मंदिर की मूर्तियों से कभी कोई पुजारी आपने मांगते हुए नहीं देखा
करोड़ों व्यक्ति प्रतिदिन मंदिरों में जाते हैं और वहां उनकी दृष्टि में जिसे भी वे भगवान मानते हैं , चाहे वह फोटो हो या मूर्ति हो , उन फोटो या मूर्तियों से मांगते हैं ।
थोड़ा विचार करें, यदि वे फोटो या मूर्तियां आपकी बात सुनती होती, कुछ जवाब देती, कुछ हाथ हिलाती , कुछ आशीर्वाद देती, कुछ आपकी मनोकामना पूरी कर देती, तो वह पुजारी भी उन्हीं फोटो या मूर्तियों से ही मांग लेता । आप की जी हुजूरी नहीं करता । ना आपसे दान मांगता ।
परंतु वह जानता है कि यह एक व्यापार है। इसलिए अपना व्यापार चलाने के लिए वह सारी क्रियाएं करता है । भोली जनता बेचारी समझती नहीं कि असली ईश्वर कौन है, कहां है , उससे कैसे मांगें और कैसे मिलता है ।
बस भोली जनता की इस अज्ञानता का वे पुजारी लोग लाभ उठाते हैं ।
यदि आप सही ईश्वर को जानना चाहते हैं , तो वेदों का अध्ययन करें । ऋषियों के ग्रंथ पढ़ें। सत्यार्थ प्रकाश महर्षि दयानंद सरस्वती जी का लिखा है। उसे चार पांच बार अवश्य पढ़ें। आपको ठीक ज्ञान हो जाएगा कि सही ईश्वर कौन सा है , उससे क्या और कैसे मांगना चाहिए?
जब लोग दुकान पर जाते हैं तो वे वस्तु मांगते हैं , घी 100% शुद्ध , तेल 100% शुद्ध, गरम मसाला, हल्दी , नमक हर वस्तु 100% शुद्ध चाहिए । परंतु ईश्वर जैसा भी हो चलेगा। आश्चर्य है लोगों की मानसिकता पर !
यदि आपको सब चीजें शुद्ध चाहिएँ, तो ईश्वर भी तो शुद्ध होना चाहिए , ईश्वर भी तो असली मांगना चाहिए । असली ईश्वर की भी तो खोज करनी चाहिए । असली ईश्वर की खोज करें । नकली ईश्वर से काम न चलाएं। चलेगा भी नहीं। जिन फोटो मूर्तियों से आप मांगते हैं , वह असली ईश्वर नहीं है ।
ये फोटो मूर्तियां जड़ पदार्थ हैं । असली ईश्वर चेतन है , सर्वज्ञ है , सर्वशक्तिमान है, न्यायकारी और आनंद का भंडार है । जिस दिन आप असली ईश्वर को जान लेंगे , आपके जीवन का महान कल्याण हो जाएगा।
*नोट– ( कृपया इसे पढ़कर झगड़ा न करें। आपको यह विचार पसंद नहीं आया, तो कोई बात नहीं। आप इसे स्वीकार न करें। परंतु झगड़ा न करें। जैसे आप दुकान पर कोई वस्तु पसंद न आने पर, उस वस्तु को नहीं खरीदते। परंतु आप दुकानदार के साथ झगड़ा नहीं करते। यदि आप बुद्धिमान हैं, तो कृपया मेरे साथ भी ऐसा ही व्यवहार करें।)- लेकिन यह भी स्मरण रखें कि मुस्लिम और ईसाई आपके भगवानों का इसी कारण मज़ाक़ उड़ाते है लेकिन किसी हिन्दू के पास संतोँय जनक उत्तर नहीं होता।
स्वामी विवेकानंद परिव्राजक