तीन-तीन गुफावाली गुप्त गोदावरी के दिव्य रहस्य

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आचार्य डॉ राधे श्याम द्विवेदी

रहस्यमयी भू विज्ञान :-
चित्रकूट का यह परिक्षेत्र अपने विविधता के लिए विश्व विख्यात है। इस अंचल के भूगर्भ में जानी अनजानी अकूत खनिज सम्पदायें वनस्पतियां और विविध प्रकार के जीव- जन्तु और खनिज संसाधन भी मौजूद है। कहीं लौह-/ अयस्क तो कहीं हीरा निकलने की संभावना व्यक्त की गई है। कुछ दिन पूर्व एक बैज्ञानिक दल ने माणिक्य भंडार की संभावना व्यक्त किया है। ये खोज और शोध का विषय है।
गुप्त गोदावरी की गुफाओं का अपना ही एक भूविज्ञान है, जिसके बारे में अभी तक किसी वैज्ञानिक को साफ़ तौर पर पता नहीं चला है। रहस्य अभी भी उतना ही गहरा और छुपा हुआ है। यह जगह फोटोग्राफरों, इतिहासकारों, भक्त, रोमांचक लोगों और शोधार्थियों के लिए और उन सभी लोगों के लिए सबसे बेहतर हैं जिन्हे अपनी क्षमता, विरासत, संस्कृति, इतिहास के राज़ और किस्से- कहानियों को जानने की उत्सुकता होती है।

पिता मैनाक की कहानी:-
देवी मेना हिमालय की रानी और राजा हिमवान् की धर्मपत्नी है। तथा इनकी दो पुत्री पार्वती,गंगा और एक पुत्र मैनाक है। देवी मेना पित्रो के देवता पितरेश्वर और देवी स्वधा की पुत्री है। मैनाक एक पर्वत है जो हिमवान का पुत्र है । वह देवी पार्वती का भाई भी हैं । मैनाक हनुमान का सहयोगी है , जिसने लंका की यात्रा में देवता की मदद की थी ।

इन्द्र द्वारा पर्वतों के पंख काट लिया जाना:-
ब्रह्माण्ड पुराण के अनुसार प्राचीन काल में सभी पर्वतों के पंख होते थे और वे इच्छानुसार पृथ्वी की ओर चढ़ते और उतरते थे। प्रजा के भय से इन्द्र ने पर्वतों को एक पंक्ति में खड़ा कर उनके पंख काट दिये थे ।

पवन देव द्वारा मैनाक की रक्षा :-
इस समय के दौरान, पवन के देवता वायु ने अपने मित्र मैनाक को इंद्र से छीन लिया और उसे भारत के दक्षिण समुद्र में डुबोकर सुरक्षा प्रदान की। बाद में मैनाक और सागर घनिष्ठ सहयोगी बन गये। हनुमान, जो वायु के पुत्र थे, मैनाक के मित्र और रक्षक बन गये । इस कारण, मैनाक ने हनुमान जी को सीता की खोज में लंका जाते समय विश्राम करने के लिए शरण भी दी थी। जिसे आदर के साथ हनुमान जी ने ” रामकाज कीन्हें बिना, मोहि कहां विश्राम।” कहते हुए अस्वीकार कर दिया था।

