आधुनिक राम-काव्य का महत्व
(डॉ. परमलाल गुप्त – विनायक फीचर्स)
समस्त भारतीय साहित्य में राम-काव्य का महत्वपूर्ण स्थान है। संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, तमिल, तेलुगू, मलयालम, कन्नड़, मराठी, उडिय़ा, बंगला, असमिया, हिन्दी आदि सभी भाषाओं में प्रचुर परिमाण में राम-काव्य की रचना हुई है। हिन्दी में उसके आदि काल से ही राम-काव्यों की भी बड़ी संख्या है। आधुनिक राम-काव्य पूर्ववर्ती परम्परा का अनुवर्तन मात्र नहीं है। वह आधुनिक युग चेतना से संयुक्त है। उसमें राष्ट्रीय और सांस्कृतिक उत्थान के नवीन स्वर, प्रवृत्ति मूलक जीवन दर्शन की व्याख्या, मानवतावाद के आदर्श की व्यंजना, नवीन विचार और कला के विविध मौलिक प्रयोग मिलते हैं। अपनी सीमाओं के होते हुए भी आज भी राम-काव्य धारा का क्रम टूटा नहीं है। काव्य अपने युग की सामाजिक प्रवृत्तियों का प्रतिनिधित्व करता है। आधुनिक राम-काव्य पर भी भारत के राष्ट्रीय जागरण, धर्म की तत्वग्राही प्रवृत्ति, सामाजिक संगठन में परिवर्तन, जीवन-मान के बदलते हुए स्वरूप, वैचारिक क्रान्ति और साहित्यिक विकास का प्रभाव पड़ा है। आधुनिक युग की नवीन बौद्धिक चेतना ने जिस प्रकार वर्ण-व्यवस्था, परिवार, धर्म, नैतिक-संबंध, राजनीति आदि को प्रभावित किया है, उसी प्रकार साहित्यिक क्षेत्र में भी पुनरुत्थानवाद-छायावाद-प्रगतिवाद, प्रयोगवाद आदि विकास की नई दिशाएं दी हैं। आधुनिक राम-काव्य में भी नवीन चिन्तन का उन्मेष और आधुनिक प्रवृत्तियों की छाप है। अनेक विद्वानों ने राम-कथा का संबंध वेदों से जोड़ा है, परन्तु वाल्मीकि ही प्रचलित राम-कथा के आदि प्रवर्तक और आदि कवि हैं। प्राय: सभी राम-काव्यों पर वाल्मीकि का ऋण है। वाल्मीकि रामायण में कथा का प्राकृत रूप विद्यमान है। परन्तु काल-क्रम से राम को ब्रह्म मानकर इसे धार्मिक रूप दे दिया गया। संस्कृत में वैष्णव उपनिषदों, वैष्णव संहिताओं, स्तवराज और गीतियों, पुराणों, साम्प्रदायिक रामायणों आदि के रूप में विपुल धार्मिक साहित्य की रचना की गई। ललित साहित्य में अनेक महाकाव्य, नाटक, शृंगारिक खण्डकाव्य, श्लेष-काव्य, विलोम काव्य और चित्रकाव्य लिखे गये। संस्कृत में जैन परम्परा का साहित्य भी मिलता है। प्राकृत और अपभ्रंश में बौद्ध तथा जैन परम्परा दोनों की राम-कथा मिलती है। हिन्दी में तुलसीदास के अविर्भाव से पूर्व जैन काव्यों, वीर गाथाओं, मधुर उपासना तथा भक्ति परम्परा के राम काव्यों में राम कथा के विविध रूप विद्यमान थे। तुलसीदास ने अपनी रचनाओं में राम को सगुण ब्रह्म मानकर भक्ति की मंदाकिनी प्रवाहित की। तुलसीदास के पश्चात रीतिकालीन धारा और रसिक भक्ति परम्परा में विपुल साहित्य की रचना हुई। इन काव्यों में विनय, महात्म्य, नख-शिख, अष्टयाम, चर्या, युगल-लीला और शृंगार का वर्णन है। आधुनिक राम-काव्य में राम कथा को नवीन अर्थों से संयुक्त किया गया। अन्य भारतीय भाषाओं में भी अनेक महत्वपूर्ण राम काव्यों की रचना हुई है। हिन्दी के आधुनिक राम काव्य के विकास का क्रम इस प्रकार है-
1. भारतेन्दु युग- इस युग में यद्यपि साहित्य की अनेक विधाओं और नवीन विषयों का समावेश हो गया था तथापि काव्य रचना ब्रजभाषा की प्राचीन परम्परा पर चल रही थी। इसलिए इस काल का राम काव्य भी परम्परा की कड़ी के रूप में दिखाई देता है।
