हिन्दू_संस्कृति_की_अजेयता_और_वर्तमान_खतरा
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बहुत आक्रमणों को झेला हमने, एक के बाद एक। करते रहे संघर्ष पर हार कभी नहीं मानी।
मिश्र, फारस, यूनान, रोम, स्केंडनेविया… सभी की संस्कृति का विनाश हुआ पर हिंदू अड़े रहे, लड़ते पिटते, हारते, जीतते… पर अड़े रहे।
कैसे? कहाँ से आई इतनी #जिजीविषा?
क्या केवल #योद्धाओंकासंघर्ष?
अगर संघर्ष केवल योद्धाओं का था तो तुर्क जैसे प्रचंड योद्धा अरबों से कैसे हार गए पर मुट्ठी भर राजपूतों ने अरबों को खदेड़ दिया और लगातार 800 वर्षों तक तुर्कों का प्रतिरोध किया।
अगर संघर्ष केवल योद्धाओं का था तो वाइकिंग्स कैसे हार गए पर जाटों को कोई भी मुस्लिम सत्ता कभी दबा नहीं सकी?
अगर संघर्ष केवल योद्धाओं का था तो एक युद्ध में हार से पूरा ईरान मुस्लिम कैसे बन गया पर लाखों की मुगल फौज मुट्ठी भर मराठों व सिखों से पार ना पा सकी।
विश्व में हर कोई इस बात पर आश्चर्य करता है और इकबाल जैसा व्यक्ति अपने पूर्वार्द्ध काव्य जीवन में कह उठा था…
“कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी”
“इस बात” को इस “रहस्य” को जानने में ही हमारे दुश्मनों की रुचि रही है, वे जानना चाहते हैं इस रहस्य को ताकि वे हमारा शिकार आसानी से कर सकें।
#संस्कृति…
इसी शब्द में छिपा था सारा रहस्य जिसपर प्राचीन ऋषियों ने इस राष्ट्र की संकल्पना की थी।
राज छिपा था उन ब्राह्मणों के दुर्दम्य हठ में जिन्होंने घोर दरिद्रता में रहकर भी मुस्लिम शासकों का #म्लेच्छ कहकर तिरस्कार तो किया ही उन्हें इतना हीन, यहां तक कि चांडालों से भी ज्यादा अस्पृश्य घोषित कर दिया कि उनके साथ भोजन करने वाला भी अस्पृश्य हो जाता था। पूरे संसार के इतिहास में किसी भी शासक और सैन्य वर्ग का इतना भयंकर तिरस्कार किसी पराजित जाति ने नहीं किया होगा जितना ब्राह्मणों के नेतृत्व में हिंदुओं ने मुस्लिम शासकों का किया। इस तिरस्कार के कारण ही हिंदू पराजित होकर भी स्वयं को मुस्लिमो से श्रेष्ठ मानते रहे और उनमें कभी भी हीनताबोध नहीं जागी। (हालांकि इस नीति ने जड़ मूर्खतापूर्ण रूप भी धारण कर लिया।)
हिंदुओं के इस सतत प्रतिरोध का राज छिपा था उन भाटों, चारणो और लोकगायकों में भी जो हिंदू देवमंडल और महानायकों की गाथाओं को दो मुट्ठी अनाज के बदले एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचाते रहे।
राज छिपा था उन मूर्ति, काष्ठ और लौह शिल्पकारों में जो भूखे मर गए पर अपनी कला को आक्रांताओं के हाथों बेचा नहीं और जब ये राजपूत योद्धा व ब्राह्मण वन बीहड़ो में दर दर भटके तो ब्राह्मणों, क्षत्रियों के साथ वे भी अस्पृश्यता, शोषण, तिरस्कार और अपमान सहकर भी परछाईं की तरह चले और बिना किसी लोभ या भय के #हिंदुत्व पर दृढ़ बने रहे और अधिसंख्य आज भी बने हुए हैं।
