देश के मध्यकालीन इतिहास में खाप पंचायतों का स्वाधीनता आंदोलन भाग 7 कबीर दास के शव के फूल और ढमेलचंद योद्धा
‘सर्वखाप पंचायत का राष्ट्रीय पराक्रम’ पुस्तक से यह भी स्पष्ट होता है कि सन 1518 में कबीर दास जी के अंतिम समय में उनके शव के फूल नहीं बने थे, बल्कि हमारे वीर योद्धा ढमेल चंद, कीर्तिमल और भीमपाल ने अपने शौर्य और पराक्रम को दिखाते हुए राजा वीर सिंह बघेल से बड़ी सैनिक सहायता लेकर मुसलमानों को मार भगाने का काम किया था। जो कि उस समय कबीर दास जी के शव को लेकर दफन करने की तैयारी कर रहे थे। हमारे कुछ संत उस समय कबीर दास जी के शव की रक्षा कर रहे थे । बड़ी चतुराई से हमारे वीर योद्धाओं ने कबीर दास जी के शव को वहां से उठाकर दूर एकांत में जाकर उसका दाह संस्कार कर दिया था। तब हमारे संतो ने उनके मृत शरीर के स्थान पर कुछ पुष्पों को एक कपड़े के नीचे डाल दिया था। उसी का यह मिथ्या प्रचार इतिहास में कर दिया गया कि अंतिम समय में कबीर दास जी के शव के फूल बन गए थे। जबकि हमारे वीर योद्धाओं की वीरता को भुला दिया गया।
शाहजहां और औरंगजेब के साथ पंचायत की लड़ाई
जिस समय शाहजहां के उत्तराधिकार को लेकर दाराशिकोह और औरंगजेब के बीच लड़ाई चल रही थी, उस समय खाप पंचायत के पंचों ने निर्णय लिया था कि दाराशिकोह को इस समय सहायता देने की आवश्यकता है । याद रहे कि पंचायत ने यह निर्णय दाराशिकोह के उदारवादी दृष्टिकोण के चलते लिया था । जो कि हिंदू धर्म के प्रति उदार था और जिसने उपनिषदों पर विशेष शोध कार्य किया था। उस उदार शहजादे को सहायता देकर खाप पंचायत ने ऐतिहासिक कार्य किया था। उस समय मथुरा में संवत 1714 में एक विशेष पंचायत आयोजित की गई थी। जिसमें निर्णय लिया गया था कि 20000 मल्ल सैनिक इस समय दारा का साथ देंगे। जिससे हिंदुस्तान से मुस्लिम शासन को समाप्त किया सके और एक उदार बादशाह को अपना राजा बनाया जा सके। इस 20000 की सेना का नेतृत्व करने के लिए पांच सेनापति बनाए गए थे। जिनमें दो गुर्जर योद्धा, दो राजपूत योद्धा और एक जाट योद्धा था। ( पृष्ठ 257)
मथुरा सभा का यह लेख खाप पंचायत सौरम के रिकॉर्ड से लिखा गया है। स्वर्गीय पंडित जगदेव सिंह सिद्धांती जी ने यह लेख तिथि 24 जनवरी 1951 के साप्ताहिक हिंदी पत्र ‘सम्राट’ में सम्राट प्रेस पहाड़ी धीरज दिल्ली से प्रकाशित किया था।
जब औरंगज़ेब उत्तराधिकार के युद्ध में सफल हो गया तो उसने खाप पंचायत के 21 योद्धाओं को मरवा दिया था। इसके पश्चात भी वीर बलिदानियों ने औरंगजेब के विरुद्ध युद्ध जारी रखा था। कई सभाएं उस समय औरंगजेब के विरुद्ध हुई थीं और सर्व खाप पंचायत के अनेक वीर योद्धा अलग-अलग कई युद्धों में औरंगजेब को चुनौती देते रहे थे।
इन घटनाओं से स्पष्ट होता है कि मध्यकालीन भारतवर्ष के इतिहास में जब अनेक राजा महाराजा विदेशी आक्रमणकारियों से लोहा ले रहे थे और उन्हें भारत की पवित्र भूमि से बाहर खदेड़ने का पवित्र कार्य कर रहे थे उस समय सर्वखाप पंचायत भी आराम से नहीं बैठी थीं। उनके नेता भी देश में जन क्रांति करते हुए लोगों को देश सेवा के लिए प्रेरित कर रहे थे। खाप पंचायतों ने उस समय जन क्रांति को एक क्षण के लिए भी रुकने नहीं दिया था । हमेशा लोग अपनी-अपनी पंचायतों के माध्यम से देश सेवा के लिए समर्पित होकर काम करने के लिए तैयार रहते थे। इन जैसी अनेक घटनाओं को आज पूर्ण मनोयोग से एकत्रित कर नए इतिहास में स्थान देने की आवश्यकता है। जिससे हमें अपने गौरवपूर्ण इतिहास का पता चलेगा। आने वाली पीढ़ी को यह भी पता चलेगा कि अतीत में हमारे देश के लोग विदेशी आक्रमण कारी शासको के विरुद्ध निरंतर संघर्षरत रहे। वे एक क्षण के लिए भी रुके नहीं , झुके नहीं।
डॉ राकेश कुमार आर्य
लेखक एवं इतिहासकार
राष्ट्रीय प्रणेता : भारत को समझो अभियान समिति
मुख्य संपादक : उगता भारत समाचार पत्र
राष्ट्रीय महामंत्री: अंतर्राष्ट्रीय आर्य विद्यापीठ रोहिणी नई दिल्ली
राष्ट्रीय अध्यक्ष : राष्ट्रीय प्रेस महासंघ
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