सरल नहीं होता हैं मोहन, विष्णु और भजनलाल हो जाना

               भारतीय जनता पार्टी में एक टर्म या शब्द चलता है, “देवतुल्य कार्यकर्ता” यह शब्द बड़ा ही विशेष है! जहां विश्व के तमाम राजनैतिक दलों या यूं भी कह सकते हैं कि विश्व के सभी प्रकार के संगठनों में ऐसा शब्द सुनने-बोलने में नहीं आता है, वहीं भाजपा में यह शब्द चरितार्थ होता हुआ भी दिखाई पड़ता है!! छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु साय जी भी ऐसे ही व्यक्ति हैं किंतु उनका कोई अनुभव, भेंट या संस्मरण मेरे पास दुर्योग से नहीं है। मध्यप्रदेश व राजस्थान के नवनियुक्त मुख्यमंत्री मोहन यादव व भजनलाल शर्मा के संबंध में देवतुल्य कार्यकर्ता शब्द सिद्ध होता है। ये दोनों व्यक्ति अपने संगठन के कार्यकर्ता को देवतुल्य मानते हैं; ये मेरा व्यक्तिगत अनुभव व संस्मरण है। 

           पहला संस्मरण मप्र के मुख्यमंत्री मोहन यादव जी का है, इसे मैंने वर्ष 2021 में मेरे ब्लॉग व सोशल मीडिया के अन्य प्लेटफार्म्स पर भी पोस्ट किया था। मोहन यादव जी से मेरी भेंट, चर्चा व जान पहचान का अत्यंत सीमित दायरा ही था। मोहन जी मप्र के उच्च शिक्षा मंत्री थे तब मैंने उन्हें छिंदवाड़ा विश्वविद्यालय के कार्यपरिषद सदस्य होने के नाते एक पत्र लिखा था। एक दिन अचानक बिना पूर्व सूचना के मैं उनके भोपाल स्थित कार्यालय पहुँच गया। अंदर मेरे जाने की सूचना पर्ची के माध्यम से गई और उन्होंने मुझे तत्काल ही अंदर बुलवा लिया। जैसे ही मैंने उनके कक्ष में प्रवेश किया, मोहन जी तत्क्षण बोलना प्रारंभ किया - प्रवीण जी, आपने जिस महाविद्यालय के लिए राशि पिछले माह मांगी थी उसका स्वीकृति पत्र लेकर जाइए!! और इसके तत्काल बाद उन्होंने मुझे मेरे प्रस्ताव की प्रशासकीय स्वीकृति सहित बजट आवंटन का पत्र मेरी हाथों में थमा दिया था। मुझे बड़ा घनघोर आश्चर्य हुआ। मैं दांतों तले अंगुली दबाने को विवश हो गया। मैं ठहरा संघ-भाजपा का अत्यंत छोटा व मामूली सा कार्यकर्ता और मेरे एक मामूली से पत्र के सारे सारे के सुझावों व मांगों को मानते हुए इतने बड़े बजट के आवंटन को देखते हुए मैं आश्चर्यचकित ही नहीं अपितु भावविभोर भी हो गया था। मेरे बड़े ही संक्षिप्त, अल्प आग्रह पर मप्र के उच्च शिक्षा मंत्री मोहन जी यादव ने बैतुल के जयवंती हक्सर महाविद्यालय हेतु 9.18 करोड़ व आठनेर महाविद्यालय हेतु 3.53 करोड़ रु. भवन निर्माण हेतु स्वीकृत कर दिये थे। पत्र देते हुए उन्होंने यह भी कहा कि, आपके आग्रह के अनुसार शाहपुर महाविद्यालय के बजट का आवंटन शेष रहा है वह भी शीघ्र ही मिल जाएगा। 

       भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने यदि मोहन जी यादव को मुख्यमंत्री मनोनीत करने का निर्णय लिया है तो निश्चित ही उन्होंने भाजपा के लाखों  कार्यकर्ताओं, संगठन, समाज व अपने कर्तव्य के प्रति मोहन जी की इस परायणता, समर्पण व चैतन्यता को देखकर ही किया होगा। 

        आज उनके मुख्यमंत्री कार्यालय के प्रथम दिवस पर उनकी कर्तव्य परायणता के भाव को नमन सहित उन्हें बधाई व शुभकामनाएँ!!  

