पुरातत्व एवं पत्रकारिता को समर्पित , सदैव गतिमान दिनेश चंद्र वर्मा जो न कभी संघर्ष से डरे, न कलम के साथ समझौता किया
(पवन कुमार वर्मा-विनायक फीचर्स)
इतिहास, पुरातत्व और धार्मिक विषयों पर अपनी अलग और मजबूत पकड़ रखने वाले श्री दिनेश चंद्र वर्मा एक ऐसी शख्सियत थे, जिन्होंने लेखन और पत्रकारिता के क्षेत्र में देश ही नहीं वरन विदेशों में भी नाम रोशन किया। उनके लेख देश की प्रमुख पत्रिकाओं और समाचार पत्रों में प्रमुखता के साथ प्रकाशित हुये। इनके लेखों का अनुवाद चीन, जापान, नेपाल तथा श्रीलंका के पत्र और पत्रिकाओं में भी हुआ। उनके अनेक लेखों में कई लेख देश के गौरवशाली इतिहास, पुरातत्व और धार्मिक स्थलों से जुड़े हुए थे। इससे ऐसा प्रतीत होता रहा कि श्री वर्मा देश के वैभवशाली इतिहास और पुरातत्व से देश के जनमानस को परिचित करना चाहते थे। उनके प्रयास सार्थक हुए, उनकी कलम के जरिए 70-80 के दौर की सबसे प्रसिद्ध और प्रतिष्ठित पत्रिका धर्मयुग,,कादम्बिनी, नवनीत, में देश के इतिहास, पुरातत्व और धार्मिक स्थलों से जुड़े दर्जनों लेख प्रकाशित हुए।
विदिशा जिले के शमशाबाद में 29 जुलाई 1944 को जब श्री दिनेश चंद्र वर्मा ने जन्म लिया था, तब शायद ही किसी ने सोचा होगा कि आगे चलकर वे देश के प्रख्यात पत्रकारों एवं संपादकों में शुमार होंगे। वे शमशाबाद से निकल कर विदिशा आये और यहीं से उन्होंने अकेले चलना शुरू किया और देखते ही देखते वे एक अजातशत्रु के रूप में उभर गए। विदिशा जिले के ही अरबरिया ग्राम में उनकी प्रारंभिक शिक्षा हुई। इसके बाद वे हाई स्कूल की पढ़ाई करने के लिए विदिशा आ गए। यहीं से उनका कारवां ऐसा बना कि समाजसेवी, नेता, अफसरों के साथ ही आम जनता भी उनकी लेखनी की कायल हो गई। चिंगारी से शुरू हुआ सफर देश की जानी-मानी पत्रिका धर्मयुग, सरिता, मुक्ता, नवनीत, कादंबिनी, साप्ताहिक हिन्दुस्तान, भू-भारती, अवकाश, माया, श्रीवर्षा, दिनमान, रविवार, मनोहर कहानियां,खास खबर, शान-ए-सहारा से लेकर देश के कई समाचार पत्रों में छपने के साथ जारी रहा।
चिंगारी से पत्रकारिता की शुरूआत
श्री वर्मा ने पत्रकारिता जगत में महज 16 साल की उम्र में कदम रख दिया था। पूर्व विधायक हीरालाल पिप्पल विदिशा से चिंगारी अखबार का प्रकाशन करते थे, श्री वर्मा ने इस अखबार में काम कर पत्रकारिता की शुरूआत की। साथ में हाई स्कूल की पढ़ाई भी करते रहे।
बाढ़ की खबर से आए थे चर्चा में
विदिशा में वर्ष 1965 में बाढ़ आई। इस वक्त श्री वर्मा भोपाल आ चुके थे और नवभारत में कार्यरत थे। तेज बारिश के चलते भोपाल से पानी छोड़ा गया। नतीजे में अगले दिन विदिशा शहर के अधिकांश हिस्से में पानी भर गया, घरों में पानी भर जाने से रहवासियों का खासा नुकसान हो गया। श्री वर्मा ने नवभारत में इस बाढ़ की रिपोर्टिंग की, जिसमें यह सामने आया कि भोपाल से पानी छोड़े जाने की जानकारी विदिशा के जिला प्रशासन को दी गई थी, लेकिन प्रशासन रात में हरकत में नहीं आया और शहर में पानी ने भारी तबाही मचा दी। श्री वर्मा की यह पड़ताल करती हुई खबर नवभारत के प्रथम पृष्ठ पर लीड स्टोरी के रूप में लगी, खबर छपते ही विदिशा जिला प्रशासन के अफसरों में हडकंप मच गया। संभवत: विदिशा की समस्या पहली बार इतनी बड़ी स्टोरी के रूप में उस दौर के सबसे बड़े अखबार में प्रकाशित हुई थी। भोपाल में रहने के दौरान श्री वर्मा ने दैनिक भास्कर में भी काम किया। इसके बाद श्री वर्मा इंदौर चले गए, जहां पर उन्होंने इंदौर जागरण, इंदौर समाचार आदि समाचार पत्रों में काम किया। यही रहते हुए उन्होंने हाई स्कूल के विद्यार्थियों के लिए इतिहास,नागरिक शास्त्र विषय पर पॉकेट बुक भी कई वर्षों तक लिखी।
