मुगलों और अंग्रेजों को पीछे छोड़ते हुए कांग्रेस अपने हिंदू विरोधी शासन में हिंदुओं के खिलाफ लाई थी 6 काले कानून

anti-hindu-congress-2
                                                                                                                                    साभार 

आजादी के बाद कांग्रेस ने हिंदुओं को हीनभावना से ग्रसित करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। उसने हिंदुओं के मन में एक सोच भरने की साजिश रची कि अगर कोई मुस्लिम किसी हिंदू को थप्पड़ मारता है तो हिंदू को उसे सहज स्वीकार कर लेना चाहिए क्योंकि वो अल्पसंख्यक हैं। लेकिन अगर कोई हिंदू बदले में मुस्लिम को थप्पड़ मारता है तो यह बहुत बड़ा अपराध है। 80 के दशक तक हिंदुओं के मन में यही भरा जा रहा था लेकिन उसके बाद आरएसएस और बीजेपी राष्ट्रीय फलक पर आए और उन्होंने हिंदुओं के सामने कांग्रेस के गंदे खेल का पर्दाफाश किया और हिंदुओं को पलटवार करना सिखाया। हिंदू स्वभाव से क्षमा करने वाले हैं लेकिन कांग्रेस साजिश के तहत हिंदुओं को क्षमाप्रार्थी बनाना चाहती है, भाजपा उन्हें क्षमा नहीं मांगने वाला, निर्भीक और निडर बनाना चाहती है। हिंदुओं को बांटने की यह लड़ाई अभी भी जारी है। कांग्रेस ओबीसी मुद्दा उठाकर हिंदुओं को बांटना चाहती है जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा सनातन संस्कृति की रक्षा कर हिंदुओं को एकजुट करना चाहती है।
हिंदू कोड बिल 1956

हिंदू कोड बिल को लेकर राजेंद्र प्रसाद ने किया था नेहरू का विरोध
आजादी के बाद प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की सरकार ने पहली लोकसभा में 1955-56 में हिंदू कोड बिल्स पास किए। नेहरू कैबिनेट ने बिल को चार भागों में बांटकर पारित किया। वे बिल थे – हिंदू मैरिज एक्ट 1955, हिंदू सक्सेशन एक्ट 1956, हिंदू अडॉप्शन एंड मेंटेनेंस एक्ट 1956 और हिंदू माइनोरिटी एंड गार्डियनशिप एक्ट 1956। इस बिल को लेकर डॉ. राजेंद्र प्रसाद और पंडित जवाहर लाल नेहरू के बीच राजनीतिक मतभेद उत्पन्न हो गया था। इसकी एक बड़ी वजह दोनों का धर्म को लेकर रवैया था। अक्टूबर 1947 में संविधान सभा में अंबेडकर ने इसका मसौदा पेश किया। नेहरू ने उसका समर्थन किया। इसके तहत सभी हिंदुओं के लिए एक नियम संहिता बनाई जानी थी। इसी के तहत विवाह, विरासत जैसे विवादों पर फैसला होना था। इसके तहत हिंदुओं के लिए एक विवाह की व्यवस्था की जानी थी, और भी कई नियम थे। डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने बतौर संविधान सभा का अध्यक्ष इसमें दखल दिया। उनका कहना था कि इस तरह के नियमों पर पूरे देश में जनमत तैयार किया जाना चाहिए। उसके बाद ही कानून बनाया जाना चाहिए। उनका तर्क था कि परंपराएं कई रूप में प्रचलित हैं और इससे संबंधित सभी वर्गों को साथ में लिए बिना नियम सफल नहीं होगा।

