सूरा फातिहा दोबारा नाजिल नहीं हुयी इसे सुधारा गया था

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सूरा फातिहा दोबारा नाजिल नहीं हुयी इसे सुधारा गया था
(नोट -हमारा मकसद किसी की भावना को ठेस पंहुचना नहीं बल्कि उस सचाई को जाहिर करना है ,जिसे इरादतन छुपाया गया है )
इस्लामी मान्यता के अनुसार कुरान किसी व्यक्ति की रचना नहीं है ,बल्कि अल्लाह ने आसमान से नाजिल की है चूँकि यह अल्लाह का कलाम है इसमें किसी तरह का परिवर्तन या संशोधन न तो हुआ है और न हो सकता है , यहाँ तक कुरान का एक नुक्ता या जबर जेर भी नहीं बदला सकता है मौजूदा कुरान में कुल 114 सूरा (अध्याय ) है , जिनमे सबसे सूरा फातिहा है , लेकिन सभी मुस्लिम इस बात पर सहमत हैं कि “तरतीब नुजूल – ترتيبِ نُزوك ” (Rrvelation order) के अनुसार सूरा फातिहा का क्रम पांचवा था जिसे पहला कर दिया गया ,इसके पीछे तर्क दिया जाता है सूरा फातिहा इतनी महत्वपूर्ण है की इसे “उम्मुल कुरान -اُمّ القُران ” यानि कुरान की माता का नाम दिया गया है , और हरेक नमाज में सूरा फातिहा पढ़ना अनिवार्य कर दिया गया है
1- सूरा फातिहा दो बार नाजिल हुई है !
मुस्लिम विद्वान् इस बात को जानते हैं की सूरा फातिहा कुरान की ऐसी सूरा है जो दो बार नाजिल हुई है , पहली बार मक्का में लगभग सन 612 मे क्योंकि नुजूल के अनुसार यह पांचवीं सूरा है ,और जब सन 628 को मक्का के लोगों ने मुहमद को परिवार सहित मदीना ” यसरिब -يصرب ” खदेड़ दिया था , तो उसके कुछ महीनों बाद सूरा फातिहा दोबारा मदीना में नाजिल हुई थी ,इस बात को सभी मुसलिम मानते हैं .
2-विचारणीय प्रश्न
इस सत्य को जानकर कोई भी व्यक्ति सवाल करेगा कि जब अल्लाह ने सूरा फातिहा पहले ही मक्का में नाजिल नाजिल कर दी थी तो लगभग 12 साल बाद सूरा फातिहा मदीना में फिर से क्यों नाजिल कर दी थी ? क्या पहली सुरा फातिहा में कोई गलती या कोई कमी रह गयी थी ? और अगर मक्का और मदीना की सूरा फातिहा एक जैसी है ,तो दोबारा नाजिल करने का औचित्य या कारन क्या हैं ? यही सवाल हमने सन 1967 में हमने झाँसी में उन मौलवी जी से पूछा था जो हमें अरबी पढ़ाया करते था , ,यह बात हमें आज इसलिए याद आगयी क्योंक एक हफ्ता पहले मेरा एक पुलिस अफसर से परिचय हुआ जो उसी थाने में नियुक्त थे जिसमे मेरा मोहल्ला भी आता है , चूँकि आज तक कोई इस सवाल का संतोष जनक उत्तर नहीं दे पाया था , लेकिन आज हमने इतनी अरबी सीख ली है कि हम लोगों को बता सकें की कुरान की सूरा फातिहा दोबारा नाजिल होने का क्या रहस्य है ?लेकिन इस विषय को ठीक से समझने के लिया आपको मुहमम्मद समय के मक्का वासी लोगों की मान्यताओं की जानकारी होना जरुरी है
3-मक्का के लोग दो ही लोक मानते थे
मुहम्मद के समय मक्का के लोगों का कोई धर्म नहीं था ,लेकिन मक्का में यहूदी और ईसाई भी रहते थे , जो मानते थे कि जैसे पृत्वी लोक में मनुष्य प्राणी नदी पहाड़ पेड़ अदि हैं वैसे ही आसमान पर भी पृथ्वी जैसा एक और लोक है ,
( लोक को अरबी में ” आलम – العالم ” और फारसी में ” जहान -جہان ” कहा जाता है ),
यहूदी और ईसाई लोगों की बात से प्रभावित अरब लोग भी दो आलम माना करते थे , मुहम्मद ने भी इस बात को सच मन लिया ,
4-अल्लाह केवल दो लोकों का स्वामी है
सूरा फातिहा में कुल सात आयतें हैं ,इस्लामी मान्यता के अनुसार सूरा फातिहा मक्का में नाजिल हुई थी , इसकी पहली ही आयात में अल्लाह को केवल दो लोकों का स्वामी बताया गया था , जो अरबी में इस प्रकार है ,
“ربِّ العالميَن ” 1:2.हिंदी में – रब्बिल आलमैन