इस रहस्य को मुस्लिम नहीं समझ सके तथा #पंथ को #धर्म समझकर उसके बाह्य प्रतीकों का विध्वंस करने में जुट गए।
मंदिर तोड़े, बौद्ध विहार तोड़े, शिवालय तोड़े पर वे कभी भी #संस्कृतिकीआत्मा को नहीं तोड़ सके क्योंकि वह तो निहित थी उस ब्राह्मण में जो भूखे मर मर कर भी तुलसी बनकर महाराणा प्रतापों को रामकथा से हौसला दे रहा था, मानसिंहों को फटकार रहा था और अकबरों का तिरस्कार कर रहा था।
वह समर्थगुरु बनकर अखाड़ों में शिवाओं को गढ़ रहा था। वह दक्षिण में सायण और विद्यारण्य बनकर वेदों की रक्षा कर रहा था। वह थोड़े से सीदे के बदले संगीत, साहित्य और इतिहास को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचा रहा था।
साथ ही हिंदुत्व की वास्तविक शक्ति निहित थी उन दलितों में जिन्होंने मुस्लिम सत्तावर्ग के ‘इस्लामिक समानता’ के ऑफर को ठुकरा दिया और शोषण व अत्याचार सहकर भी हिंदुत्व के ध्वज तले रहने में ही अपना गौरव माना।
इस प्रचंड हिंदू एकता के गर्भ से जन्मे वीर मराठे मावलों, राजपूतों, जाटों और सिखों ने मुस्लिम सत्ता को उखाड़ फेंका।
परंतु तभी आ धमके चालाक अंग्रेज उन्होंने 1857 के बाद हिंदुत्व की शक्ति को पहचान लिया।
इतिहास के माध्यम से हमला प्रारंभ किया गया। आर्य-द्रविड़ वाद से विदेशी शासन के औचित्य को स्थापित किया गया।
हिंदुओं में “सदैव पराजित होने का हीनताबोध” भरा गया और मुस्लिमों में “श्रेष्ठतावाद व असुरक्षा” का बीज बोया गया।
फिर बारी आई हिंदू साहित्य व कला की जिन्हें सदैव पाश्चात्य मानकों पर तौलकर हीन ठहराया गया।
हिंदुओं के सामाजिक संस्कृति के नकारात्मक पहलुओं को चुन चुनकर रेखांकित किया गया और दोषी ठहराया गया ब्राह्मणों को कि एक बार मस्तिष्क विकृत हो जाये तो हिंदुत्व का शेष शरीर कब तक संतुलित रहेगा।
इसी कारण हिंदू बौद्धिक वर्ग, जिसमें अधिकांशतः ब्राह्मण ही थे, में से कुछ इसका शिकार हो गए और रही सही कसर #मार्क्सवाद के आगमन ने पूरी कर दी।
श्रेष्ठतम ब्राह्मण मेधा अपनी ही संस्कृति के विरुद्ध #पाश्चात्य व #वामपंथी_षड्यंत्र का अमोघ अस्त्र बनी और निगाह उठाकर देख लीजिये चारों ओर हिंदुत्व के विरुद्ध जहर उगलते वर्ग में सर्वाधिक व्यक्ति इसी वर्ग से मिलेंगे।
बौद्धिक प्रतिरोध भी सर्वाधिक ब्राह्मणों की ओर से ही आया परंतु उन्होंने कभी भी अपने इन स्वजातीय बंधुओं का वैसा बहिष्कार नहीं किया जैसा वे दलित जातियों का मामूली अपराधों पर अन्य जातियों का करते और इसी से आपसी संदेह और अविश्वास का प्रारंभ हुआ और इसका फायदा उठाया अंग्रेजों ने।
ब्रिटिशों और फिर कम्यूनिस्टों ने #अपना_जहर हिंदुत्व के शरीर में भर दिया था जो असर दिखाने लगा। इतिहास, साहित्य व कला के हर क्षेत्र में ये मारीच घुस गये और उन्होंने दो तरफा मार की। एक ओर तो उन्होंने भारतीय मूल्यों पर आधारित कला व साहित्य को हतोत्साहित किया वहीं विभाजन व विखंडनकारी साहित्य व कला को बढ़ावा दिया जिन्हें सदैव पाश्चात्य शक्तियों ने प्रोत्साहित किया। अरविंद अडिगा, अरुंधती रॉय, मकबूल फिदा हुसैन, सफदर हाशमी आदि इन्हीं मारीचों के मानस संतानें हैं।
