भारतीय सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के पुरोधा के रूप में उभरे प्रधानमंत्री मोदी

ललित गर्ग-
प्रधानमंत्री संस्कृतिपुरुष श्री नरेंद्र मोदी ने भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण के पुरोधा युगपुरुष बनकर न केवल संस्कृति का संरक्षण किया बल्कि उसके पुनर्जागरण के अभूतपूर्व एवं विलक्षण उपक्रम करके एक बार फिर भारत की संस्कृति को जीवंतता, हिमालयी ऊंचाई एवं समुद्र-सी गहराई प्रदान की है। प्राचीन काल से ही भारत दुनिया में अध्यात्म, कला, विज्ञान और तकनीक से जुड़े ज्ञान का केंद्र माना जाता रहा है। बीच में एक दौर ऐसा भी आया जब विदेशी शासकों और औपनिवेशिक युग ने कई भारत की गौरवशाली संस्कृति एवं समृद्ध विरासत को भारी नुकसान पहुंचाया कि उन्हें आज तक फिर जिंदा नहीं किया जा सका। आजादी के बाद भी इस तरह की स्थितियों का बना रहना दुर्भाग्यपूर्ण रहा। पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव एवं अगले वर्ष के प्रारंभ में होने वाले लोकसभा चुनाव में भारत की संस्कृति, गौरवमय विरासत एवं समृद्ध इतिहास जैसे शाश्वत मुद्दें पर जनजागरण का माहौल बनाया जाना चाहिए।
नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सरकार ने ‘विकास भी विरासत भी’ के नारे के तहत सांस्कृतिक पुनर्जागरण के विलक्षण प्रयास किये हैं। प्रधानमंत्री ने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय ज्ञान प्रणालियों, परंपराओं और सांस्कृतिक लोकाचार को संरक्षित करने और बढ़ावा देने के कार्य को अत्यधिक महत्व दिया है। अयोध्या में राम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर का निर्माण, काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का जीर्णोद्धार और उज्जैन में महाकाल कॉरिडोर के निर्माण ने हमारे प्राचीन इतिहास के अहम पहलुओं को फिर से उजागर किया है। इसके साथ ही, चोरी और लूट के जरिए विदेश पहुंचीं कलाकृतियों और मूर्तियों का लौटना भारतीय विरासत के लिए गर्व का क्षण है, जो विभिन्न देशों की ओर से खेद जताने का प्रतीक भी है। ऐसे महत्वपूर्ण काम हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के स्थायी साक्ष्य के रूप में देश की स्मृति में अंकित हो रहे हैं। सांस्कृतिक वैभव को आजादी के अमृतकाल में अमृत-छटा प्रदान करने के कार्य नये भारत-सशक्त भारत के प्रतीक बन रहे हैं।
अपने प्रभावी एवं सफल दूसरे शासनकाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत की सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक विरासत को देश की एकता के साथ जोड़ने का काम किया है। धर्म के प्रति अटूट प्रतिबद्धता के जरिये उन्होंने कई ऐसे कार्यक्रम शुरू किए हैं, जो बेहतर अवसरों के साथ भारत को उज्ज्वल भविष्य की ओर ले जा रहे हैं। योग दिवस हो, अहिंसा दिवस हो, जी-20 की अध्यक्षता हो या इंटरनैशनल इयर ऑफ मिलेट्स प्रोग्राम जैसे ऐतिहासिक एवं अनूठे उपक्रमों के साथ प्रधानमंत्री मोदी ऐसे नेता साबित हुए हैं, जो अपनी सांस्कृतिक जड़ों से मजबूती से जुड़े हुए हैं और संस्कृति को मजबूती देते हुए उसे नये आयाम दे रहे हैं। उनकी हर साल केदारनाथ यात्रा, सैनिकों के साथ दिवाली मनाना, बोहरा समुदाय के साथ विभिन्न धर्म-सम्प्रदाय के नेताओं के साथ आत्मीय नाता भारत के विविध सांस्कृतिक पुनर्जागरण के उपक्रमों को ही दर्शाते हैं। सामाजिक एवं साम्प्रदायिक विभाजन और दुष्प्रचार के बीच, भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद, राजनीति के अपराधीकरण के खिलाफ उनकी अटूट जंग भारत को अभिजात्य प्रभुत्व से मुक्त कराने में अहम है। आज भारत इक्कीसवीं सदी की सबसे जागृत अवस्था में है। राष्ट्र की इस दिव्यता के पीछे जो प्रचुर आस्था है, उसे बस राजनीतिक इच्छाशक्ति के रूप में देखना सतही होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुड गवर्नंस के हर पहलू में बेहतर प्रदर्शन किया है और भारत को आध्यात्मिकता, तकनीक, संस्कृति, विज्ञान और अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में दुनिया में अग्रणी लोकतंत्र बनाया है। सिखों के दसवें गुरु गोबिंद सिंह के चार बेटों की शहादत को ‘वीर बाल दिवस’ के रूप में मनाए जाने का मोदी का ऐलान भी बहुप्रतीक्षित और ऐतिहासिक कदम रहा। संसद की नई इमारत के निर्माण और इसकी शुरुआत ने भी भारत के स्वर्ण युग की यादें ताजा कर दी हैं।