दूसरा संस्मरण राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा जी का –

      अप्रैल, 2021 में वो बड़े भारी और भयंकर कोविड महामारी के दिन थे। पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव चल रहे थे। उन दिनों मप्र से लेकर बंगाल तक पूरे देश के श्मशान में शवों के दाह संस्कार के हेतु लाइनें लगा करती थी। परिजनों के शवों का अंतिम संस्कार करना भी एक चुनौतीपूर्ण कार्य हो गया था। मौत अपने चरम रूप को दिखाते हुए तांडव कर रही थी। समूचे देश में चीख पुकार और हाहाकार मचा हुआ था। उन दिनों में अपने घर से दो हज़ार किमी की यात्रा करके पश्चिम बंगाल में चुनाव प्रचार हेतु जाना पागलपन ही था। यह पागलपन भजनलाल जी शर्मा और मैंने कर लिया था। हम दोनों ही अनेकों कार्यकर्ताओं की भांति अपने अपने प्रदेश से पश्चिम बंगाल के विस चुनाव में भाजपा के प्रचार कार्य हेतु पहुंचे हुए थे। भजनलाल जी व मेरा वहां पहली बार परिचय हुआ था। भजनलाल जी व मुझमें एक समानता थी, दोनों के ही पारिवारिक परिजन सुबह शाम घर वापिस लौटने हेतु रोते, चीखते और क्रोधित होकर फोन किया करते थे, और हम; इन पत्नी, पिता, माता, भाई, बच्चों के इन फोन कॉल्स से व्यथित होकर भी काम में लगे रहते थे। प्रतिदिन हम परिवार से आने वाले इन फ़ोन कॉल्स की चर्चा किया करते थे। परिवार जनों से झूठ कहते थे कि फ्लाइट नहीं है या, टिकिट नहीं हो रही या कैलाश जी विजयवर्गीय और अरविंद जी मेनन आने नहीं दे रहे हैं!!

   राजस्थान के नवनियुक्त मुख्यमंत्री भजनलाल जी शर्मा,  कूचबिहार के निशीथ जी और मैं पश्चिम बंगाल विस चुनाव के समय कोलकाता मुख्यालय में रुके थे। हम तीनों का साथ प्रतिदिन सुबह पांच से सात बजे तक का होता था। सुबह का योग व्यायाम, फिर पांच सात किमी की सैर और लौटकर सुबह का अल्पाहार भजनलाल जी के संग ही होता था मेरा। फिर वो दिन भर वो अपने रास्ते और हम अपने रास्ते निकल जाते थे। एक दिन तो हम कुछ दस बारह किमी की पदयात्रा करके नेताजी सुभाषचंद्र बोस के निवास स्थान पर बने स्मारक तक भी पहुँच गये थे। संलग्न चित्र कोलकाता के नेताजी सुभाषचंद्र बोस स्मारक के सामने का ही है। तब सुबह सुबह वह स्मारक खुला भी नहीं था और हमें बाहर से ही दर्शन करके लौटना पड़ा था। 

      भजनलाल जी और मेरा रात्रि का भोजन और उसके बाद की सैर और पान खाना और लंबी गपशप करना भी साथ में होता था। और हां, इस गपशप में कोविड के दिल दहला देने वाले और हृदय को भीतर तक चीर देने वाले किस्से अवश्य ही हुआ करता था। प्रतिदिन जब कोरोना से मृत्यु का डर मुझ पर हावी होता था तब भजनलाल जी केवल मुझे ही नहीं बल्कि मेरे जैसे दसियों कार्यकर्ताओं को हिम्मत बंधाते और साहस देते नजर आते थे।

बड़े भी विनम्र किंतु सख्त, हंसमुख के साथ गंभीर, अच्छे नियोजक किंतु सरल, चटोरे किंतु शुद्ध शाकाहारी, उन्मुक्त किंतु निर्व्यसनी, सहज चर्चा करने वाले किंतु उत्तम वक्ता, कम बोलने वाले किंतु मित्रों के साथ मुखर; प्रकार के व्यक्ति हैं, भजनलाल जी!!

अनंत शुभकामनाएं एवं बधाई .. और आपके चरितार्थ होते देवतुल्य कार्यकर्ता भाव के चिरंजीवी होने हेतु मंगल कामनाएं ….

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