नाजियों से नफरत करने का ढोंग करने वाले इन तथाकथित प्रगतिशीलों और लोकतंत्रवादियों का आदर्श गोबेल्स ही रहा है इसीलिये कॉंग्रेस को समर्थन देने के बदले इतिहास, साहित्य और कला संस्थाओं पर कब्जा कर लिया और उन्हें अपनी हिंदू द्रोही गतिविधियों का अड्डा बना दिया जिसका सर्वोत्तम उदाहरण जे एन यू और मध्यप्रदेश का भारतभवन है।
ब्रिटिशों और वामियों के इतिहास के हीन प्रस्तुतिकरण के कारण उत्पन्न पराजयबोध के कारण पहले से हीनमना हिंदू और अधिक हीनता प्रदर्शित करने लगे। प्रगतिशील और वैज्ञानिक दिखने के लिये हिंदू परंपराओं का और अधिक मजाक उड़ाया जाने लगा, भारतीय आदर्श चरित्र राम, कृष्ण और शिव में या तो खोट ढूंढे जाने लगे या फिर उन्हें काल्पनिक घोषित किया जाने लगा।
फिर आया उदारीकरण के नाम पर उपभोक्तावाद और आधुनिक इस्लामिक आतंकवाद का युग।
उपभोक्तावाद के प्रचार के लिए माध्यम बनी नारी देह जिसके लिये जन्म दिया गया #नारीवाद और #फेमनिज्म को। मैत्रेयी पुष्पा, अरुंधती रॉय, द्युति सुदीप्ता जैसी कुंठित फेमनिस्ट, यौनिकता के चिरबुभुच्छित कॉमरेड्स, द्रौपदी सिंगार के छद्म नाम से लिखने वाले नपुंसक कवि और नारी शरीर पर लार टपकाने वाले स्त्रैण लोलुप पुरुषों ने दुर्गावती व गार्गी के स्थान पर सनी लियोनी व स्वरा भास्कर को भारतीय लड़कियों का आदर्श बना दिया।
इन धूर्त जमात के नर मादाओं ने राम, कृष्ण, युधिष्ठिर को सिर्फ कामुक शोषक पुरुष और सीता, राधा और द्रौपदी को पीड़ित नारी घोषित कर दिया।
इनकी धूर्तताओं की बानगी देखिये…
- इनकी निगाह में हर स्त्री को यौन स्वतंत्रता होनी चाहिए लेकिन द्रौपदी की सहमति से पांडवों के साथ उनका विवाह स्त्री का शोषण है।
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इनकी निगाह में पद्मिनी एक मामूली मूर्ख औरत थी लेकिन दिनरात पुरुषों को स्त्रिलोलुप ठहराते इस गैंग के मेम्बरों के लिए खिलजी और अकबर ‘जुनूनी प्रेमी’।
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इन्हें दुर्गावती और लक्ष्मीबाई में नारी सशक्तिकरण नजर नहीं आता बल्कि सनी लियोनी बनने में नारी सशक्तिकरण दिखाई देता है।
इन संस्कृति द्रोहियों ने नारी स्वतंत्रता की ओट में नारी देह को उसी बाजारवाद और पूंजीवाद के प्रसार का माध्यम बना दिया जिसके विरोध में ये क्रांति के तराने गाते नहीं थकते।
ऐसी स्थिति में कला की आधुनिकतम विधा, सिनेमा इन गिद्धों की नजर से कैसे बच पाता और फिर वे तो पूर्व में ही वे सिनेमा का महत्व समझ गये और सिनेमा भी उसका शिकार बना। नेहरू की मेहरबानी से वे उस पर काबिज हो भी गये।