2. द्विवेगी युग- यह साहित्य का वास्तविक पुनरुत्थान काल है, इसलिए इस काल की रचनाओं में नया भाव-बोध मिलता है। इस काल में अनेक स्फुट रचनाओं के अतिरिक्त रामचरित-चिन्तामणि, रामचरित चंद्रिका सीता-परित्याग, सुलोचना सती, लीला, पंचवटी, साकेत, कौशल-किशोर, वैदेही-वनवास आदि अनेक महत्वपूर्ण काव्य रचे गए।
3. स्वच्छंदतावादी युग- इस काल में आत्माभिव्यंजन की प्रेरणा प्रमुख थी, फिर भी काव्य-रूपों के विविध प्रयोग मिलते हैं। नाट्य कविता पंचवटी-प्रसंग, कथा-कविता, राम की शक्ति-पूजा, प्रबंध काव्य उर्मिला, गीति कथा-काव्य अशोक-वन इसी धारा की रचनाएं कही जा सकती हैं।
4. अधुनातन युग- छायावादोत्तर काल में साकेत-सन्त, राम-राज्य (कमलेश), कैकयी, कल्याणी कैकयी, अशोक-वन (गोकुल चन्द्र), सती सीता, रावण महाकाव्य, विदेह, सीता, माण्डवी, उर्मिला (प्रियदर्शी), राम-राज्य (मित्र), सीतान्वेषण, अग्नि-परीक्षा, प्रिया या प्रजा, नन्दीग्राम आदि अनेक काव्य और निर्वासिता सीता का एक गीत, पाषाणी, जल रहे हैं दीप, जलती है जवानी आदि स्फुट रचनाएं मिलती हैं। इन रचनाओं में राष्ट्रीय पुनरुत्थान, बुद्धिवाद और नई सामाजिक चेतना का बोध मिलता है।
5. आधुनिक रामकाव्य का वस्तु-विन्यास काव्य-शास्त्र के लक्षणों का अनुगमन नहीं करता। कुछ काव्य, जैसे रामचरित-चिन्तामणि, कौशल-किशोर, वैदेही-वनवास आदि परम्परागत रुढिय़ों से युक्त विवरणात्मक कथा-वस्तु रखते हैं और कुछ यथा, साकेत, साकेत-सन्त, कैकयी, उर्मिला, राम-राज्य, विदेह आदि नवीन प्रयोग से युक्त कलात्मक कथा-वस्तु। इन काव्यों की वस्तु-वर्णना में नाटकीयता, रोचकता आदि का विधान किया गया है। कथा-रचना में मुख्य उद्देश्य प्राय: लोकादर्श की स्थापना रहा है, इसलिए कथा का विकास और उसकी परिणति इसी उद्देश्य से की गई है। साकेत और कैकयी में स्थान- अन्निवति का सफल प्रयोग हुआ है, परन्तु कार्यान्विति अविच्छिन्न नहीं है। विदेह, उर्मिला आदि में भी कार्यान्वित का अभाव है। ये सब चरित-काव्य हैं इसलिए इनमें अन्विति का विधान कार्य-व्यापार की न्यूनता और मानसिक व्यापारों की प्रधानता दिखाई देती है। साकेत का घटना चक्र सर्वाधिक जटिल है, फिर भी इसमें प्रभावान्विति का सुन्दर निर्वाह हुआ है। रामचरित-चिन्तामणि, कौशल-किशोर, वैदेही, वनवास, उर्मिला, विदेह आदि का कथानक शिथिल है और प्रभावान्विति विरल। प्रसंग-कौशल और प्रसंग-निर्वाह में गुप्त जी अद्वितीय है। आधुनिक रामकाव्य में प्रसंगों की अनेक नवीन उद्भावनाएं की गई हैं और परम्परित प्रसंगों को नए रूप में उपस्थित किया गया है। समस्त राम कथा युग की पृष्ठभूमि पर नये अर्थों में उपस्थित की गई है।
6. आधुनिक राम- काव्य में चरित्र-चित्रण में अतिरंजना की प्रवृित्त नहीं मिलती। इसमें सभी पात्रों को मानवीय रूप में उपस्थित किया गया है। परम्परागत पात्रों को नया आकार दिया गया है और अनेक उपेक्षित पात्रों का व्यक्तित्व निर्मित किया गया है। चरित्र विकास में कल्पना की सूक्ष्मता और मनोविश्लेषण की प्रवृत्ति मिलती है। चरित्र-चित्रण की अभिनयात्मक, दृश्यात्मक, तुलनात्मक, मनोविश्लेषात्मक, दृश्यात्मक, तुलनात्मक, मनोविश्लेषात्मक और