रहस्य्मयी गोदावरी नदी :-
मध्यप्रदेश के जिले चित्रकूट से गुप्त गोदावरी नामक एक रहस्य्मयी नदी बहती है। जो खुद में कई राज़, किस्से और कई बरसों पुराना इतिहास छुपाए बैठी है। मूल गोदावरी नदी महाराष्ट्र में नासिक के पास त्र्यंबकेश्वर से निकलती है और बंगाल की खाड़ी में गिरने से पहले लगभग 1465 किमी. की दूरी तय करती है। यूपी के चितकूट के राम घाट से लगभग 18 किमी. दूर विंध्य पहाड़ियों के पन्ना या तुंगारण्य नामक पर्वत श्रेणी में एक गुप्त गुफा है। जो निःसृत पापों को विनष्ट करने वाली पुण्य नदी गुप्त गोदावरी नाम से प्रसिद्ध है।
गोदावरी महर्षि गौतम की पुत्री थीं। जब उन्हें पता चला कि भगवान राम पंचवटी में आए हैं तो उन्होंने अपने पिता से कहा कि अगर आपकी आज्ञा हो तो मैं उनसे मिलने के लिए जाना चाहती हूं, लेकिन पिता ने मना कर दिया। उन्होंने कहा कि बेटी मैं राम को यहीं पर बुलाऊंगा तुम उनसे मिल लेना, लेकिन गोदावरी जी नहीं मानी और यहां सीता कुंड में प्रकट हुईं। गोदावरी रावण के मित्र मैनाक पर्वत की पुत्री और सीता जी के मायके की सहेली भी थी। जब राम लक्ष्मण और सीता बन को आते है तो भगवान की सेवा में नासिक महाराष्ट्र से वह अपने पिता और परिवार से छुपकर चित्रकूट के पन्ना तुंगारण्य शिखर पर सीता कुण्ड में प्रकट होती है। यहां गुप्त रूप से प्रकट और विलुप्त होने के कारण इन्हें गुप्त गोदावरी कहा जाता है।
मूल गोदावरी नदी का जन्म महाराष्ट्र के नाशिक में 920 किमी. दूर हुआ था। यह बात भी सुनने में आती है कि देवी गोदावरी चित्रकूट में गुप्त रूप प्रकट हुई थी ताकि वह भगवान राम के रूप के दर्शन कर सकें। यह भी हो सकता है कि देवी गोदावरी को यह बात मालूम थी कि भगवान राम त्रेता युग में ऐसी किसी गुफा में आकर वास करेंगे। गोस्वामी तुलसीदास इस प्रकार इनका परिचय देते हैं –
सुरसर सरसई दिनकर कन्या।
मेखल सुता गोदावरी धन्या।।

वनवास के दौरान भगवान राम यहां रुके थे :-
हिंदू पौराणिक महाकाव्य, रामायण में बताया गया कि भगवान राम और लक्ष्मण 14 साल के वनवास के दौरान कुछ समय के लिए इस गुफा में रुके थे। और एक दरबार भी लगाया था। इतिहासकारों के अनुसार, गुफा के भीतर की चट्टानों से गहरी नदी के रूप में उभरती हुई गोदावरी नदी नीचे एक और गुफा में बहती है और फिर पहाड़ो में जाकर गायब हो जाती है।

नैसर्गिक कला-कौशल का दुर्लभ नमूना :-
विंध्य पर्वत श्रंखला के रमणीक अंचल में स्थित प्रकृति द्वारा निर्मित गुप्त गोदावरी की गुफाएं नैसर्गिक कला- कौशल का अत्यन्त दुर्लभ नमूना हैं। इसे राम जी के आने के पूर्व देव शिल्पी विश्वकर्मा द्वारा इसे बनाया और सजाया गया है। गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते हैं —
प्रथमहि देवतहि गिरि गुहा, राखी रुचिर बनाय।
राम कृपानीधि कछुक दिन वास करेगें आय।।
यहां पर दर्शन करके ऐसा लगता है कि जैसे प्रकृति रूपी चित्रकार ने अपनी जादुई तूलिका से कल्पना लोक का एक सर्वश्रेष्ठ चित्र बनाया है। इस जगह को यूपी के सबसे दिलचस्प स्थानों में गिना जाता है। इस जगह का अपना आध्यात्मिक महत्व है। साथ ही कुछ प्राकृतिक तौर पर चौकाने वाली रहस्यमयी चीज़े भी यहां देखने को मिलती है। चित्रकूट के अन्य सभी पर्यटन स्थलों की तरह इसका भी अपना एक पौराणिक इतिहास है। इसकी गुफाएं कितनी भव्य और कल्याणकारी होगी इसकी कल्पना नहीं की जा सकती है। इसके सुन्दर नजारों का वर्णन करना असम्भव है। यह तीर्थों का भी तीर्थ है। यहां का जल अमृत तुल्य है। जिसके कल कल छल छल निर्मल जल के मनोहारी निनाद से मानव अपने सम्पूर्ण दुखों को भूल जाता है। कहा गया है –
गंगा गुप्त गोदावरी , बसत जहां सुर सिद्ध।
सेवन प्रेम प्रतीत सों, प्रगट मिले नव निध।।