30 वर्ष में लिख दी थी इंदिरा गांधी पर किताब
श्री वर्मा जब महज 30 साल के थे,तब उन्होंने इंदौर में रहते हुए देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पर किताब लिख दी थी। ‘एक और अवतार इंदिरा गांधी’ शीर्षक से यह किताब प्रकाशित हुई। इस किताब की भूमिका तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश चंद सेठी ने लिखी थी।
बेबाकी से सरकार की नाकामी करते रहे उजागर
देश की अधिकांश प्रसिद्ध पत्रिकाओं धर्मयुग, सरिता, मुक्ता, नवनीत, कादंबिनी, साप्ताहिक हिन्दुस्तान, भू-भारती, अवकाश, माया, श्रीवर्षा,कंचन प्रभा, रविवार, दिनमान, मनोहर कहानियां, में उनके आलेख प्रकाशित हुए। राजनीतिक और सामाजिक सरोकारों पर प्रकाशित हुए उनके कई लेख प्रदेश ही नहीं बल्कि दिल्ली में बैठे राजनेता भी मुद्दा बनाते रहे। अपनी लेखनी के बल पर उन्होंने कई बार सरकार की नाकामियों और राजनेताओं के भ्रष्टाचार की पोल भी बेबाकी के साथ खोली। दिल्ली प्रेस प्रकाशन की भू-भारती और आज ग्रुप की अवकाश में उनके राजनीतिक आलेखों का इंतजार मध्यप्रदेश के ही नहीं बल्कि देश के भी कई राजनेता और राजनीति में रूचि रखने वाले पाठक करते थे।
विदिशा में रावण की पूजा से देश को परिचित कराया
नवनीत, कादम्बिनी, धर्मयुग,कंचनप्रभा में उनके इतिहास और पुरातत्व पर सैकड़ों आलेख प्रकाशित हुए। विदिशा जिले के रावन दुपारिया गांव में स्थित रावण की प्रतिमा पर श्री वर्मा ने 1976 में धर्मयुग में आलेख लिखा था। ‘जहां राम और रावण की पूजा होती है’। उन्होंने विदिशा के विजय मंदिर में स्थित भगवान गणेश की प्रतिमा पर भी नवनीत में आलेख लिखा।
कई देशों में चर्चित हुआ था अस्थियों की तस्करी का सच
बौद्ध तीर्थ सांची में बौद्ध अस्थियों की तस्करी का उनका आलेख उस वक्त देश ही नहीं बल्कि दुनिया के कई देशों में चर्चित हुआ था। यह आलेख उनका भू-भारती में प्रकाशित हुआ था। श्री वर्मा ने सांची के तोरण द्वारों की महत्ता भी अपने आलेखों के जरिए बताई। महेंद्र और संघमित्रा पर भी उनके कई आलेख प्रकाशित हुए। सतधारा पर भी उनके कई लेख विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए। सांची, सतधारा पर लिखे उनके कुछ आलेखों का जिक्र राज्यसभा तक में हुआ। इतिहास, पुरातत्व विषयों पर उनकी आकाशवाणी से भी कई वार्ताएं प्रकाशित हुई।
श्री वर्मा की धार्मिक विषयों पर भी अद्भुत पकड़ थी
श्री वर्मा की इतिहास और पुरातत्व पर कलम जितनी मजबूत थी, उतनी ही पकड़ उनकी धार्मिक आलेखों पर भी थी। ‘कुंभ पर्वो की परम्परा और प्राचीनता’, भोजपुर के शिव मंदिर पर उनका लिखा आलेख ‘एक और सोमनाथ’ आज भी कई लोगों को याद है। नवनीत में प्रकाशित उज्जैन के मंगलनाथ मंदिर पर आधारित ‘मंगल नाथ से हुई मंगल गृह की उत्पत्ति ’ आलेख भी खासा चर्चित हुआ था। उदयगिरी की गुफाओं, ग्यारसपुर का मालादेवी मंदिर, उदयपुर का नीलकंठेश्वर मंदिर आदि पर भी श्री वर्मा ने खासा लिखा। भारत में नाग पूजा की परम्परा पर भी श्री वर्मा ने लिखा।
और फिर प्रकाशन हुआ वचनबद्ध का