प्रतीकात्मक पद्धतियों को प्रमुखता दी गई है। प्रवृत्तिमूलक जीवन-दर्शन के कारण पात्रों में रागात्मक गुण का विनियोग किया गया है और उन्हें त्याग की उच्च मनोदशा से युक्त प्रदर्शित किया गया है। राम, लक्ष्मण, भरत आदि पात्रों में वीरता, त्याग, कर्तव्यनिष्ठा के साथ ही अनुराग का समन्वय है। नारी पात्रों को गौरव-महिमा से मण्डित किया गया है। सीता, उर्मिला, माण्डवी आदि नारी पात्र नारी के त्याग के उच्च आदर्श को व्यक्त करते हैं। उर्मिला, माण्डवी आदि तो सर्वथा मौलिक सृष्टियां हैं। पात्रों के दोष परिहार की प्रवृत्ति भी दिखाई देती है। कैकयी का चरित्र इसी कारण अत्यंत उज्ज्वल रूप में व्यक्त हुआ है। पात्रों में धार्मिक आदर्शों के स्थान पर मानवतावादी आदर्शों की व्यंजना हुई है।
7. आधुनिक रामकाव्य में भावों का प्रकर्ष दर्शनीय है। इसमें सभी स्थायी, अनेक संचारी और सात्विक भावों की व्यंजना हुई है। शृंगार, करुण, वीर और शान्त रसों का परिपाक प्रमुख रूप में और रौद्र, वीभत्स, भयानक अद्भुत और हास्य रसों का गौण रूप में हुआ है। अन्य मनोभाव यथा वात्सल्य, श्रद्धा, स्वदेश प्रेम, विश्वबंधुत्व आदि की भी यथा स्थान व्यंजना हुई है। भावाभिव्यक्ति में मनोवैज्ञानिक अंतर्दृष्टि दिखाई देती है। कुछ दोषों के होते हुए भी औचित्य, तीव्रता, विज्ञदता, स्थिरता, विविधता, व्यापकता, उदात्ता आदि सभी गुण प्राप्त होते हैं। गुप्त जी के काव्य में ये गुण प्रभूत मात्रा में विद्यमान हैं। साकेत में भावों की विविधता और सूरसागर की भांति भावों का उन्मेष है।
8. वस्तु-निरूपण में पर्याप्त विविधता है। इसमें नारी और पुरुष के सौन्दर्य के विविध चित्र हैं। साथ ही उनकी विरूपता का भी अंकन किया गया है। स्थिर और गतिशील मानवीय मुद्राएं, प्रकृति के विभिन्न रूपों, नगर, ग्राम, प्रासाद, आश्रम, राजसभा, उत्सव, युद्ध, परिवार आदि के वर्णनों तथा नागरिक जीवन एवं सभ्यता के संकेतों से आधुनिक राम-काव्य समृद्ध हैं। इनकी वर्णना में वर्णनात्मक, चित्रात्मक, लाक्षणिक शैलियों का आश्रय लिया गया है। वस्तु के अंबाह्य सौंदर्य का अनुवीक्षण किया गया है। वस्तु वर्णन की विविधता के साथ मार्मिकता का संयोग गुप्त जी के काव्य में सहज ही देखा जा सकता है।
9. आधुनिक रामकाव्य के प्रणेताओं ने हृदय संस्कार, लोक मंगल, आत्म कल्याण, सांस्कृतिक पुनर्निर्माण आदि विभिन्न उक्तियों द्वारा उच्च जीवन के विकास को काव्य का लक्ष्य माना है। उनके काव्य में सांस्कृतिक आदर्शों की अभिव्यक्ति हुई है। उनका जीवन दर्शन मानवतावादी है, जिसमें प्रवृत्ति और निवृत्ति, भौतिकता और आध्यात्म, पश्चिम और पूर्व का समन्वय है। हिन्दू धर्म के परम्परित स्वरूप को मानते हुए भी उसके सार्वजनित तत्वों को महत्व दिया गया है। नियति की शक्ति को स्वीकार करते हुए भी पौरुष की गर्जना की गई है। वर्णाश्रम व्यवस्था के शुद्ध स्वरूप के प्रति निष्ठा रखते हुए भी मानवीय कर्म और गुण की प्रतिष्ठा की गई है। नारी का कर्मक्षेत्र घर मानते हुए भी उसके कर्तव्य एवं त्याग की महानता की प्रशस्ति गाई गई है। दाम्पत्य और पारिवारिक संबंधों में सहयोग और प्रेम का आदर्श रखा गया है। समाज में शोषण और विषमता की निंदा करते हुए समानता और त्याग पर बल दिया गया है। शासन तंत्र में प्रजातांत्रिक आदर्शों की व्याख्या की गई है और राष्ट्र प्रेम के साथ विश्व प्रेम का लक्ष्य रखा गया है। प्राय: सम्पूर्ण राम काव्य में सांस्कृतिक मूल्यों के प्रवर्धन की प्रेरणा विद्यमान है, परन्तु साकेत में भारतीय संस्कृति का सांगोपांग चित्र उपस्थित हुआ है।