भगवान शिव की भव्य आकृतियां:-
यहां की गुफा की छत पर बनी भगवान शिव की आकृतियां देख कर ऐसा लगता है जैसे सम्पूर्ण शिव लोक एक ही जगह स्थित हो। इस स्थान पर महादेव जी भी विद्यमान हैं। जिनकी ऋषि-मुनि सेवा करते हैं। उसी पर्वत के अन्तर्गत ठण्डे और गर्म जल के दिव्य कुण्ड हैं। गोदावरी पुण्य सलिला पाप मोचनी एवं आत्मिक आनन्द प्रदाता है। महर्षि वाल्मीकि लिखते हैं –
तस्मिन गोदावरी पुण्य नदी पाप प्रमोचिनी,
गुप्त गोदावरी नाम्नां ख्याता पुण्य विवर्धिनी।।

कन्या तीर्थ के रूप में सम्मानित:-
गुप्त गोदावरी को कन्या तीर्थ के रूप में कहा जाता है। तुंगाराण्य पर्वत से उदगमित होने वाली गुप्त गोदावरी सम्पूर्ण पातकों को नाश करने वाली है। जो भी मनुष्य गोदावरी नदी में स्नान करके और यथा विधि संध्या पूजन करके महान पुण्य को प्राप्त करता है। वह अपने पूरे कुल का उद्धार करता है। सिंह राशि के सूर्य एवं सिंह राशि के बृहस्पति में गुप्त गोदावरी में स्नान करने से हजारों गुना पुण्य एवं अभीष्ट फल प्राप्त होता है। यहाँ तीन ज्ञात और कुछ अज्ञात पुरानी प्राकृतिक गुफाएँ हैं। गुप्त गोदावरी का जल प्रवाह कुछ दूरी के बाद लुप्त (गुप्त) हो जाता है। ऐसा माना जाता है कि गोदावरी गुफा के अंदर के चट्टानों से एक ढाँचा धाराएँ निकलती हैं और गोदावरी नदी की एक अन्य चट्टान में से एक निकली हुई गायब हो जाती है।

पहाड़ों के बीच प्रचलित है दो गुप्त गोदावरी गुफाएं :-
गुप्त गोदावरी गफाएँ, पर्यटकों के लिए सबसे आकर्षण का केंद्र हैं। गुप्त गोदावरी में दो रहस्य्मयी गुफाएं भी है। ये गुफाएं साढ़े नौ लाख वर्ष पुरानी बताई जाती हैं। इनकी कलात्मक नक्कासी देख कर लगता है कि देवताओं ने अपने हाथ से इसे तराशा है। जब श्री राम जी यहां आये तो उस समय का वर्णन गोस्वामी तुलसीदास जी ने इस प्रकार किया है –
अमर नाग किन्नर दिकपाला।
चित्रकूट आये तेहि काला।।