फिर तो जो सिनेमा जो उदात्त हिंदू चरित्रों राम कृष्ण हरिश्चन्द्र, महाराणा प्रताप, शिवाजी तथा हिंदू प्रतिरोध की घटनाओं जैसे संन्यासी विद्रोह का चित्रण कर रहा था वह प्रगतिशील सिनेमा के नाम पर केवल और केवल गरीबी, स्त्री दुर्दशा, सामाजिक शोषण को परोसने लगा।
कमर्शियल सिनेमा भी गरीबी को महिमामंडित किया जाने लगा। अमिताभ के दौर की फ़िल्मों को याद कीजिये कि किस तरह अमिताभ गरीबी को महिमामंडित करने वाले डायलॉग मारते थे और बेवकूफ पब्लिक खुश होकर डायलॉग्स पर तालियाँ बजाती थी।
50% सत्य होने के बावजूद सिनेमा में सर्वदा और शतप्रतिशत सत्य के रूप में अतिरेकपूर्ण ढंग से पंडित के नाम पर सिर्फ एक तोंद युक्त, कुटिल चेहरे वाले लालची पुजारी, ठाकुर के नाम पर सिर्फ एक अत्याचारी जमींदार, बनिये के नाम पर सिर्फ एक सूदखोर महाजन को चित्रित किया गया और दूसरी ओर इमाम साहब या चर्च के फादर को सदैव धर्मपरायण, दयालु और भव्य व्यक्तित्व के रूप में स्थापित किया गया।
अपने इस #नरेटिव को प्रारम्भिक रूप से सफलतापूर्वक स्थापित करने के बाद पहले उन्होंने अगला प्रहार किया भारतीय नारी पर जिसको उन्होंने ग्लैमर से ललचाया और इसमें एकता कपूर ने जाने अनजाने में उनकी मदद की।
नारी उन्मुक्तता के इस दौर में दाऊद के नेतृत्व में पाकिस्तान व सऊदी अरब ने मुंबई में बॉलीवुड पर नियंत्रण स्थापित कर लिया और फिर जोधा अकबर, ताजमहल, खिलजावत जैसी फिल्मों, अकबर द ग्रेट, नूरजहां, सत्यमेव जयते जैसे टी वी कार्यक्रम बनाये गए ताकि हिंदू लड़कियों को मुस्लिम लड़कों की ओर आकर्षित कर #लवजिहाद के माध्यम से अल्लाह मिंयाँ की खिदमत की जा सके और #गजवाए_हिंद के सपने को साकार किया जा सके।
वरना कोई मुझे बताये कि आमिर खान ने कभी तीन तलाक, हलाला और बुर्के पर कुछ बोला हो।
मीडिया, सिनेमा और सोशल एक्टिविज्म पर इस्लामी व वैटिकन शक्तियों के शिकंजे के कारण ही लव जेहाद, धर्मांतरण, मुस्लिम इनमाइग्रेशन जैसे राष्ट्र विध्वंसक व हिंदुत्व विरोधी कार्यक्रम सफल हो रहे हैं। इधर भारत और हिंदुत्व के दुर्भाग्य से राष्ट्रद्रोहियों की एक लंबी परंपरा रही है और बरखादत्त, प्रणय रॉय, रविश कुमार, मुलायम, लालू, दिग्विजय, ममता बैनर्जी आदि उसी देशद्रोही परम्परा के वारिस हैं और इनके द्वारा समर्थित भीम-मीम का अपवित्र गठजोड़ उसका विस्तार।
अब हिंदुत्व पर इस भयानक चहुँ ओर हमले की गहनता और भयानकता को महसूस कर लीजिये और तय कर लीजिये उसका मुकाबला “भीमटा हाय हाय, “आरक्षण हाय हाय”, “मोदी हाय हाय” के नारों से करना है या धीरता गंभीरता से रणनीति बनाकर और अपने पूर्वजों के तपस्या व संघर्ष के मार्ग पर चलकर, उनकी गलतियों का परिमार्जन करके, ‘सर्व हिंदू सहोदरा’ के मार्ग पर चलकर???
खुद तय कर लीजिये।
#साभार:–
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