अरबी व्याकरण के अनुसार “आलमैन – العالميَن ” द्विवचन (dual number ” है ,इसका मतलब दो आलम (लोक ) है , अरबी में संस्कृत की तरह द्विवचन होता है इसे तस्निया कहते है , इसके अनेकों उदहारण मिल सकते हैं जैसे ” यदैन – يديَن ” दो हाथ , “उजनैन -اُذنيَن ” दो कान , और “हसनैन – حسنيَن ” हसन और हुसैन . इत्यादि,,चूँकि मुहम्मद के समय तक कुरान लिखित रूप में नहीं थी , और जिन लोगों ने कुरान के जो हिस्से लिख रखे थे वह अरबी की कूफ़ी लिपि में थे , इस लिपि में हुरूफ़ यानि अक्षर के साथ मात्राएँ ” हरकात – حركات ” ( Diacretics ) नहीं लगाए जाते हैं , ,इन्हें सिर्फ बोला जाता है , लोग समझ लेते हैं कि किस शब्द को कैसे बोलना है ,
इसी लिए जब तक मुहम्मद साहब मक्का में रहे मक्का के सभी मुस्लिम हर नमाज में सूरा फातिहा पढ़ते यानि बोलते समय “रब्बिल आल मैन ” कहते रहे , क्योंकि वह यही जानते थे कि अल्लाह ने सिर्फ दो ही जहान बनाये हैं जिनका स्वामी एकमात्र अल्लाह ही है , यह बात कुरान की इन आयतों से साबित है ,
4-मुहम्मद भी अल्लाह को दो जहाँ स्वामी मानते थे
मुहम्मद की देखादेखी मक्का के मुसलमान भी ऐसा मानने लगे की सिर्फ दो ही जहान हैं ,एक धरती पर दूसरा आसमान में यह कुरान में है ,
1.”जो आकाश और धरती के राज का स्वामी है ” . सूरा फुरकान 25 :2
“الَّذِي لَهُ مُلْكُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ “25:2
(He to whom the dominion over the heavens and the earth)
2.”प्रसंशा अल्लाह की जो आकाश और धरती का रब (स्वामी ) है “सूरा अल जसिया 45 :36
“وَلِلَّهِ مُلْكُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ” 45:36
(God’s is the dominion over the heavens and the earth;)45:36
3.”आकाश और धरती के रब (स्वामी ) की कसम :सूरा ज़ारियात 51:23
“فَوَرَبِّ السَّمَاءِ وَالْأَرْضِ “51:23
(Sustainer of heaven and earth,51:23
कुरान द्वारा फैलाई अज्ञानता के कारण ,आज भी मुस्लिम दो ही लोक मानते हैं और मदरसों में यह दुआ गाई जाती ही ,
“ऐ दो जहाँ के मालिक सुन ले मेरी सदा ,
रुसवा न होने पाए अल्लाह मेरी दुआ ”
5-मुहम्मद ने सूरा फातिहा क्यों सुधारी ?
, वास्तव में सूरा फातिहा मदीना में दोबारा नाजिल नहीं हुई जैसा मुस्लिम विद्वान दावा करते है असल में मुहम्मद ने सूरा फातिहा के शब्द “‘रब्बिल आल मैन ‘ में जरा सा सुधार कर दिया जिस से इस शब्द का अर्थ ही बदल गया इसे सिर्फ वही समझ सकते हैं जो अरबी व्याकरण जानते हों , इसके पीछे यह ऐतिहासिक घटना हैं ,जब मक्का के लोग मुहम्मद और उनके साथियों की जिहादी हरकतों से परेशान हो गए तो उन्होंने मुहमद को मय अपनी पत्नियों रिश्तेदारों और साथियों सहित सबको मक्का से खदेड़ दिया , और अपनी जान बचने के लिए मुहम्मद गुरुवार 23 मई सन 628 को मक्का से मदीना की तरफ हिजरत कर गए और सभी लोग शुक्रवार 28 मई सन 628 को मदीना पहुंच गए ,मदीना में ईरानी लोग भी रहते थे , मूलतः आर्य ही थे उनकी मान्यताएं यहूदी ईसाई और अरब लोगों से अलग थी , मदीना में मुहम्मद का एक जरदुश्ती ईरानी व्यक्ति से परिचय हुआ उसका असली नाम “रोज बेह ROZBEH( )था , वह पढ़ालिखा था , लोग उसे सलमान फारसी कहते थे , जब वह मुहम्मद का साथी बन गया तो मुहम्मद ने उसका नाम ” अबू अब्दुल्लाह ” रख दिया और वह मुस्लिम बन गया ,और जब मुहम्मद अपनी मस्जिद में लोगों को नमाज पढ़ाते सूरा फातिहा बोल रहे थे तो सलमान फारसी ध्यान से सुन रहा था तो नमाज के बाद उसने कहा की अगर यह सूरा मेरे देश में पढ़ी जाएगी तो लोग इसका मजाक उड़ाएंगे , क्योंकि दुनियां जानती है कि सृष्टि में दो आलम नहीं तीन आलम हैं , हमारे यहाँ खुदा को तीनों लोकों का खुदा माना जाता है ( हिन्दू भी त्रिलोकी नाथ कहते हैं .