पहली गुफा :-
यहां पहली गुफा बड़ी शुष्क गुफा और दूसरी गुफा उससे छोटी लेकिन लम्बी जल वाली है। जब हम पहली गुफा में घुसते हैं तो हमें वहां बहुत ख़ामोशी महसूस होगी। इस गुफा में हमें पानी नहीं मिलेगा। गुफा के अंदर प्रवेश करने पर शेषनाग के फन के दर्शन होते हैं। लगता है शेषनाग जी श्रद्धालुओं की अगुवानी करने के लिए प्रवेश द्वार पर अपनी उपस्थिति दर्शा रहे हैं।शुष्क गुफा में सीता कुंड, धनुष कुंड, सुईया माता और श्री राम दरबार के दर्शन होते हैं। गुप्त गोदावरी को सीता कुण्ड के नाम से भी जाना जाता है। यहां पर सीता माता ने स्नान किया था और यहीं पर गोदावरी नदी पताल को तोड़कर निकली हुई है। माता सीता के कहने पर राम जी ने गोदावरी नदी को यहां पर उत्पन्न किया था। गुप्त गोदावरी को गुप्त गंगा के नाम से भी जाना जाता है।
जैसे-जैसे हम गुफा की आखिर में पहुंचेंगे, ख़ामोशी और सन्नाटा और भी बढ़ता जाएगा। गुफा के आखिरी में हमे एक तालाब मिलेगा। एक गुफा चौड़ी और ऊंची है। प्रवेश द्वार संकरा होने के कारण इसमें आसानी से नहीं घुसा जा सकता।
गुप्त गोदावरी तालाब और नदी :-
सबसे पहले यहां पर पहुंचने पर गुप्त गोदावरी तालाब देखने को मिलता है। गुप्त गोदावरी तालाब का आकार देखने में बहुत अच्छा है और इस तालाब के चारों ओर लोहे की सलाखें लगाई गई हैं। वैसे यह तालाब ज्यादा गहरा तो नहीं लगता है। मगर बरसात के समय में यहां पर पानी का बहुत ज्यादा ओवरफ्लो रहता है, क्योंकि गुफा से बहुत ज्यादा पानी आता है। गुप्त गोदावरी तालाब में एक पतली सी धारा आ कर गिरती है। गर्मी के समय यह धार बहुत ही पतली रहती है । गुफा के अंत में एक छोटा तालाब है जिसे गोदावरी नदी कहा जाता है।
धनुष कुंड :-
उसके बाद आगे बढ़ने पर हमें धनुषकुंड नाम का झरना भी मिलता है। यहां लोग पूजा कर अपने को धन्य मानते हैं। धनुष कुंड में भगवान राम अपना धनुष रखा करते थे। इसी से इसका नाम धनुष कुंड पड़ा। गंगा गोदावरी का उद्गम स्थान भी यहीं पर है। यहां पर एक कुंड था, जिसमे पानी भरा होता है।

सुईया माता की मूर्ति :-
ये सुईया माता अनसूया माता की बहन थीं। यहां इन्हें प्रतिष्ठापित किया गया है। ये भी भगवान राम के दर्शन के लिए अपना स्थान ले रखीं हैं।

राम दरबार :-
गुप्त गोदावरी के आगे गुफा के अन्त में राम दरबार है। मान्यता है कि यहीं पर भगवान राम ऋषि मुनियों के साथ मिलते थे और उनकी समस्याओं का समाधान करते थे। जब पंचवटी से माता सीता का अपहरण हुआ था तो पूरी रणनीति इसी राम दरबार पर बनी थी। कहा गया है –
रामचन्द्र सीता सहित लखन कुमार समेत।
विचरत गुप्त गोदावरी सुमिरत अभिमत देत।।
गुप्त गोदावरी के वर्षा काल का वर्णन गोस्वामी तुलसीदास जी इस प्रकार लिखते हैं —
बरषा काल मेघ नभ छाये।
गरजत लागत परम सुहाये।।
लछिमन देखू मोर गन नाचत वारिद पेखि ।
गृही विरतिरत हरष जस विष्णु भगत कहू देखि।।
दोहा :
प्रथमहिं देवन्ह गिरि गुहा राखेउ रुचिर बनाइ।
राम कृपानिधि कछु दिन बास करहिंगे आइ॥
सुंदर बन कुसुमित अति सोभा।
गुंजत मधुप निकर मधु लोभा॥
कंद मूल फल पत्र सुहाए।
भए बहुत जब ते प्रभु आए॥
देखि मनोहर सैल अनूपा।
रहे तहँ अनुज सहित सुरभूपा॥
मधुकर खग मृग तनु धरि देवा।
करहिं सिद्ध मुनि प्रभु कै सेवा॥
मंगलरूप भयउ बन तब ते।
कीन्ह निवास रमापति जब ते॥
फटिक सिला अति सुभ्र सुहाई।
सुख आसीन तहाँ द्वौ भाई॥
कहत अनुज सन कथा अनेका।
भगति बिरत नृपनीति बिबेका॥
बरषा काल मेघ नभ छाए।
गरजत लागत परम सुहाए॥
दोहा :
लछिमन देखु मोर गन नाचत बारिद पेखि।
गृही बिरति रत हरष जस बिष्नुभगत कहुँ देखि॥

