बिखरे मोती

आत्म संतोष कैसे मिले :-
ब्रह्मनिष्ठ होकर मिले,
आत्मा को संतोष ।
सिन्धु समाया बिन्धु में,
सुख शान्ति का कोय॥2464॥

अहंकारी को स्वर्ग सम्भव नहीं :-

सम्भव है सुई नोक से,
निकले ॐ की डार ।
स्वर्ग द्वार पहुँचे नहीं,
जिसको हो अहंकार॥2465॥

कस्तूरी की सुगन्ध ज्यों,
स्वतः ही प्रकट होय ।
त्यों ही प्रतिभा-पूज की,
स्वतः ही चर्चा होय॥2466॥

तत्त्वार्थ – गुणवान व्यक्ति अपने गुणो
की पुशंसा स्वयं नही करते अपितु उनके यश की सुगन्ध स्वतः फैलती है। जिस प्रकार कस्तूरी की सुगन्ध वातावरण को स्वतः ही सुगन्धित कर देती है है

प्रतिभा का कोई सानी नहीं होता :-

               'विशेष शेर"

ऐ शमा ! तेरी रोशनी ही,
तेरी खूबसूरती है।
तू ख़ुदा का , वो नायाब तोफा है,
जो कमशिन है, दिलकश है,
और ‘बेनजीर’ है।
तेरी रोशनी पर,
एक नही अनेक,
परवाने मंडराते है।
उनकी दीवानगी,
इस कदर होती है,
कि वो अज़ल को ,
भी भूल जाते हैं।

काश! मनुष्य का जीवन इतना उत्कृष्ट हो;

              'विशेष शेर'

तेरी इबादत में दीवानगी,
परवाने जैसी हो।
तेरी मस्ती,
अलमस्त रहबर जैसी हो।
तुझे अज़ल भी आए,
तो फरिश्ते जैसी हो।
तेरे जाने के बाद,
तेरी खुशबू कस्तूरी जैसी हो।
खुशबू अर्थात् यश

जिसे श्रेष्ठ बनना है तो:-

शुभ सोचो शुभ देखना,
शुभ ही करो व्यवहार ।
निर्मल हृदय मनुज का,
सबसे बड़ा श्रृंगार॥2469॥

जीव आत्मा को गर्भ में आने से पहले ही आयु योनि भोग मिल जाते हैं?

चित्रगीत की भांति ही,
दृश्यमान संसार ।
आयु – योनि भोग तो,
मिले कर्म अनुसार॥2470॥

क्रमशः

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