सरदार पटेल, श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने किया था पुरजोर विरोध
गृह मंत्री सरदार पटेल, श्यामा प्रसाद मुखर्जी जो हिंदू महासभा से संबंधित थे, कांग्रेसी नेता पंडित मदन मोहन मालवीय ने हिंदू कोड बिल का पुरज़ोर तरीके से विरोध किया था। कांग्रेस अध्यक्ष पट्टाभि सीतारमैया ने बिल का बहिष्कार यह कहते हुए किया कि आनेवाले चुनावों में इस बिल का नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने इस बिल का बहिष्कार यह कहते हुए किया था कि यह बिल हिंदू संस्कृति को टुकड़ों में बांट देगा। यहां तक कि जो महिलाएं हिंदू महासभा से जुड़ी हुई थीं उन तक ने इस बिल का बहिष्कार किया था। ऑल इंडिया हिंदू वीमेन कांफ्रेंस की अध्यक्ष जानकी बाई जोशी ने राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को पत्र लिखते हुए कहा था कि प्रस्तावित विधेयक संस्कार विवाह को संविदात्मक बनाकर हिंदुओं की परिवार व्यवस्था को ही नष्ट कर रहा है। वहीं, खुद राजेंद्र प्रसाद का ये मानना था कि हिंदू कोड बिल हिंदुओं के व्यक्तिगत कानूनों में दखल दे रहा है जिससे चुनिंदा ‘प्रगतिशील’ लोगों को ही फायदा होगा।
हिंदू दर्शन, कला और संस्कृति को सीखने का केंद्र थे मंदिर
मंदिर हमेशा से ही हिंदू सभ्यता और संस्कृति के केंद्र रहे थे। हमारी सभ्यता इन्हीं मंदिरों की वजह से फलती-फूलती रही। मंदिर केवल पूजा का स्थान नहीं थे। बल्कि, हिंदू दर्शन, कला और संस्कृति को सीखने का केंद्र थे। सभी राजाओं ने अपने समय में मंदिरों का निर्माण किया। और, ये मंदिर ही मुगल और अंग्रेजों के समय विरोध का भी केंद्र बने। मुगलों ने मंदिरों को तोड़ने की कोशिशें की, लेकिन उस पर नियंत्रण नहीं कर सके। समय-समय पर ईस्ट इंडिया कंपनी और अंग्रेजों ने भी ऐसा ही करना चाहा। लेकिन, वो नाकाम रहे। 1863 में अंग्रेजों ने एक एक्ट लाकर हिंदू मंदिरों को स्वतंत्र कर दिया। जिसके चलते मंदिर स्वतंत्रता सेनानियों की बैठकों की जगह बन गए।

भारत के अधिकांश मंदिरों पर सरकारों का नियंत्रण
भारत के अधिकांश मंदिरों पर सरकारों का नियंत्रण है। लेकिन, इसी देश में वक्फ एक्ट के तहत वक्फ बोर्ड को इतनी असीमित ताकतें दी गई हैं कि वो तमिलनाडु के तिरुचेंथुरई में स्थित एक 1500 साल पुराने मंदिर समेत पूरे गांव पर ही दावा ठोक सकता है। इस मामले के सामने आने के बाद से ही वक्फ एक्ट लगातार चर्चा में बना हुआ है। दरअसल, वक्फ बोर्ड एक अलग निकाय है, जिसकी संपत्तियों पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है। इसके बाद आंध्र प्रदेश, राजस्थान और कई अन्य राज्यों ने भी ऐसे ही एक्ट लाकर राज्य के मंदिरों और उसकी वित्तीय चीजों पर अधिकार कर लिया। आज 15 राज्यों ने भारत के 4 लाख मंदिरों पर अपना नियंत्रण कर लिया है। भारत में करीब 9 लाख मंदिर हैं।

पूजा स्थल कानून 1991

राम मंदिर आंदोलन की तरह अन्य आंदोलन न हो इसलिए लाया गया पूजा स्थल कानून
1991 में लागू किया गया यह प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट कहता है कि 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता। यदि कोई इस एक्ट का उल्लंघन करने का प्रयास करता है तो उसे जुर्माना और तीन साल तक की जेल भी हो सकती है। यह कानून तत्कालीन कांग्रेस प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव सरकार 1991 में लेकर आई थी। यह कानून तब लाया गया जब राम मंदिर आंदोलन अपने चरम सीमा पर भी पहुंचा था। इस आंदोलन का प्रभाव देश के अन्य मंदिरों और मस्जिदों पर भी पड़ा। उस वक्त अयोध्या के अलावा भी कई विवाद सामने आने लगे। बस फिर क्या था इस पर विराम लगाने के लिए ही उस वक्त की कांग्रेस की नरसिम्हा राव सरकार ये कानून लेकर आई थी।
प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट धारा- 2
यह धारा कहती है कि 15 अगस्त 1947 में मौजूद किसी धार्मिक स्थल में बदलाव के विषय में यदि कोई याचिका कोर्ट में पेंडिंग है तो उसे बंद कर दिया जाएगा।