कई दशकों की उपेक्षा के बाद, भारत के लंबे सभ्यतागत इतिहास वाले विभिन्न संस्कृति एवं धर्म स्थलों को संरक्षण, पुनरुद्धार और विकास परियोजनाओं के माध्यम से पुनर्जीवित किया गया है। काशी विश्वनाथ कॉरिडोर और वाराणसी में कई अन्य परियोजनाओं ने शहर की गलियों, घाटों और मंदिर परिसरों को बदल दिया है। इसी तरह, उज्जैन में महाकाल लोक परियोजना और गुवाहाटी में मां कामाख्या कॉरिडोर जैसी परियोजनाओं से मंदिर आने वाले तीर्थयात्रियों के अनुभव को समृद्ध करने, उन्हें विश्व स्तरीय सुविधाएं प्रदान करने के साथ-साथ पर्यटन और स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है। एक ऐतिहासिक क्षण में, अगस्त 2020 में अयोध्या में राम मंदिर का राष्ट्र मन्दिर के रूप में भूमि पूजन हुआ और अब भव्य मंदिर वर्ष 2024 के प्रारंभ में बनकर तैयार हो जायेगा।
भारतीय संस्कृति का केंद्र हिंदू धर्म है, जो सिर्फ एक धर्म नहीं बल्कि एक व्यापक जीवन शैली है। भारतीय संस्कृति का लोकाचार हिंदू धर्म के सिद्धांतों और इसके सह-अस्तित्व और वसुधैव कुटुंबकम के मूल दर्शन के साथ जुड़ा हुआ है। हिंदू धर्म ने वह आधार प्रदान किया है जिस पर समय के साथ विभिन्न उप-संस्कृतियाँ उभरीं और विकसित हुईं, जिन्होंने भारतीय सांस्कृतिक विरासत की समृद्ध छवि में योगदान दिया। पूरे इतिहास में, भारत की संस्कृति को आक्रमणकारियों और उपनिवेशवादियों से चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, जिनका उद्देश्य इसके सांस्कृतिक ताने-बाने को नष्ट करना था। इस्लामी आक्रमणकारियों ने मंदिरों को निशाना बनाया, जो न केवल पूजा स्थल थे बल्कि शिक्षा, कला, नृत्य, संगीत और संस्कृति के केंद्र भी थे। इन चुनौतियों के बावजूद, भारत की सांस्कृतिक लचीलापन समय की कसौटी पर खरी उतरी है। धर्म के प्रति समग्र दृष्टिकोण में बड़े और स्पष्ट बदलाव होते हम देख रहे हैं। भू-राजनीति से लेकर हमारी विदेश नीति तक, ‘भारतीय बोध’ के एकीकरण और ‘हम’ पर जोर ने भारत को देखने वाले दुनिया के नजरिये पर जबर्दस्त प्रभाव डाला है।
प्रधानमंत्री ने गुजरात के सोमनाथ में कई परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास किया, जिसमें सोमनाथ प्रोमेनेड, सोमनाथ प्रदर्शनी केंद्र और पुराने (जूना) सोमनाथ के पुनर्निर्मित मंदिर परिसर शामिल हैं। इसी तरह, करतारपुर कॉरिडोर और एकीकृत चौक पोस्ट का उद्घाटन एक महत्वपूर्ण अवसर था, जिससे श्रद्धालुओं के लिए पाकिस्तान में पवित्र गुरुद्वारा करतारपुर साहिब में माथा टेकना आसान हो गया। हिमालयी और बौद्ध सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण करना भी सरकार के प्रयासों में विशेष रूप से शामिल है। स्वदेश दर्शन योजना के हिस्से के रूप में, सरकार ने भारत की विविध सांस्कृतिक विरासत को दर्शाने वाले विषयगत सर्किट विकसित करने के उद्देश्य से 76 परियोजनाएं शुरू की हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सिर्फ आध्यात्मिक और वैज्ञानिक नेता ही नहीं हैं, वह महिला अधिकारों के कट्टर समर्थक भी हैं, जिसका बड़ा उदाहरण तीन तलाक जैसी सामाजिक बुराई के खिलाफ उनका रुख है। लिंग समानता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता मोदी के इस कथन से ही साबित होती है- ‘भारत मजबूत है, क्योंकि इसकी बेटियां मजबूत हैं।’ हाल ही में उन्होंने विशेष संसदीय सत्र में नारी वन्दन विधेयक पारित कर राजनीति में महिलाओं की सम्मानजनक सहभागिता को सुनिश्चित किया है। भारत को जल्द ‘अखंड भारत’ बनाने के मिशन में उनके अंदर सेल्फ-मेड लीडर की झलक दिखती है। जी-20 शिखर सम्मेलन की कामयाबी भी बता रही है कि भारत की संस्कृति, विविधता और सभ्यता वैश्विक क्षेत्र में फिर से नया जीवन ले रही है। इस शिखर सम्मेलन में आए विदेशी मेहमानों को प्रधानमंत्री मोदी ने जो गिफ्ट दिए, वे भी भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का परिचायक हैं। इन उपहारों को चुनने की सोच को भी सराहा जाना चाहिए। वह एक नेता के रूप में समय की कसौटी पर खरे उतरे हैं, जो अपने देश को न केवल वैश्विक मंच पर ले गया है बल्कि उस राह पर भी ले गया है, जो उससे परे थी। भारत के चंद्रयान-3 ने इतिहास रचा। भारत अपने लैंडर को चांद के साउथ पोल पर उतारने वाला दुनिया का पहला देश बना। इतना ही नहीं, हफ्ते भर बाद भारत ने सूर्य की स्टडी के लिए अपना पहला मिशन आदित्य एल-1 भी लॉन्च कर दिया। उनकी ही अगुआई में भारत दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनकर वैश्विक मंच पर मजबूत शिखर के रूप में उभरा है।

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