6-सूरा फातिहा में यह सुधार किया गया
सूरा फातिहा में कुल सात आयतें हैं और जब पहली बार यह सूरा मक्का में नाजिल हुई थी ,तो उसमे पहली आयात में अल्लाह को “रब्बिल आल मैन -ربَّ العالميَن ” कहा गया था , अरबी व्याकरण के अनुसार द्वि वचन (Dual Number ) है .इसका अर्थ “दो जहानों का मालिक , लेकिन जब सलमान फारसी ने बताया कि जहान (आलम ) दो नहीं बल्कि तीन यानी दो से अधिक है , तो मुहम्मद ने इसे सुधार कर “रब्बिल आल मीन – ” कर दिया , यह ” आलम -العالم “शब्द का बहुवचन (Plural Number ) इसका अर्थ बहुत से आलम होता है , यह सुधार मदीना में हुआ था
, और मुहम्मद ने सभी मुस्लिमों से कहा कि आज से हर नमाज में जब भी सूरा फातिहा बोली जाये तो “रब्बिल आल मैन-ربَّ العالميَن ” की जगह “रब्बिल आल मीन- رَبِ العالميِن”बोला करो .इस जरा से सुधार से अल्लाह और बड़ा बना दिया गया .
7-अल्लाह दो की जगह तीन जहानों का स्वामी हो गया ,
और इसकी पुष्टि के लिए कुरान में यह आयात उतार दी गयी
“”आकाश और पृथ्वी का स्वामी और जो उनके बीच में है उसका भी “38:66
“رَبُّ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَمَا بَيْنَهُمَا ” 38:66
( Sustainer of the heavens and the earth and all that is between them, )
सूरा -साद 38:66
8-दौनों में बारीक़ सा अंतर है
सामान्य लोगों को यह दौनों शब्द एक जैसे लगेंगे लेकिन जो लोग अरबी व्याकरण जानते हैं वह इस अंतर को समझ जायेंगे
‘मक्का में आल मैन शब्द में अरबी अक्षर ” ये -يَ ” के ऊपर फतह है इस से “ै ” की मात्रा हो जाती है जो द्विवचन का द्योतक है .
जबकि मदीना में अरबी अक्षर “ये -ي ” के निचे ( يِ ) कसरह है ,जिस से: ी ” मात्रा होती है , जो बहुवचन होने की निशानी है
निष्कर्ष – इन प्रमाणों से सिद्ध होता है कि ,
1.अल्लाह को खगोल विज्ञानं और अंतरिक्ष में करोड़ों ग्रहों यानि आलमों का कोई ज्ञान नहीं है वह जमीन और आसमान के आलावा कुछ नहीं जानता
2-कुरान आसमान से भेजी किताब नहीं इसमें भी सुधर हो सकता है
3-मुस्लिम विद्वानों का दवा झूठ है की कुरान में संशोधन नहीं हो सकता
इसलिए हम सभी पाठकों से निवेदन करते हैं की इस लेख को ध्यान से पढ़ें लेकिन हमें मालूम है कि कुछ अतिचतुर लोग इस लेख को गलत साबित करने की कुचेष्टा करेंगे , यदि ऐसा हुआ तो हम सिद्ध कर देंगे कि सूरा फातिहा कई लोगों ने मिल कर बनायीं थी , सोच लीजिये
“सूरा फातिहा में रद्दोबदल हुआ है “( No 181/118) date .25/07/2010
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