प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट की धारा- 3
इस धारा के अनुसार किसी भी धार्मिक स्थल को पूरी तरह या आंशिक रूप से किसी दूसरे धर्म में बदलने की अनुमति नहीं है। इसके साथ ही यह धारा यह सुनिश्चित करती है कि एक धर्म के पूजा स्थल को दूसरे धर्म के रूप में ना बदला जाए या फिर एक ही धर्म के अलग खंड में भी ना बदला जाए।

प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट की धारा- 4 (1)
इस कानून की धारा 4(1) कहती है कि 15 अगस्त 1947 को एक पूजा स्थल का चरित्र जैसा था उसे वैसा ही बरकरार रखा जाएगा।

प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट की धारा- 4 (2)
धारा- 4 (2) के अनुसार यह उन मुकदमों और कानूनी कार्यवाहियों को रोकने की बात करता है जो प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट के लागू होने की तारीख पर पेंडिंग थे।

प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट की धारा- 5
धारा- 5 में प्रावधान है कि यह एक्ट रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले और इससे संबंधित किसी भी मुकदमे, अपील या कार्यवाही पर लागू नहीं करेगा।

आर्टिकल 25- धर्म परिवर्तन को मान्यता
वर्ष 1950 में संविधान में आर्टिकल 25 शामिल किया गया। इसमें धर्म परिवर्तन को मान्यता दी गई। इससे सबसे ज्यादा नुकसान हिंदुओं को हुआ क्योंकि हिंदु धर्म के लोगों का ही सबसे अधिक धर्म परिवर्तन कराया गया। भारत के संविधान में धर्मांतरण को लेकर कोई स्पष्ट अनुच्छेद नहीं है। अनुच्छेद 25 से लेकर 28 के बीच धार्मिक स्वतंत्रता का जिक्र किया गया है। इसमें बताया गया है कि अपनी स्वेच्छा से भारत के हर व्यक्ति को किसी भी धर्म को मानने, पालन करने और प्रचार-प्रसार करने की आजादी है।

आर्टिकल 28 – हिंदुओं से धार्मिक शिक्षा का हक छीना
जवाहरलाल नेहरू ने अंग्रेजों की ही तरह आजादी के बाद भी दबाना जारी रखा। आर्टिकल 28 के जरिये हिंदुओं की धार्मिक शिक्षा का अधिकार ही छीन लिया गया। एक तरफ हिंदूओं से धार्मिक शिक्षा का अधिकार छीना गया वहीं दूसरी तरफ आर्टिकल 30 के तहत मुसलमान और अल्पसंख्यक धार्मिक शिक्षा ले सकते हैं।

वक्फ बोर्ड कानून-1995
वक्फ बोर्ड कानून से बढ़ा देशभर में लैंड जिहाद
1954 में वक्फ की संपत्ति और उसके रखरखाव के लिए वक्फ एक्ट-1954 बनाया गया था। कोई भी ऐसी चल या अचल संपत्ति वक्फ की हो सकती है, जिसे इस्लाम को मानने वाला कोई भी व्यक्ति धार्मिक कार्यों के लिए दान कर दे। देशभर में वक्फ की संपत्तियों को संभालने के लिए एक केंद्रीय और 32 स्टेट वक्फ बोर्ड हैं। 1995 में वक्फ कानून में संशोधन करते हुए वक्फ बोर्ड को असीमित शक्तियां दे दी गईं। आज इसी शक्ति की वजह वक्फ और मुसलमान समुदाय देशभर में लैंड जिहाद चला रहा है। कानून कहता है कि यदि वक्फ बोर्ड किसी संपत्ति पर अपना दावा कर दे, तो उसे उसकी संपत्ति माना जाएगा। वक्फ संपत्तियों के रखरखाव के लिए जिस तरह की कानूनी व्यवस्था की गई, वैसी व्यवस्था हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख, ईसाई या अन्य किसी पंथ के अनुयायियों के लिए नहीं है। यह पंथनिरपेक्षता, एकता एवं अखंडता की भावना के विपरीत है।