सीताकुंड और दानव मयंक की गुफा:-
राम दरबार के आगे सीताकुंड है। इसी कुंड में माता सीता स्नान करती थीं। सीताकुंड में पानी कभी ओवरफ्लो नहीं होता, जबकि यहां पर पानी लगातार आता है और कुंड से बाहर पानी निकलने का कोई रास्ता भी नहीं है। बताया जाता है कि एक बार जब माता सीता इस कुंड में स्नान कर रहीं थी, उसी समय मयंक नाम का एक राक्षस आया और सीता माता के दिव्य आभूषण को लेकर भागने लगा। जब लक्ष्मण जी ने उसे देखा तो शब्द भेदी बाण चलाकर उसे श्राप दिया कि तुम पाषाण के हो जाओ। जब राक्षस पाषाण का होने लगा तो उसने प्रभु राम से प्रार्थना की कि मैं कलियुग में क्या खाकर जिंदा रहूंगा। इस पर भगवान राम ने उसे वरदान देते हुए कहा कि तुम पत्थर की शिला तो रहोगे, लेकिन तुम्हारा जो दर्शन करने आएगा, तुम उसके मानसिक पापों को खाना। वही तुम्हारा भोजन होगा। इसके बाद लक्ष्मण जी ने सीता जी के एक बाल से शिला को लटका दिया, जो आज भी है। यहाँ एक शिला, चोर के रूप में अंतरीक्ष में विराजमान है जिसे मयंक या खटखटा चोर भी कहते हैं। अनुश्रुति कहती है कि यह सभी दर्शनार्थियों के पापों को खा जाता है।
शिलैका चोर रूपा च अंततरिक्षे प्रवर्तते,
गोदावर्ण नरः स्नात्वा कृत्वा संध्या दथा विधिः।
मयंक दानव गुफा से आगे सीता कुंड है। इसमें सीता जी स्नान करती थी। इसी गुफा से बाहर की ओर आने पर भगवान राम लक्ष्मण और सीता मा की सुन्दर मूर्ति है। गुफा से बाहर की ओर निकलने पर हनुमान जी के दर्शन होते हैं।
यहां हमे कई छोटे छोटे मंदिर भी दिखाई देते हैं।

वाल्मीकि और तुलसी का कथन :-
कवि और कथाकार वाल्मीकि और तुलसी ने गुफाओं के बारे में कहा कि गुफा में बहुत ही संकीर्ण रास्ते से पहुंचा जाता है। जिसमे एक समय में सिर्फ एक व्यक्ति ही जा सकता है। अंदर जाने में गुफा बड़ी होती जाती है। यहां पर विभिन्न कुंडों में प्राप्त जल स्रोत गुप्त रूप से पवित्र गोदावरी नदी के प्रकट होने का प्रमाण देते हैं। इन गुफाओं के दर्शन करके श्रीरामचरितमानस का वह दोहा स्मृति पटल पर अंकित हो जाता है कि –
प्रथमहिं देवन्ह गिरि गुहा राखेउ रुचिर बनाइ।
राम कृपानिधि कुछ दिन बास करहिंगे आइ।।

पंचमुखी गुप्तेश्वर महादेव शिवलिंग:-
गुफा से बाहर निकलने पर हमे पंचमुखी गुप्तेश्वर महादेव शिवलिंग की पौराणिक शिव मूर्ति दिखाई देगी, जिसमें पवित्र त्रिमूर्ति- ब्रह्मा, विष्णु और शिव हैं। जल प्रवाह वाली गुफा के द्वार पर पंचमुखी शिवलिंग के दिव्य दर्शन हैं। इसे ऋषियों ने प्रतिष्ठापित किया था। इसकी परिक्रमा करते हुए दर्शनार्थी दूसरी गुफा में प्रवेश करता है।

