झारखंड : जवाहर लाल नेहरू की ‘वनवासी पत्नी’,बुधनी मंझियाइन का 80 वर्ष की आयु में निधन, उनके पर-नाती राहुल गाँधी कभी मिलने भी नहीं गए

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जवाहर लाल नेहरू की वनवासी पत्नी बुधनी मंझियाइन
जवाहरलाल नेहरू की वनवासी जनजाति ‘पत्नी’ बुधनी मंझियाइन (Budhni Mejhan) का शुक्रवार (17 नवंबर, 2023) की देर रात झारखंड में पंचेत के नजदीक अपने घर में निधन हो गया। 80 साल की बुधनी की मौत हार्ट अटैक की वजह से हुई। दरअसल, पंडित नेहरू की वजह से उन्हें अपने संथाली समुदाय से ताउम्र बहिष्कार का सामना करना पड़ा था।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, रविवार (19 नवंबर, 2023) को उनका अंतिम संस्कार किया गया। वो अपने पीछे अपनी 60 साल की बेटी रत्ना और 35 साल के पोते बापी को छोड़ गई हैं। उनकी मौत के बाद पंचेत पंचायत के मुखिया भैरव मंडल ने जवाहरलाल नेहरू की ‘वनवासी पत्नी’ के सम्मान में एक स्मारक बनाने के लिए दामोदर घाटी निगम (डीवीसी) को पत्र लिखा है।

उन्होंने रत्ना के लिए घर और पेंशन की भी माँग की है। हालाँकि इसे लेकर डीवीसी के डिप्टी चीफ इंजीनियर सुमेश कुमार ने कहा, “ये फैसला शीर्ष अधिकारियों से सलाह के बाद ही लिए जा सकते हैं।”

पंडित नेहरू बने बुधनी के बहिष्कार की वजह
6 दिसंबर, 1959 के दिन बुधनी की जिंदगी ने नया मोड़ ले लिया था। उस दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू वहाँ दामोदर नदी पर बनाए गए पंचेत बाँध के उद्घाटन के लिए पहुँचे थे। दामोदर घाटी निगम (DAC) ने पंडित नेहरू के स्वागत के लिए 15 साल की लड़की बुधनी मंझियान को चुना था।
इस दौरान बुधनी बेहद खुश थी, लेकिन उन्हें नहीं पता था कि इस पल से उनकी जिंदगी एक बेहद परेशानी भरा मोड़ लेने जा रही है। दरअसल, ये पहला बाँध था जिसका उद्घाटन किसी वनवासी महिला से करवाया जा रहा था। यहीं वजह रही की कि जवाहरलाल नेहरू ने बुधनी को सराहना के तौर पर एक माला दे दी।
बस उत्साह और खुशी के मौके पर दी गई यही माला उनको ताउम्र की परेशानी दे गई। पंडित नेहरू चाहते थे कि बाँध का उद्घाटन किसी ऐसे शख्स से कराया जाए जिसने इसे बनाने में योगदान दिया हो। यही वजह रही कि इसके लिए लोकल मजदूर बुधनी को बुलाया गया था।
पंचेत बाँध के उद्घाटन की उसी रात इस घटना की चर्चा के लिए संथाली समाज की पंचायत बुलाई गई। बुधनी को संथाली पंयाचत में जब यह बताया गया कि जनजातीय परंपराओं के हिसाब से अब उनकी शादी जवाहरलाल नेहरू से हो चुकी है, तो वह खौफ में आ गई, क्योंकि एक-दूसरे को माला पहनाई गई थी।
वनवासी परंपराओं के हिसाब से पंचायत ने पंडित नेहरू के बुधनी के पति होने का ऐलान कर दिया। वनवासी रिवाज के मुताबिक, पंडित नेहरू वनवासी नहीं थे इसलिए संथाली समुदाय ने उनका बहिष्कार किया। इस वजह से खुद ब खुद बुधनी का भी समुदाय ने बहिष्कार कर दिया।
हालाँकि, उस वक्त बुधनी ने दामोदर घाटी निगम में काम करना जारी रखा, लेकिन वो वहाँ अधिक दिनों तक नहीं रह सकीं। इस घटना के दो साल बाद ही 1962 में बुधनी को नौकरी से निकाल दिया गया मजबूरन बुधनी बाद में झारखंड चली गईं और वहाँ 7 साल तक जीने के लिए जद्दोजहद करती रहीं।
इसके बाद में उनकी मुलाक़ात सुधीर दत्ता नाम के एक शख्स से हुई। वो उनके करीब आ गईं। दोनों शादी करना चाहते थे, लेकिन नहीं कर सके। उन्हें डर था कि समाज में उन्हें इसके दुष्परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। हालाँकि, इसके बावजूद वो साथ रहे और दोनों के तीन बच्चे भी हुए।
राजीव गाँधी गए थे मिलने
1985 में जब राजीव गाँधी को बुधनी के बारे में पता चला तो इसके बाद उन्होंने उनका पता लगा लिया और बुधनी उनसे मिलने भी गईं। इसका फायदा ये हुआ कि उन्हें दामोदर घाटी निगम में उनकी नौकरी वापस मिल गई।
वहीं बुधनी से जब 2016 में उनकी उम्मीदों के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, “मैं राहुल गाँधी से अपील करती हूँ कि वह हमें एक घर और मेरी बेटी के लिए नौकरी दिलाएँ, ताकि हम अपना बाकी जीवन शांति से बिता सकें।”
बुधनी के साथ बाँध का उद्घाटन करने वाले रावोण मांझी ने एक बार बीबीसी से कहा था, ”जवाहरलाल नेहरू ने हमें मुफ्त बिजली और घर देने का वादा किया था, लेकिन कुछ नहीं हुआ।” जब उनसे बुधनी के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि वह उस घटना को याद नहीं करना चाहते।

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