ कहानियों का सहारा लेते हैं,लेकिन ये कहानियां वास्तविक घटना नहीं,अपनी बात को प्रभावी ढंग से कहने के लिए होती है।परंतु इसका दुखद पहलू ये है की ये कथाकार इस मनघड़ंत कहानी को ही सच बताने लगते है और सच सामने नही लाते।
गजेंद्र मोक्ष कथा
गजेंद्र मोक्ष की कथा भागवत पुराण में आती है जिसमें ग्राह और गजेंद्र के युद्ध का वर्णन है। कथा इस प्रकार है.
एक बार की बात है कि गजेन्द्र अपने साथियो सहित तृषाधिक्य (प्यास की तीव्रता) से व्याकुल हो गया। वह कमल की गंध से सुगंधित वायु को सूंघकर एक चित्ताकर्षक विशाल सरोवर के तट पर जा पहुंचा। गजेन्द्र ने उस सरोवर के निर्मल,शीतल और मीठे जल में प्रवेश किया। पहले तो उसने जल पीकर अपनी तृषा बुझाई, फिर जल में स्नान कर अपना श्रम दूर किया। तत्पश्चात उसने जलक्रीड़ा आरम्भ कर दी। वह अपनी सूंड में जल भरकर उसकी फुहारों से हथिनियों को स्नान कराने लगा। तभी अचानक पता नहीं किधर से एक मगर ने आकर उसका पैर पकड़ लिया था। गजेन्द्र ने अपना पैर छुड़ाने के लिए पूरी शक्ति लगाई परन्तु उसका वश नहीं चला, पैर नहीं छूटा। अपने स्वामी गजेन्द्र को ग्राहग्रस्त देखकर हथिनियां, कलभ और अन्य गज अत्यंत व्याकुल हो गए। वे सूंड उठाकर चिंघाड़ने और गजेन्द्र को बचाने के लिए सरोवर के भीतर-बाहर दौड़ने लगे। उन्होंने पूरी चेष्टा की लेकिन सफल नहीं हुए।
संघर्ष चलता रहा। गजेन्द्र स्वयं को बाहर खींचता और ग्राह गजेन्द्र को भीतर खींचता। सरोवर का निर्मल जल गंदला हो गया था। कमल-दल क्षत-विक्षत हो गए। जल-जंतु व्याकुल हो उठे। गजेन्द्र और ग्राह का ये संघर्ष एक सहस्त्र वर्ष तक चलता रहा। दोनों जीवित रहे। यह द्रश्य देखकर देवगण चकित हो गए।
अंततः गजेन्द्र का शरीर शिथिल हो गया परन्तु जलचर होने के कारण ग्राह की शक्ति में कोई कमी नहीं आई।वह नवीन उत्साह से अधिक शक्ति लगाकर गजेन्द्र को खींचने लगा। असमर्थ गजेन्द्र के प्राण संकट में पड़ गए। उसकी शक्ति और पराक्रम का अहंकार चूर-चूर हो गया। और दुखिहोकर इस निश्चय के साथ गजेन्द्र मन को एकाग्र कर पूर्वजन्म में सीखे श्रेष्ठ स्त्रोत द्वारा परम प्रभु की स्तुति करने लगा।
गजेन्द्र की स्तुति सुनकर सर्वात्मा सर्वदेव रूप भगवान विष्णु प्रकट हो गए। गजेन्द्र को पीड़ित देखकर भगवान विष्णु गरुड़ पर आरूढ़ होकर अत्यंत शीघ्रता से उक्त सरोवर के तट पर पहुंचे।गजेन्द्र की स्तुति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने सबके समक्ष कहा- “प्यारे गजेन्द्र ! जो लोग ब्रह्म मुहूर्त में उठकर तुम्हारी की हुई स्तुति से मेरा स्तवन करेंगे, उन्हें मैं मृत्यु के समय निर्मल बुद्धि का दान करूँगा।”
यह कहकर भगवान विष्णु ने पार्षद रूप में गजेन्द्र को साथ लिया और गरुडारुड़ होकर अपने दिव्य धाम को चले गए।
कथा का विश्लेषण
गजेंद्र मोक्ष्य कथा के द्वारा एक संदेश दिया है की ब्रह्म मुहूर्त में जो संध्या ,ईश्वर स्तुति आदि द्वारा परमपिता का ध्यान वा उपासना करते है तो ईश्वर भी उनकी मदद करते है।
ये कथा वास्तविक घटना नहीं है,ये एक अलंकारिक कथानक है। इसलिए इस कथा का वास्तविक सन्देश समझे।
गजेंद्र मोक्ष का प्रतीकात्मक अर्थ यह है कि भौतिक इच्छाएं, अज्ञानता और पाप इस दुनिया में कर्मों की एक अंतहीन श्रृंखला बनाते हैं और कीचड़ भरे तालाब में फंसे एक असहाय हाथी को शिकार करने वाले मगरमच्छ के समान हैं। जिस क्षण भी सांसारिक कष्टों से त्रस्त मानव ईश्वर की शरण में जाता है तो उसका अन्धकार मिटने लगता है और तभी मोक्ष्य को प्राप्ति संभव है। अन्यथा सांसारिक दलदल में हमेशा फसे रहोगे।
गज का शरीर से विशाल होने का मतलब उसका बुद्धिमान होना सिद्ध नही होता । संकट कभी भी और किसी भी प्राणी के सामने आ सकते हैं,जिनसे हिम्मत के साथ संघर्ष करना चाहिए और साथ ही परमपिता को भी याद करे ।
अहंकार का त्याग जरुरी है ,नहीं तो संसार में ग्राह रुपी दुश्मन पैर खींचने को तैयार रहते है और ये सांसारिक युद्ध अंतहीन है ,प्रभु का मार्ग हो मुक्ति दिला सकता है।
कथानक में गज भोगी और विलासी मन का प्रतीक जाना गया है। विलासी या भोग मे रत मनुष्य को बोध ही नहीं रहता, कि उसका जीवन किसी भी भांति दलदल या कीचड़ मे है। और फिर इस दलदल में फसने के बाद उससे निकलना आसान नहीं होता ,जिसमे पूरा जीवन ही नहीं ,कई कई जीवन व्यतीत हो जाते है।
मनुष्य को मोक्ष्य की कल्पना करना और वास्तव में मोक्ष्य के लिए प्रयास करना दोनों में भारी अंतर है। मनुष्य का जन्म कर्म करने के लिए और सद्कर्मो द्वारा मोक्ष्य के लिए अग्रसर होने के लिए है। मनुष्य जब कष्ट में होता है तब ईश्वर ही उसका अंतिम सहारा है। दयालु ईश्वर का ध्यान और उसकी उपसना ही कष्टों से मुक्ति दिलाती है। यही मोक्ष्य का रास्ता है।
ध्यान रहे इस कहा के सुनने मात्र से मोक्ष्य की कल्पना करना मूर्खता से ज्यादा कुछ नहीं है।