*जयपुरपति सवाई राम सिंह द्वितीय लेख संख्या 9*
(जगतगुरू महर्षि दयानंद सरस्वती जी की 200 वी जयंती के उपलक्ष्य में 200 लेखों की लेखमाला के क्रम में आर्य जनों के अवलोकनार्थ लेख संख्या 9)
प्रज्ञा चक्षु दंडी स्वामी विरजानन्द जी को ‘सार्वभौम सभा’ के गठन व उसके प्रथम विद्ववत सम्मेलन का आश्वासन देकर जयपुरपति राम सिंह द्वितीय ने गंभीर ध्यान आश्वासन को कार्य रूप में परिणत करने पर नहीं दिया। ऐसा कर वह अपने कर्तव्य से विमुख हो गए। दंडी स्वामी को उनसे बहुत अपेक्षा अनुराग था दंडी स्वामी बहुत आहत हुए।
इस प्रकरण में हम जयपुरपति राम सिंह द्वितीय के व्यक्तित्व विचारधारा की कुछ समालोचना करते हैं जिससे यह भली-भांति स्पष्ट हो जाएगा क्या वह सार्वभौम सभा के गठन की योग्यता उस सभा के उद्देश्यों को क्रियान्वित कराने का साहस रखते थे या नहीं। क्या दंडी जी ने इस कार्य के लिए उन्हें उपयुक्त जानकर कोई भूल की थी?।
राम सिंह द्वितीय का जन्म 1835 ईस्वी में हुआ कुछ इतिहासकार 1833 में बताते हैं। 16 महीने की आयु में ही यह जयपुर रियासत के राजा घोषित कर दिए गए। जब इनका जन्म हुआ तब से लेकर राम सिह द्वितिय की उम्र जब 16 वर्ष हुई जयपुर रियासत का संचालन पूरी स्वतंत्रता से अंग्रेजों ने किया अपितु उनके जन्म से ही नहीं इनके जन्म से 17 वर्ष पूर्व इनके दादा जयपुर नरेश जगत सिंह द्वितीय ने मराठों के विरुद्ध 1803 में ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ संधि की थी। जिसके तहत जयपुर की सुरक्षा व शासन के महत्वपूर्ण निर्णयो की जिम्मेदारी अंग्रेजों को मिल गई। जय सिंह तृतीया की मृत्यु के पश्चात 1818 से लेकर राम सिंह द्वितीय के व्यस्क होने तक जयपुर का शासन मेजर जॉन लुडलो नामक अंग्रेज ने चलाया। पश्चिमी संस्कृति से राम सिंह द्वितीय प्रभावित रहे। अंग्रेजों ने उनके नाम से जयपुर में बहुत से विकास कार्य कराए जिनका उद्देश्य पश्चिमी संस्कृति को ही बढ़ावा देना था। महाराजा बॉयज कॉलेज, महारानी गर्ल्स कॉलेज, महाराजा थियेटर जैसे कार्य इसमें शामिल है।
1857 में जब पहला स्वाधीनता संग्राम हुआ तो उसे राम सिंह द्वितीय की आयु 22 वर्ष थी राम सिंह द्वितीय ने अंग्रेजों की फौज के साथ जयपुर की अपनी निजी सेना भेजी लाव लश्कर के साथ स्वाधीनता संग्राम सेनानियों के प्रतिरोध के लिए। स्वाधीनता संग्राम की चिंगारी जब बुझ गयी ठंडी पड़ी तो अंग्रेजों ने इन्हें सितारे -ए-हिंद की उपाधि से नवाजा। 1857 के स्वाधीनता संग्राम में अंग्रेजों का साथ देने वाली केवल जयपुर ही एकमात्र रियासत नहीं थी राजस्थान की 17 में से अधिकतर रियासतों ने अंग्रेजों का ही साथ दिया यहां तक की पंजाब के सिख शासको ने भी अंग्रेजों का साथ दिया। इस तथ्य को 18 57 के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास लेखक और खुद महान क्रांतिकारी स्वाधीनता संग्राम सेनानी विनायक दामोदर राव सावरकर ने भी प्रमुखता से अपनी पुस्तक प्रथम स्वाधीनता संग्राम के इतिहास से संबंधित है उल्लेखित किया है कि 1857 की प्रथम स्वाधीनता संग्राम की चिंगारी राजपूताने में अंग्रेज व उनके अधीन राजपूत शासको द्वारा दबा दी गई। राजस्थान की देशी रियासतों का स्वाधीनता संग्राम में योगदान मिलता है लेकिन स्वाधीनता संग्राम सेनानियों के पक्ष में नहीं पूरी तरह अंग्रेजों के पक्ष में उनका योगदान रहा। यह आज भी कड़वा दुखद सत्य हैं।
राम सिंह द्वितीय अपने आप को अंग्रेजों के उपकारों से दबा हुआ महसूस करते थे इसका बोध इस तथ्य से पता चलता है जब 1870 से 1876 के दौरान ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया के सुपुत्र प्रिंस एडवर्ड अल्बर्ट सप्तम का भारत आगमन के दौरान जयपुर में आगमन हुआ तो राम सिंह द्वितीय ने पूरे जयपुर को गुलाबी रंग से रंगवा दिया। जयपुर का नाम तब से ही पिंक सिटी पड़ गया जबकि आमेर रियासत से निकली जयपुर नगर रियासत के संस्थापक जयसिंह प्रथम द्वारा इसकी इसे गैरू रंग में रंगवाया गया था। जयपुर नगर की स्थापना 18 नवंबर 1727 में हुई।
