संसार में तीन वस्तुएं हैं, साध्य, साधक और साधन

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    संसार में तीन वस्तुएं हैं, साध्य, साधक और साधन। "'साध्य' का अर्थ है जिसे हम सिद्ध करना चाहते हैं या प्राप्त करना चाहते हैं। 'साधक' उसे कहते हैं जो साध्य को प्राप्त करना चाहता है। और 'साधन' उसे कहते हैं जिसकी सहायता से साधक अपने साध्य तक पहुंच पाता है।"
      "इन वैदिक परिभाषाओं के अनुसार 'ईश्वर' या मोक्ष 'साध्य' है। 'आत्मा' 'साधक' है। और 'धन संपत्ति भोजन वस्त्र मकान आदि' मोक्ष प्राप्ति के 'साधन' हैं।"
  संसार में कुछ लोग ईश्वर या मोक्ष प्राप्ति के लिए ईमानदारी से पुरुषार्थ करते हैं। वे लोग सच्चे साधक हैं। "वे धन भोजन वस्त्र मकान आदि साधन सीमित मात्रा में संगृहीत करते हैं। इन साधनों की सहायता से, और वेदों एवं दर्शन शास्त्रों की विद्या पढ़कर वे समाधि लगाते हैं। इनकी सहायता से वे अपने 'साध्य' ईश्वर या मोक्ष तक पहुंच जाते हैं। वही लोग वास्तव में सही दिशा में चल रहे हैं।"
     अधिकांश लोग तो लक्ष्य या साध्य को समझते ही नहीं। जीवन में केवल खाना पीना भोग करना धन कमाना संपत्ति जमा करना, यही उनके जीवन का लक्ष्य या साध्य है। "वे अपनी सारी शक्ति धन आदि वस्तुओं के संग्रह में ही लगा देते हैं। ऐसे लोग थोड़ा बहुत धन भले ही इकट्ठा कर लें, तो भी उससे उनके जीवन का कल्याण तो नहीं होगा। वे धन संपत्ति को यहां संसार में यूं ही छोड़कर चले जाएंगे। और यदि इस धन संपत्ति प्राप्त करने के कार्य में भी उन्होंने झूठ छल कपट आडंबर आदि का सहारा लिया, तो अगले जन्मों में पशु पक्षी आदि योनियों में वे भयंकर दंड भोगेंगे। इसलिए यह मार्ग अच्छा नहीं है।"
      अच्छा मार्ग तो यही है, कि "ईश्वर या मोक्ष को ही लक्ष्य बनाएं। वही वास्तविक साध्य है। धन संपत्ति आदि भौतिक साधनों को साधन के रूप में ही प्रयोग करें। और सच्चे साधक बनकर ईश्वर या मोक्ष की प्राप्ति करें। इसी से जीवन सफल होगा। और आगे मोक्ष प्राप्त करके इस जन्म मरण चक्र से छूट कर सब दुखों की निवृत्ति होगी। मोक्ष में ईश्वर का आनंद भी बहुत लंबे समय तक मिलेगा।" "बुद्धिमान लोग ऐसा कार्य करते हैं। ऐसा ही बाकी सब लोगों को भी करना चाहिए।"

—- “स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, निदेशक दर्शन योग महाविद्यालय, रोजड़ गुजरात।”

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