मुख़्तार अंसारी की मौत : विपक्ष का स्यापा
✍️मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”
मुख़्तार अंसारी की मौत पर लखनऊ से लेकर हैदराबाद तक, अखिलेश यादव से लेकर असदुद्दीन ओवैसी और कांग्रेस से लेकर राजद तक तमाम विपक्ष छातियाँ कूट-कूट कर विधवा विलाप कर रहा है।
मृतक मुख़्तार अंसारी साहब कोई महात्मा अथवा महापुरुष नहीं थे। न ही वह कोई क्रांतिकारी अथवा वीर सैनिक थे।
मुख़्तार अंसारी एक दुर्दांत अपराधी और खतरनाक गैंगस्टर था। पूर्वांचल में आतंक का पर्याय बन गए मुख़्तार अंसारी पर 60 से अधिक मुकदमे थे। जिसमें हत्या, हत्या का प्रयास, अपहरण, रंगदारी, आर्म्स एक्ट, और NSA जैसे संगीन अपराधों की लंबी फेरहिस्त थी।
अभी कुछ दिन पहले ही कि तो बात है जब बदायूं में दो मासूम और निर्दोष सगे भाइयों की बड़ी बेरहमी के साथ हत्या कर दी गई थी। लेकिन उनकी मौत पर विपक्षी दल के किसी भी नेता ने अफ़सोस के दो शब्द भी नहीं बोले थे, अलबत्ता हत्यारों में से एक के एनकाउंटर पर सवाल जरूर उठाये गए थे।
तुष्टिकरण की राजनीति की चाशनी में आकंठ डूबे विपक्षी नेताओं को “मज़हब में पनपता आतंक” नहीं दिखाई देता। अलबत्ता “आतंकियों का मज़हब” जरूर दिखाई देता है।
यहां यह उल्लेखनीय है कि विपक्ष के किसी भी नेता को मुख़्तार अंसारी अथवा उसके परिवार से न तो कोई हमदर्दी है और न ही मुख़्तार की मौत का कोई अफ़सोस है। परन्तु मुख़्तार अंसारी की मौत पर स्यापा करके सहानुभूति का नँगा नाच दिखाकर वोट बटोरने की क़वायद जरूर की जा रही है।
यह विडंबना ही है कि इस देश में एक विशेष लॉबी अपराधियों और आतंकियों के लिए छातियाँ पीट- पीटकर आंसू बहाती है। यह वही लॉबी है जो आतंकी बुरहान वानी, अफ़ज़ल गुरु, याकूब मेमन और दुर्दांत अपराधी माफ़िया अतीक अहमद और अब मुख़्तार अंसारी की मौत को “शहादत” मानती है। इन लॉबी को मज़हब में पनपता आतंक नहीं दिखाई देता। लेकिन यह नैरेटिव जरूर सेट किया जाता है कि “आतंकियों का कोई मज़हब” नहीं होता।
अपराधियों और आतंकियों की मौत पर आंसू बहाने वाले या तो स्वयं आपराधिक मानसिकता से ग्रसित हैं अथवा अपराध और अपराधियों के संरक्षक हैं।
✍️समाचार सम्पादक, हिंदी समाचार-पत्र,
उगता भारत
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