राम सिंह द्वितीय यही नहीं रुके उन्होंने प्रिंस अल्बर्ट को समर्पित करते हुए भव्य अल्बर्ट हाउस बनवाया जिसमें आज राजस्थान का सबसे बड़ा म्यूजियम संचालित है। अंग्रेजों की तर्ज पर ईडन गार्डन कोलकाता के मॉडल के अनुसार राज निवास गार्डन को बनवाया गया प्रिंस ऑफ वेल्स को समर्पित करते हुए।
अब हम राम सिंह द्वितीय के शौक की बात करें तो 1850 से ही इन्हें फोटोग्राफी का शौक लग गया था। यह जहां भी किसी भी राजघराने में अतिथि के तौर पर विवाह आदि में जाते या अंग्रेजों के रीती रिवाजों में हिस्सा लेते तो अपना कैमरा साथ लेकर चलते थे फोटो खींचने में इन्होंने बहुत महारत हासिल कर ली थी कलकत्ता फोटोग्राफिक सोसायटी के यह 1856 में प्रथम सदस्य बने।
1980 में उनके निधन के 100 वर्ष पश्चात जयपुर के राजमहल में फोटोग्राफी का इनका एक निजी पूरा कारखाना मिला जिसमें उनके द्वारा खींचे गए 2000 से अधिक फोटो , नेगेटिव फिल्म फोटोग्राफी में काम आने वाले उपकरण मिले तब जाकर उनके इस कौशल का पता चला। राम सिंह द्वितीय के द्वारा खींची गई जयपुर महल रानिवास महल में काम करने वाली पडदायत दासी, पासवानों के फोटो भी उपलब्ध होते हैं। इसके ही कारण की एक दर्जन से अधिक विभिन्न मुद्राओं में फोटो व पोर्ट्रेट मिलते हैं। फोटोग्राफी के जुनून के कारण उनका नाम फोटोग्राफर प्रिंस के तौर पर भी मिलता है।
राम सिंह द्वितीय की विचारधारा रीति-नीती पश्चिमी तौर तरीकों से बेशक प्रभावित रही हो लेकिन वह संस्कृत हिंदी फारसी अंग्रेजी सहित अनेक भाषाओं का जानकारी था तत्कालीन नरेशों की अपेक्षा उसके स्वभाव में अधिक प्रखरता थी ।सम्भवतः यही कारण रहा इनकी प्रगतिशील सोच को देखते हुए दंडी स्वामी जी ने उनके प्रति अनुराग जग गया हो इसका कारण यह भी हो सकता है इसी कछवाहा वंश में जय सिंह प्रथम नाम के बुद्धिमान विद्वान ज्योतिष खगोल के विशेषज्ञ राजा हुए हैं जिन्होंने देश में अनेकों खगोल अध्ययन के लिए वेधशालाओं का निर्माण कराया था जिनमे जंतर मंतर आदि भी शामिल है ।कुछ अर्वाचीन शास्त्र भी उन्होंने रचे थे।
सालों की पराधीनता, सत्य शास्त्रों के लुप्त होने से, ब्रह्मचर्य के लोप होने से बाल विवाह के कारण वेदों का पठन-पाठन ना होने से परस्पर आपस की फुट के कारण स्वदेश अभियान स्वदेश गौरव स्वराज के मूल्य बोध से यह अर्वाचीन आधुनिक काल के राजा कोशो दूर हो गए थे। दंडी स्वामी जी ने भी जब वह राजाओं से अपने मंतव्य को लागू कराने में पूरी तरह विफल हो गए उन्होंने भी यही निष्कर्ष निकाला।
कालांतर में दंडी जी के अपूर्व शिष्य देव दयानंद ने भी चित्तौड़ के किले पर आह! भरकर इसी पुराने राज रोग का निदान किया था जो मां भारती को संताप दे रहा था।
यह घटना इस प्रकार है 26 अक्टूबर 1881 को वीरता त्याग के केंद्र शिरोमणि चित्तौड़गढ़ में ऋषि दयानंद का आगमन हुआ। उससे पूर्व राशिदानंद राजपूताने के अधिकांश हिस्से में भ्रमण कर चुके थे उन्होंने पाया जिन राजाओं के पूर्वज वीरता के आदर्श, मान के पुजारी और स्वाधीनता के पुतले थे वह आज विलास के दास अफीम के पुजारी और अंग्रेजी सरकार के बंधुआ मजदूर दिखाई दे रहे हैं। अपने एक शिष्य के साथ ऋषि दयानंद एक दिन चित्तौड़ का किला देखने गए। जिस ऋषि दयानंद की आंखों में माता-पिता बहन चाचा का वियोग पानी न ला सका चित्तौड़गढ़ की दशा देखकर उनकी आंखों से झर झर आंसू बहने लगे ऋषि ने एक ठंडी सांस लेकर निम्नलिखित आश्यय के साथ यह वाक्य कहा।
“ब्रह्मचर्य का नाश होने से भारतवर्ष का नाश हुआ है और ब्रह्मचर्य का उद्धार करने से ही फिर इस देश का उद्धार हो सकेगा आत्मानंद हम चित्तौड़गढ़ में गुरुकुल बनाना चाहते हैं”
शेष अगले अंक में
आर्य सागर खारी 🖋️
नोट नीचे फोटो फाइल में समस्त फोटो जयपुरपति राम सिंह द्वितीय के हैं। वह उनके द्वारा खींचे गए हैं। कुछ इन्होंने अपने सहायकों से खिंचवाये थे।