भाजपा नेता आडवाणी की यात्रा समाप्त?
भाजपा के वरिष्ठ नेता आडवाणी की 38 दिवसीय रथ यात्रा पिछले दिनों दिल्ली के रामलीला मैदान में समाप्त हो गयी । इस यात्रा के समापन पर भाजपा का मनोबल कुछ बढ़ा हुआ दिखायी दिया । उसे लगा हैं कि लोगो ने उसके पापों को रामद्रोह को, खूंखार आतंकियों को छोड़ने के राष्ट्रद्रोह को तथा ‘जिन्ना – जिन्दाबाद’ के संस्कृति द्रोह को अब भुला दिया है । उसे ये भी ‘फीलगुड़’ हुआ है कि अब लोग उसके अंतर्विरोधों और अंतर्कलह से शायद मुंह फेर गये हैं और आडवाणी पुनः एक नेता बनकर उभरे हैं । भाजपा के साथ यह त्रासदी है कि ये पार्टी कभी भी स्वतन्त्र और स्वच्छ अंतरमंथन नहीं कर पाती । यद्यपि अंतरमंथन का नाटक अवश्य करती है । इसलिए किसी भी किसी प्रकार के ‘ फीलगुड’ के वाइरस से हमेशा ग्रस्त और त्रस्त रहती है । इसमें एक ‘टायर्ड’ बूढ़े व्यक्ति को अभी भी ‘फीलगुड़’ है कि वह अभी भी प्रधानमंत्री बन सकता है । इसलिए अभी भी ‘रिटायर्ड’ होने की आवश्यकता नहीं हैं । वह यमदूतो को भी ‘फीलगुड़’ की रिश्वत दे रहे हैं और उनसे कहते हैं कि मुझे पी॰ एम॰ रहते यदि कभी लेकर गये तो स्वर्ग में तुम्हारी जय जय कार हो जाएगी । इसलिए जनाब को अपनी रथयात्रा से नई खुराक मिली है । दिल्ली के रामलीला मैदान में ऐलान किया है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ उनकी जंग तब तक जारी रहगी जब तक देश का जन जन निजात नहीं पा जाता । भाजपा की रथ यात्रा ने राजनीति से पूरी तरह उदासीन हुए जनमानस को हल्का सा झंझोरा हैं । लेकिन इससे यह लहर पैदा हो जाएगी यह अभी नहीं माना जा सकता। सौ में से दस पाँच प्रतिशत मत पाकर बड़ी पार्टी का बड़ा नेता बन जाने की बीमारी भारत के हर राजनीतिज्ञ में रही है। उसने सदा यही हिसाब लगाया है कि मुझे देश में दस प्रतिशत लोग चाहते हैं, पर कभी भी यह नहीं सोचा कि देश के नब्बे प्रतिशत लोग उसे क्यों नहीं चाहते ? इसलिए देश के इतने भारी बहुमत को सदा ही उपेक्षित करके निर्णय लेने और नीतियाँ बनाने की ‘लोकतांत्रिक व्यवस्था’ को भारत में विकसित करने की मूर्खता की गयी है । अल्पमत के लोग बहुमत पर शासन करते हैं और स्वयं के जन जन कर प्रिय होने के झूठे नारे लगाते हैं । यह प्रव्रत्ति एक सच बनकर भारतीय समाज में बैठ गयी है। एक ‘बूढ़े मुनीम’ के रूप में कार्य कर रहे मन मोहन से देश निजात पाना चाहता हैं तो भाजपा एक ‘जिद्दी बूढ़े’ को उसका विकल्प बाता रही हैं । इस बूढ़े की जिद्द हैं कि भाजपा का शासन आये और मुझे एक बार के लिए देश का पी॰ एम बना दो जनता के सामने ‘बूढ़ा मुनीम’ और ‘जिद्दी बूढ़ा’ दोनों ही एक बुराई हैं । पहली बुराई से वह निजात पाना चाहती है पर दूसरी बुराई को भी अपने साथ एक धोखा मानती है । उसे भाजपा की ‘फीलगुड़’ की बीमारी पर तरस आता है । पूरी भाजपा ही बीमार है । वह रोग और रोगी को जानती है पर पहचानने से मना कर रही है ।अब आवश्यकता भाजपा के लिए मैदान की और सड़क की लड़ाई लड़ने की है । भाजपा को अपनी गलतियों का प्रायश्चित करना चाहिए और उनसे सीख लेनी चाहिए । अपनी रथ यात्रा के दौरान आडवाणी ने भाजपा की किसी गलती का जिक्र नहीं किया है । वह इस पर चुप रहे हैं, और यह मानकर चले है की जनता की याददाश्त बड़ी कमजोर होती है । भाजपा को याद होना चाहिए की उसने गांधी और गांधी की छद्म धर्म निरपेक्षता को देश के लिए घातक बताते हुए इसे अपने मूल संस्कारो में स्थान दिया था और जिन्ना को गांधी की गलत नीतियों की नाजायज संतान कहा था, तो वही जिन्ना और जिन्नावादी लोग पंथ निरपेक्ष नहीं हो सकते । ‘राष्ट्रवाद’ के बिन्दु पर भाजपा को कोई समझौता नहीं करना चाहिए और अपने ‘जिद्दी बूढ़े‘ को जिद त्यागकर आराम करने के लिए कह देना चाहिए। रामलीला मैदान में ही भगवान राम में ‘रम’ जाने की घोषणा आडवाणी को इस यात्रा के समापन पर कर देनी चाहिए थी, क्योकि अब वास्तव में उनकी यात्रा समाप्त हो गयी है। हाँ, वह भाजपा को अपनी सेवाएँ अवश्य दे सकते हैं।
लेखक उगता भारत समाचार पत्र के चेयरमैन हैं।