वक्फ ट्रिब्यूनल न्याय की व्यवस्था के विरुद्ध
संविधान ने तीन तरह के न्यायालयों की व्यवस्था की है। अनुच्छेद 124-146 के तहत संघीय न्यायपालिका, अनुच्छेद 214-231 के तहत हाई कोर्ट और अनुच्छेद 233-237 के तहत अधीनस्थ न्यायालय। संविधान निर्माताओं की मंशा थी कि सभी तरह के नागरिक विवाद संविधान के तहत बनी न्यायपालिकाओं में ही सुलझाए जाएं। ऐसे में वक्फ ट्रिब्यूनल को लेकर इस अधिनियम में की गई व्यवस्था संविधान द्वारा प्रदत्त न्याय व्यवस्था के विरुद्ध है।

वक्फ बोर्ड अनुच्छेद 27 का स्पष्ट उल्लंघन
वक्फ बोर्ड में मुस्लिम विधायक, मुस्लिम सांसद, मुस्लिम आइएएस अधिकारी, मुस्लिम टाउन प्लानर, मुस्लिम अधिवक्ता, मुस्लिम बुद्धिजीवी और मुतावल्ली होते हैं। इन सभी को सरकारी कोष से भुगतान किया जाता है, जबकि केंद्र या राज्य सरकारें किसी मस्जिद, मजार या दरगाह की आय से एक भी रुपया नहीं लेती हैं। दूसरी ओर, केंद्र व राज्य सरकारें देश के चार लाख मंदिरों से करीब एक लाख करोड़ रुपये लेती हैं, लेकिन उनके लिए ऐसा कोई अधिनियम नहीं है। यह अनुच्छेद 27 का स्पष्ट रूप से उल्लंघन है, जिसमें व्यवस्था दी गई है कि किसी व्यक्ति को ऐसा कोई कर चुकाने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है, जिसका प्रयोग किसी विशिष्ट धर्म या धार्मिक संप्रदाय की अभिवृद्धि के लिए हो।

वक्फ बोर्ड को मिले असीमित अधिकार समानत के सिद्धांत का उल्लंघन
वक्फ अधिनियम, 1955 की धाराओं 4, 5, 6, 7, 8, 9 और 14 में वक्फ संपत्तियों को विशेष दर्जा दिया गया है, जो किसी ट्रस्ट आदि से ऊपर है। हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख, ईसाई व अन्य समुदायों के पास सुरक्षा का कोई विकल्प नहीं है, जिससे वे अपनी संपत्तियों को वक्फ बोर्ड की संपत्ति में शामिल होने से बचा सकें, जो एक बार फिर समानत को लेकर संविधान के अनुच्छेद 14, 15 का उल्लंघन है।

वक्फ के सामने हिंदुओं के संपत्ति के अधिकार भी सुरक्षित नहीं
अधिनियम की धारा 40 में वक्फ बोर्ड को अधिकार दिया गया है कि वह किसी भी संपत्ति के बारे में यह जांच कर सकता है कि वह वक्फ की संपत्ति है या नहीं। यदि बोर्ड को लगता है कि किसी ट्रस्ट, मुत्त, अखरा या सोसायटी की कोई संपत्ति वक्फ संपत्ति है, तो वह संबंधित ट्रस्ट या सोसायटी को नोटिस जारी कर पूछ सकता है कि क्यों न उस संपत्ति को वक्फ संपत्ति में शामिल कर लिया जाए। यानी संपत्ति का भाग्य वक्फ बोर्ड या उसके अधीनस्थों पर निर्भर करता है। यह अनुच्छेद 14, 15, 26, 27, 300-ए का उल्लंघन है।