कई वर्षों तक देश भर की प्रसिद्ध पत्रिकाओं में प्रकाशित होने के साथ ही अपना अखबार कटिबंध निकाला। फिर श्री वर्मा भोपाल में शिखर वार्ता में काम करने लगे। इसके बाद श्री वर्मा ने भोपाल से वचनबद्ध का प्रकाशन शुरू किया। उन्होंने 1994 में विनायक फीचर्स शुरू की। जिसके माध्यम से उन्होंने कई छोटे-बड़े पत्रकारों और नवोदित लेखकों के आलेख देश के विभिन्न समाचार पत्रों में भी प्रकाशित करवाए। मध्य प्रदेश जनसंपर्क विभाग की पत्रिका मध्यप्रदेश संदेश में श्री वर्मा लगातार प्रकाशित होते रहे।
नदियों से रहा अथक लगाव
श्री वर्मा ने आम लोगों की आवाज बुलंद करने और उनकी आवाज को सरकार एवं प्रशासन तक पहुंचाने के उद्देश्य से वचनबद्ध का प्रकाशन शुरू किया। इस दौरान उन्होंने बेतवा नदी की साफ-सफाई और प्रदूषण मुक्त रखने के लिए नेताओं के साथ ही समाजसेवियों और आम जनता को प्रेरित करने का प्रयास किया। उन्होंने वचनबद्ध में नदियों के प्रति नेताओं सहित अफसरों और समाजसेवियों, आम नागरिकों को जिम्मेदारी का बोध करवाने एक प्रश्नावली तैयार की थी। जिसमें पूछा गया था कि अपनी नदियों के प्रति आपका पहला कर्तव्य क्या है, नदियों को स्वच्छ और प्रदूषण मुक्त कैसे बनाया जाए। बेतवा के प्रदूषित होने पर कई बार प्रशासन और अफसरों से भी बैर लिया।
अजातशत्रु बनकर उभरे
पत्रकारिता में श्री वर्मा ने सामाजिक सरोकार और सच्चाई का साथ आखिरी सांस तक नहीं छोड़ा। इसके चलते प्रदेश की राजनीति के कई बड़े चर्चित चेहरे उनसे नाराज भी हुए। उनकी बेबाक लेखनी के चलते कई बार अफसरों से भी उनका विवाद हुआ, लेकिन उनसे नाराज नेता, अफसर भी उनकी लेखनी का सम्मान करते रहे।पत्रकार होने के नाते अनेक राजनेताओं से उनके नजदीकी संबंध थे।कांग्रेस के दिग्गज नेता कमलापति त्रिपाठी, अर्जुन सिंह, बलराम जाखड़,विद्या चरण शुक्ल, श्यामाचरण शुक्ल, प्रकाश चंद सेठी और माधवराव सिंधिया ,देश के प्रख्यात शायर एवं फिल्म कहानियों के लेखक जावेद अख्तर, पूर्व सांसद गुफरान ए आजम और पूर्व विधायक हसनात सिद्दीकी से उनके नजदीकी संबंध थे लेकिन बात जब पत्रकारिता की चलती थी तो उनके सबसे ज्यादा नजदीक सत्य ही होता था।उन्होंने कभी भी पत्रकारिता को व्यापार नहीं समझा,सदैव मूल्यों एवं सिद्धांतों की ही पत्रकारिता की ,इस कारण अनेक बार उन्हें आर्थिक परेशानियां भी उठाना पड़ी।
राजनीति के साथ पुरातात्विक विषयों पर भी उनकी गहरी दिलचस्पी थी। सांची के स्तूपों और उदयगिरि की गुफाओं पर तो उन्हें इतनी महारथ हासिल थी कि इनके एक एक हिस्से पर उन्होंने कई लेख लिखे। सांची के मात्र तोरण द्वारों पर ही आकाशवाणी ने उनकी धारावाहिक वार्ताओं का प्रसारण किया ।इतिहास से जुड़े सैकड़ो कथानकों का उनके पास भंडार था।लेखन के लिए सदैव सजग एवं सहज रहने वाले वर्मा को वस्तुतः आत्मसंतुष्टि मिली विनायक फीचर्स के संपादन के साथ। जिसमें उन्होंने ऐसे अनेक लोगों को प्रोत्साहित किया जो लेखन के क्षेत्र में कार्य करना चाहते थे।नवोदित लेखकों को श्री वर्मा ने एक सुव्यवस्थित प्लेटफार्म उपलब्ध करवाया।समाचार पत्रों ने भी दिनेश चंद्र वर्मा की फीचर सेवा विनायक फीचर्स को हाथोंहाथ लिया और इस फीचर सेवा के माध्यम से वे अपने अंतिम समय तक लेखन से जुड़े रहे।26सितंबर2020की प्रातः बेला में इतिहास, पुरातत्व एवं पत्रकारिता को समर्पित एवं सदैव गतिमान इस विलक्षण व्यक्तित्व ने अपनी जीवनयात्रा पूर्ण की।( विनायक फीचर्स)