दूसरी गुफा :-
पहली गुफा से सीढ़ियों द्वारा बाहर निकलने पर दूसरी
गुफा में घुसने पर हमें गुफा में पानी मिलेगा। यह गुफा पहली की अपेक्षा बाद की प्रतीत होती है। जब हम
गुफाओं को गौर से देखेंगे तो वह हमें और भी ज़्यादा विचित्र लगेंगी। इन गुफाओं को कई सालों पहले प्रकृति ने अपने चमत्कार से बनाया है। जैसे-जैसे हम अंदर जाते जायेंगे, पानी दो से सवा दो फिट ऊपर हमारे घुटनों तक आ जायेगा। हमें अंदर एक अलग तरह का ही रोमांच महसूस होगा। गुफा में घूमने पर हमारे पैरों को जहां पानी नहीं है, वहां अभी पानी का एहसास होगा। जिसके पीछे क्या राज़ है, किसी को नहीं पता।
दूसरी गुफा लंबी और संकरी है जिससे हमेशा पानी बहता रहता है। इसमें एक दो नहीं सात धराओं की गुप्त गोदावरी प्रवाहित होती रहती हैं। आगे चलकर शेषनाग की अदभुत एवम प्राकृतिक कुर्सियां दृष्टि गोचर होती हैं। और आगे चलने पर दूध धारा एवं श्री राम कुण्ड ,लक्ष्मण कुंड और हनुमान कुण्ड आदि के दर्शन करके तीर्थयात्री अत्यंत प्रसन्नता का अनुभव करते हैं। आगे जाकर ये गुफा बन्द हो जाती है। यहीं से मां गोदावरी के आने का संकेत मिलता है।
बाहर आने पर निर्मल पवित्र धारा कई कई कुंडों में समाहित होकर पूर्णतः विलुप्त हो जाती है। यहां पर शासन द्वारा यात्रियों को घूमने के लिए पार्क भी बनाया गया है। इसमें यात्री विश्राम करके अपनी थकान मिटाते हैं। यहां रोज प्रायः मेला जैसा नजारा देखने को मिलता है।

गुप्त गोदावरी में एक तीसरी नई गुफा भी मिली:-
यूपी के चित्रकूट जिले मे मार्च 2024 के प्रथम सप्ताह में ( मार्च 9, 2024 को राष्ट्रीय समाचार पत्रों में प्रकाशित विवरण के अनुसार) गुप्त गोदावरी के निकट तीसरी गुफा का पता चला है। बाहर से देखने पर लोगों को तीसरी गुफा के अंदर की आकृति आकर्षित कर रही है। इसके अंदर की आकृति भूवैज्ञानिकों और लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बन रही है। देश के विख्यात भूवैज्ञानिक गुफा के बारे में अध्ययन करने चित्रकूट पहुंच रहे हैं। हाल ही में चित्रकूट क्षेत्र में ग्लोबल जियो पार्क की सम्भावना का परीक्षण करने के लिए आई टीम के प्रमुख भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण विभाग के डिप्टी डायरेक्टर जनरल डॉ. सतीश त्रिपाठी एवं टीम के सदस्य डीएसएन कॉलेज उन्नाव के भूगोल विभाग के डॉ. अनिल साहू ने तीसरी गुफा का विस्तृत सर्वेक्षण किया है।

हजारों हजारों साल में बनी ये तीसरी गुफा :-
प्रथम और दूसरी की तरह हजारों हजारों साल में बनी ये तीसरी गुफा। भू गर्भ टीम के हवाले से पता चला है कि गुप्त गोदावरी की पहाड़ी तिरोहन लाइमस्टोन (एक प्रकार की चूना पत्थर की चट्टान) से बनी है। पहाड़ी के ऊपर स्थित पेड़-पौधों की जड़ों के द्वारा जब यह जल चट्टानों तक पहुंचता है तो चट्टानों को घुलकर गुफा का निर्माण करता है। गुप्त गोदावरी की पहली और दूसरी गुफा का निर्माण व विकास हजारों वर्ष पहले इसी प्रक्रिया से हुआ है। पहाड़ी में धीरे -धीरे और गुफाएं भी इसी प्रक्रिया से विकसित हो रही हैं। तीसरी गुफा के अंदर जाकर खोजी दल ने गुफा की संरचना और उसमें स्थित स्थल रूपों का अध्ययन किया है । टीम के सदस्य डॉ.अनिल साहू ने बताया कि गुफा का मुहाना 3-4 फीट व्यास का है। जिसमें से एक आदमी मुश्किल से रेंगकर प्रवेश कर सकता है। गुफा लगभग 6 फीट ऊंची है और दो भागों में विभक्त है। ऐसा प्रतीत होता है कि लाइमस्टोन चट्टानों के बीच मिट्टी घुलनें से रिक्त स्थान का निर्माण हुआ है। गुफा में स्टेलेग्टाइट और स्टेलेग्माइट पाए गए हैं।