10. आधुनिक राम-काव्य की भाषा प्रवाहपूर्ण और सशक्त खड़ी बोली है। उसका स्वरूप प्राय: तत्सम शब्दों से निर्मित हुआ है, फिर भी संधि समास युक्त संस्कृत के अग्राह्य प्रयोग और ब्रजभाषा, अवधी, देशज और विदेशी के रूप पाए जाते हैं। हरिऔध, नवीन, बलदेव प्रसाद मिश्र आदि कवियों ने ब्रजभाषा के शब्दों का अधिक प्रयोग किया है। शुद्ध व्याकरण सम्मत खड़ी बोली का प्रसन्न रूप मैथिलीशरण गुप्त की भाषा में दृष्टव्य है। मुहावरों का स्वच्छंदतापूर्वक प्रयोग हुआ है। वेदर्मी, गौड़ी, पांचाली, रीतियों और माधुर्य, ओज, प्रसाद, गुणों को व्यक्त करने वाली रचनाएं विद्यमान हैं। लक्षणा के चमत्कार, चित्रात्मकता, ध्वन्यात्मकता, वर्ण-मैत्री, उक्ति-वक्रता आदि से भाषा समृद्ध है। शैलियों में इतिवृत्तात्मक, गीतात्मक, प्रतीकात्मक शैलियां अपनाई गई हैं। इतिवृत्तात्मक शैली में भावनात्मकता, चित्रात्मकता, नाटकीयता आदि का विनियोग किया गया है। संवादों में गति प्रेरकत्व, पात्रानुकूलता, सजीवता, भावमयता, वचन वक्रता, रोचकता आदि गुण मिलते हैं।
11. आधुनिक राम-काव्य में शास्त्रीय और मौलिक विभिन्न काव्य रूपों का प्रयोग हुआ है। महाकाव्य, एकार्थकाव्य, खण्डकाव्य, विस्तृत प्रबंध का लघु संस्करण, पद्य-कथा, कथात्मक कविता, पद्यात्मक जीवन-चरित्र, आख्यानक गीति, मुक्तक नाटकीय कविता, खण्ड नाट्य-काव्य आदि अनेक काव्यरूप प्राप्त होते हैं। वर्णिक और मात्रिक छन्दों का सफलतापूर्वक प्रयोग तो किया ही गया है, अनेक मौलिक छन्दों, यथा-मैथिली, सरस, शक्ति पूजा आदि की उद्भावना की गई है। अलंकारों के विविध और मौलिक प्रयोगों की दृष्टि से भी आधुनिक राम-काव्य समृद्ध है। इसमें भारतीय काव्य शास्त्र में उल्लिखित अलंकारों के अतिरिक्त पश्चिमी अलंकारों का भी प्रयोग हुआ है। इस प्रकार आधुनिक राम-काव्य के रचना शिल्प में पर्याप्त मौलिकता और भव्यता है।
12. हिन्दी के आधुनिक राम- काव्य में जो प्रवृत्तियां मिलती हैं, वही अन्य भारतीय भाषाओं के आधुनिक राम-काव्य में भी। बंगला के मेघनाद-वध, कन्नड़ के रामायण दर्शन और तेलुगू के रामायण कल्प-वृक्ष में मानवतावादी दृष्टिकोण स्पष्ट दिखाई देता है। इन काव्यों में व्यक्ति के प्रति घृणा उत्पन्न करने के स्थान पर कर्म-दोष के प्रति घृणा की भावना को लक्ष्य बनाया गया है। बौद्धिक समन्वय की ओर प्राय: सभी कवियों की दृष्टि रही है। मेघनाद वध में सांस्कृतिक विपर्यय और रामायण दर्शन में रूपात्मकता के कारण इनका प्रभाव बहुत कुछ क्षीण हो गया है। इस दृष्टि से साकेत ही भारतीय जीवन का प्रतिनिधि महाकाव्य दिखाई देता है।
13. आधुनिक राम-काव्य वस्तु- विन्यास की मौलिकता, चरित्र-कल्पना की भव्यता, भावों की प्रकर्षता, अस्तु-वर्णन की रमणीयता और कला की भव्यता से युक्त आधुनिक युग के सांस्कृतिक पुनर्जागरण का प्रतीक मानवतावादी मूल्यों का संवाहक है। उसकी महत्ता अक्षुण्ण है। (विनायक फीचर्स)

Comment: