रामायण और महाभारत का शुद्ध स्वरूप
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१. रामायण के महावीर हनुमान पूँछ वाले बन्दर नहीं थे, और न ही किसी के अवतार थे । वे ब्रह्मचारी , वेदों और व्याकरण के महान ज्ञानी, महापुरुष, थे ।
२. जटायु गिद्ध पक्षी नहीं था । वो दशरथ के मित्र व वैरागी वानप्रस्थी थे । जामवंत भी भालू नहीं था ।
३. रावण अत्याचारी, लोभी , अहंकारी , कामी राजा था ।
४. “उत्तर काण्ड” वाल्मीकि रामायण का भाग नहीं है, बाद में विधर्मियों ने जोड़ा है ।
५. इसी उत्तरकाण्ड में ही वर्णित सीता वनवास और शम्बुक वध का आक्षेप लगाया जाता है, जो निराधार है । इसी में प्राकृतिक नियम के विरुद्ध चमत्कार भरे पड़े हैं । (यह पौराणिक लीला है)
६. वाल्मीकि रामायण में सीता माता उत्तम चरित्रों वाली स्त्री है और श्री राम ने कभी भी उनकी अग्नि परीक्षा नहीं ली । भला अग्नि में बैठकर कोई बचा है क्या ? (यह भी पौराणिक चमत्कारी लीला है।)
७. श्रीराम आप्त पुरुष थे । वेद-वेदांग, धनुर्वेद इत्यादि विद्याओं के ज्ञानी, बलवान, और शाकाहारी पुरुष थे । वे अवतार नहीं थे ।
८. श्रीराम का व्यक्तित्व इतना महान था कि श्री कृष्ण जैसा महापुरुष भी उन्हें अपना आदर्श मानते थे । तभी तो उन्होंने स्वविभुतियों को गिनाते समय स्वयं को शस्त्र धारियों में राम कहा था ।
९. श्री कृष्ण का जीवन चरित्र महाभारत से सभी जानते हैं, दूसरे ग्रथों से नहीं । श्री कृष्ण वेदों के प्रकाण्ड विद्वान और आप्त पुरुष थे ।
१०. महाभारत में राधा का कही भी नाम नहीं है ।
११. “श्री कृष्ण” रासलीला वाले भोगीराज नहीं, बल्कि योगिराज थे । इन्द्रियों को अपने वश में किया हुआ श्रीकृष्ण जैसा व्यक्ति ऐसे गोपियों के संग निकृष्ट काम नहीं कर सकता । (वेदादि शास्त्रों से अनभिज्ञ एक मंद बुद्धि पौराणिक ही ऐसी लीला कृष्ण से करवा सकता है।)
१२. श्री कृष्ण की मात्र एक ही पत्नी थी, जिसका नाम रुक्मणि था । उनका एक ही पुत्र था, जिसका नाम प्रद्युम्न था जो रूप, रंग, ज्ञान में बिलकुल अपने पिता के समान था ।
१३. द्रौपदी का केवल एक ही पति था – युधिष्ठिर । उनका नाम पांचाली इसलिए था क्योकि वो पांचाल नरेश की पुत्री थी, न कि पाँच भाइयों की पत्नी । इसके अन्य प्रमाण भी महाभारत में हैं।