और नई गुफा मिलने की सम्भावना:-
जिला सेवायोजन अधिकारी डॉ. पीपी शर्मा नें बताया कि इस पूरे क्षेत्र में इस प्रकार की और भी गुफाएं होंगी जिन्हें खोजने और भू पर्यटन मानचित्र पर लाने की आवश्यकता है। अगर क्षेत्र के युवाओं को सही प्रशिक्षण दिया जाये तो क्षेत्र में आधारिक संरचना के साथ-साथ भू पर्यटन के क्षेत्र में रोजगार के अवसर बढ़ेंगे।

गुप्त गोदावरी के बिना चित्रकूट दर्शन अधूरा:-
सम्पूर्ण चित्रकूट यात्रा का फल तभी मिलता है जब उपरोक्त तीनों गुफाओं का दर्शन किया जाये। जिस स्थान पर भगवान ने स्वंय निवास किया हो , उस स्थान के दर्शन मात्र से मानव जीवन धन्य हो जाता है। गोस्वामी जी मानस में लिखते हैं –
रामचन्द्र सीता सहित लखन कुमार समेत।
विचरत गुप्त गोदावरी सुमिरत अभिमत देत।।
विप्र साधु रघुनाथ जन जो आवे यह धाम।
तिनकी मनोकामना पूर्ण करत श्री राम।।
इन पंक्तियों के साथ इस विवरण को और उपयोगी बनाया जा रहा है –
परम रम्य इस तीर्थ पर अति ही सुगम विशाल।
राजत तीन सुन्दर गुफा सुनाया है उनका हाल।
जाते ही इस कंदरा में भूल जाते सब भवछंद।
जहां रमें श्री राम सिया, रघुकुल केशव चन्द्र।।

दुकानों पर मिलते हैं गुफा के स्मृति चिन्ह :-
यहां की दुकानों में हस्तशिल्प द्वारा निर्मित अद्भुत कला कृतियां प्राप्त होती हैं। जिन्हें प्राय: श्रद्धालु तीर्थयात्री स्मृति चिन्ह के रूप में अपने साथ ले जाते हैं। गुफा के बाहर ज़रूरत की चीज़ों को ख़रीदने के लिए कई दुकाने भी हैं। अगर आप गुफा की कोई याद अपने साथ लेकर जाना चाहते हैं तो उसके लिए भी वहां आपको स्मृति चिन्ह, हर्बल तेल और लकड़ी से बनी हुई कलाकृतियां मिल जाएंगी। जिन्हे आप खरीदकर अपने घरों में एक याद की तरह सज़ा कर रख सकते हैं। आपके खाने के लिए भी यहां बड़ी- छोटी हर तरह की दुकाने और रेस्टोरेंट हैं। दुकानों में प्रायः हर उपयोगी बस्तुएं मिल जाती हैं। यहां पर्यटक को खाने- पीने की कोई तकलीफ नहीं होती है।

पंडे पुजारियों का मनमाना रवैया:-
सरकार द्वारा यहां मार्ग दर्शन के लिए ना तो पर्याप्त साइन बोर्ड लगे हैं और ना ही पुलिस आदि की कोई व्यवस्था है। श्रद्धालु गुफाओं में भ्रमित हो जाते हैं । इसका नाजायज फायदा पंडे और पुजारी उठाते हैं।ये ज्यादा से ज्यादा धन दान करने के लिए दबाव बनाते है। अनेक श्रद्धालु तो यहां रोते हुए भी देखे गये हैं। यह किसी धर्म स्थान के लिए शुभ संकेत नहीं है। सरकार को इस कमी का निवारण करना चाहिए। जिससे श्रद्धालु निर्भय होकर अपने ईष्ट की पूजा- अर्चना और दर्शन कर सके।

लेखक परिचय:-
(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, आगरा मंडल ,आगरा में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए समसामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं लेखक को अभी हाल ही में इस पावन स्थल को देखने का अवसर मिला था।)

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