सूरा फातिहा का वैदिक आधार !

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सूरा फातिहा का वैदिक आधार !
हमारे सभी सम्माननीय जागरुक पाठक ,जो इस ब्लॉग को लगातार पढ़ते आये हैं ,वह इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं ,कि जब मुस्लिम ब्लोगरों के पास कोई समुचित ,तर्कपूर्ण उत्तर नहीं होता ,या उनके पास कोई प्रमाण नहीं होता ,तो वह लोग गाली गलौच पर उतर जाते हैं .और इस तरह से अपनी बात को सही सिद्ध करने का प्रयास करते हैं .कुछ ऐसे मुस्लिम ब्लोगर हैं ,जो अपना नाम गुप्त रखते हैं .अक्सर यह लोग अश्लील भाषा का प्रयोग करके लोगों को मुख्य विषय से भटका देते हैं .जिस से विषय कि गंभीरता कम हो जाती है .बड़े दुःख कि बात है कि इन फर्जी लोगों के उकसाने पर हमारे मित्र भी उनकी भाषा बोलने लगते हैं ,यही तो यह मुस्लिम ब्लोगर चाहते हैं .
अभी कुछ समय से जावेद खान नाम का व्यक्ति भद्दे कमेन्ट दे रहा है .इसने 7 अप्रेल 2011 को अपने कमेन्ट में मुझ से कुरान की पहिली सूरा(chapter )
अल फातिहा -الفاتحه -के बारे में सवाल किया है .मैं ने सूरा फातिहा ,और बिस्मिलाह के बारे में दो लेख प्रकाशित किये थे –
1 -कैरानावी को मुंहतोड़ जवाब :सूरा फातिहा में रद्दोबदल हुआ है दिनांक 24 /7 /2010
2 -कुरआन में बिस्मिल्लाह दोहरानेवाले काफ़िर हैं .दिनांक 27 /7 /2011
यदि लोग इन लेखों को पढ़ लें तो उनकी शंका दूर हो जायेगी .फिर भी मैं सूरा फातिहा के बारे में कुछ और जानकारी दे रहा हूँ .सूरा फातिहा कुरान की पहिली नहीं पांचवीं सूरा है (नुजूल की तरतीब से )इसे मुहम्मद की मौत के बाद कुरान में सबसे पहिले कर दिया गया है .
मुसलमान सूरा फातिहा को हर नमाज में पढ़ते हैं .फातिहा अर्थ “खोलना “है यह अरबी के(ف ت ح फ त ह )शब्द से बना है
सूरा फातिहा में अल्लाह से दुआ की गयी है की वह हमें सीधे रस्ते पर चलने की कृपा करे .इस सूरा में कुल सात आयतें (Verses )हैं जिनके अर्थ इस प्रकार हैं –
1 -सूरा फातिहा में क्या है
“सब तारीफ अल्लाह के लिए है ,जो सारे संसार का पालनकर्ता है ” आयत .1
“अत्यंत कृपालु और मेहरवान है “आयत .2
“न्याय के दिवस का स्वामी है “आयत .3
“हम तेरी ही बंदगी करते हैं ,और तुझी से ही मदद चाहते हैं “आयत 4
“मुझे सीधा रास्ता दिखा “आयत .5
“उन लोगों का मार्ग दिखा जिन पर तुने कृपा की “आयत .6
“न की उन लोगों का मार्ग दिखा ,जिनपर तेरा प्रकोप हुआ ,और जो भटक गए “आयत .7
(यह सब अर्थ इब्ने कसीर की तफ़सीर पर धारित है ,जो चाहे देख ले )
2 -सूरा फातिहा का वैदिक अधार
इस बात को सभी मानते हैं कि वेद कुरान से हजारों साल पूर्व मौजूद थे .वेदों में लाखों ऐसे मन्त्र हैं ,जिनमे ईश्वर से प्रार्थना की गयी है ,कि वह हमें सीधे रस्ते (सुपथ )पर चलने की शक्ति प्रदान करे .इसी प्रकार का एक मन्त्र यजुर्वेद में मिलता है .जिसका आशय और शब्द सूरा फातिहा से मिलते हैं .यद्यपि सूरा फातिहा और वेदमंत्र के वाक्यों के क्रम में अंतर है .लेकिन दौनों का आशय और भावार्थ एक ही है .क्योंकि एक ही बात को दूसरी भाषा में कहने से शब्दों के क्रम का बदल जाना स्वाभाविक है .हम वेद मन्त्र दे रहे है –