वक्फ संपत्ति को लिमिटेशन एक्ट से भी छूट
वक्फ के रूप में दर्ज संपत्ति को रिकवर करने के लिए लिमिटेशन एक्ट के तहत भी कार्रवाई नहीं की जा सकती है। धारा 107 में वक्फ की संपत्तियों को इससे छूट दी गई है। इस तरह की छूट हिंदू या अन्य किसी भी संप्रदाय से जुड़े ट्रस्ट की संपत्तियों के मामले में नहीं है।

दीवानी अदालतों की सीमा से भी बाहर
धारा 83 के तहत ट्रिब्यूनल का गठन करते हुए विवादों की सुनवाई के मामले में दीवानी अदालतों का अधिकार छीन लिया गया है। संसद के पास ऐसा अधिकार नहीं है जिसके तहत वह ऐसा ट्रिब्यूनल गठित कर दे, जिससे न्याय व्यवस्था को लेकर संविधान के अनुच्छेद 323-ए का उल्लंघन होता हो। वक्फ बोर्ड को कई ऐसे अधिकार दिए गए हैं, जो इसी तरह के अन्य ट्रस्ट या सोसायटी के पास नहीं हैं।

कांग्रेस ने रामसेतु को बताया था काल्पनिक
कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार की ओर से 2008 में सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दाखिल कर रामसेतु को काल्पनिक करार देते हुए कहा, “वहां कोई पुल नहीं है। ये स्ट्रक्चर किसी इंसान ने नहीं बनाया। यह किसी सुपर पावर से बना होगा और फिर खुद ही नष्ट हो गया। इसी वजह से सदियों तक इसके बारे में कोई बात नहीं हुई। न कोई सुबूत है।” कांग्रेस द्वारा दाखिल किए गए इस हलफनामे का खूब विरोध हुआ था, जिसके बाद कांग्रेस ने इसे वापिस लिया और कहा कि वह सभी धर्मों का सम्मान करती है।

सेतुसमुद्रम प्रोजेक्ट के लिए रामसेतु पर थी खुदाई की योजना
कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए-1 सरकार ने 2005 में सेतुसमुद्रम शिपिंग कैनाल प्रोजेक्ट का ऐलान किया था। इसका प्रस्ताव डीएमके ने रखा था, गठबंधन की सरकार में डीएमके के पास जहाजरानी मंत्रालय था। सेतुसमुद्रम शिपिंग कैनाल प्रोजेक्ट के तहत बड़े जहाजों के परिवहन के लिए करीब 83 किलोमीटर लंबा नया रास्ता बनना था, जिसके लिए समुद्र में कम गहराई वाले हिस्से की खुदाई करनी थी। यह खुदाई रामसेतु की जगह पर भी होनी थी।

सातवीं सदी से 16वीं सदी तक मंदिरों की संपदा को लूटा गया

भारत के परम वैभव से आकर्षित होकर सातवीं सदी की शुरुआत से सौलहवीं सदी तक निरंतर हजारों हिन्दू, जैन और बौद्ध मंदिरों का न केवल विध्वंस किया गया बल्कि उसकी संपदा को भी लूट लिया गया। खासतौर पर ऐसे पूजास्थलों पर आक्रमण किया गया जो अपने विशालतम आकार से कहीं ज्यादा देश की गौरवशाली अस्मिता का प्रतीक थे। अपनेप्रत्येक आक्रमण में गजनवी ने सनातन धर्मियों केकितने ही छोटे-बड़े मंदिरों को अपना निशाना बनाया। मंदिरों में जमा धन को लूटा और मंदिरों को तोड़ दिया। वर्ष 725 में सिंध के अरब शासक अल-जुनैद ने महमूद गज़नी से पहले ही इस मंदिर में तबाही मचाई थी। जगन्नाथ मंदिर को 20 बार विदेशी हमलावरों द्वारा लूटे जाने की कहानी हो या सोमनाथ के संघर्ष के इतिहास से हर कोई रूबरू है। विदेशी आततातियों के इतने आक्रमण और लूटे जाने के बाद भी हिन्दुस्तान के मंदिर धार्मिक सहिष्णुता और समन्वय का अद्भुत उदाहरण आज भी बना हुए हैं। लेकिन कांग्रेस की सरकारों ने इस पर हमला जारी रखा।

Comment:

Latest Posts