“अग्ने नय सुपथा राये अस्मान विश्वानि देव वयुनानि विद्वान्
युयोध्यस्म जुहुराण मेनो भूयिष्ठाम ते नम उक्तिम विधेम “यजुर्वेद -अध्याय 40 मन्त्र 18
(यही मन्त्र ईशोपनिषद में इसी तरह मिलता है )
इसका अर्थ है -हे जगत पालन करता स्वामी ,हमें सीधे रास्ते (सन्मार्ग ) पर के चल ,तू हमारे कर्मों का ज्ञाता और फलदाता है .हमें पाखंडियों के रास्ते से दूरकर विद्वानों के रस्ते पर ले चल .हम तेरे सामने अनेकों बार प्रणाम करते हैं .
(यह गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित ‘ईशावास्योपनिषद के शंकर भाष्य से लिया गया है .पेज 45 )
अब सूरा फातिहा और इस वेदमंत्र के भावार्थ की तुलना कीजिये .हम वेद मन्त्र के अलग अलग पदच्छेद की तुलना सूरा फातिहा से करते हैं और साथ में सूरा फातिहा की आयातों के नंबर भी दे रहे है –
3 -सूरा फातिहा और वैदिक मन्त्र की समानता
अब दिए गए वेदमंत्र के अन्वयों के साथ अरबी (हिंदी अक्षरों में )अरबी और उसके अर्थ दिए जा रहे है ,साथ में आयत नंबर भी दिया गया है –
1 -नय सुपथा राये अस्मान -इहदिनास्सिरातिल मुस्तकीम – اهدنا الصراط المستقيم-हमें सीधा रास्ता दिखा .आयत .5
2 -विश्वानि देव -रब्बिल आलमीन – ربِّ العالمين-दुनिया का मालिक .आयत .1
3 -वयुनान विद्वान -मालिक यौमिद्दीन – مالك يوم الدّين-कर्मों को जानने वाला न्यायी .आयत .3
4 -युयोद्ध्स्म जुहुराण मेनो-गैरिल मगजूबी अलैहिम वलाज्जालीन-غيرالمغضوب عليهم ولاالضّالّين – उन लोगों का मार्ग नहीं जो भटक गए ,जिन पर तेरा प्रकोप हुआ .
5 -भूयिष्ठाम ते नम उक्तिम विधेम -इय्याक नअबुदू व् इय्याक नस्तईन – ايّاك نعبد واياك نستعين-हम तेरी ही उपासना करते हैं और तुझेही प्रणाम करते हैं
अब सूरा फातिहा और इस वेदमंत्र की तुलना करनेपर सबका भ्रम जरुर मिट गया होगा .यह मुझे विश्वास है .क्योंकि एकही बात को कई तरह से भिन्न भिन्न शब्दों में व्यक्त किया जा सकता है .लेकिन उसका तात्पर्य एक ही होना चाहिए .हमें शब्दों के जाल में न फसते हुए उसके आशय पर ध्यान देना चाहिए .जैसा कि एक शायर ने कहा है-
“अल्फाज़ के पेचों में उलझते नहीं दाना .गव्वास को मतलब है गुहर से ,न सदफ से ”
अर्थात विद्वान् लोग शब्दों के पेचों में नहीं उलझते हैं .जैसे गोताखोर मोतियों को उठा लेते हैं ओर सीपियों को छोड़ देते हैं .
अब आखिर में मैं जनाब जावेद खान से पूछता हूँ कि सूरा फातिहा में अल्लाह को “रब्बिल आलमीन ربّ العالمين”क्यों कहा है ?और इसकी जगह अल्लाह को
“रब्बिल मुस्लमीनربّ المسلمين”क्यों नहीं कहा गया ?क्या अल्लाह गैर मुस्लिमों का रब नहीं है ?क्या उनको खाना नहीं देता ?फिर जिहाद के नामपर आतंक क्यों फैला रहे हो ?हमें कुछ कहने पहिले सूरा फातिहा के एक एक शब्द को ध्यान से पढो .फिर विचार करो तुम उस पर कितना अमल करते हो .मुझे बददुआ देने से कुछ नहीं होगा
“तेरी दुआ है कि तेरी दुआएं हों मंजूर ,मेरी दुआ है कि तेरी दुआ बदल जाये ”
(87/39)

डॉ राकेश कुमार आर्य

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