काँग्रेस की वर्धा योजना ने किया भारत की संस्कृति का सत्यानाश
नई दिल्ली। 1939 का वर्ष भारतीय शिक्षा नीति के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण वर्ष है। इस वर्ष गांधी जी के विशेष निर्देशों के चलते कांग्रेस ने वर्धा में शिक्षानीति बनवाई थी। जिसे वर्धा स्कीम के नाम से इतिहास में जाना जाता है। हिंदुस्तानी शिक्षा संघ द्वारा प्रकाशित आधारभूत राष्ट्रीय शिक्षा पुस्तक के पृष्ठ 188 से 210 तक इस शिक्षा नीति पर उस समय विशेष प्रकाश डाला गया था।
17 जुलाई 1937 को गांधीजी ने हरिजन में लिखा था कि मुझे अबूबकर और उमर सद्दीकी की कहानियां कह लेने दीजियेगा। कोई राम और कृष्ण की सादगी के बारे में कह सकता है। परंतु ये उस समय के नाम हैं जिसकी तवारीख का हमें पता नहीं है। इसलिए इन्हें मिसाल के तौर पर पेश नहीं किया जा सकता। तवारीख बताती है कि शिवा और प्रताप बहुत सादगी से जीवन बिताते थे, परंतु इस विषय में इखतलाफ हो सकता है। ताकत के मद में आकर उन्होंने क्या नहीं किया? अगर कोई ऐसे व्यक्ति हैं, जिन पर कोई उंगली नहीं उठा सकता, तो वे अबूबकर और उमर हैं। इनको मैं सादगी के तौर पर पेश करता हूं।
गांधी जी का राम-कृष्ण के प्रति, रामायण और गीता के प्रति, महाराणा प्रताप और शिवाजी के प्रति कैसा चिंतन था, यह उनके उपरोक्त उद्वरण से स्पष्ट हो जाता है। उनके इसी चिंतन ने डा. जाकिर हुसैन जैसे लोगों के माध्यम से वर्धा स्कीम तैयार कराई। इन लोगों ने आजादी से पहले ही आजाद भारत की जिस शिक्षा नीति को अपनाने का सूत्रपात किया उसमें भारतीय संस्कृति के नाश के बीज पड़े थे। जिस समय यह शिक्षा योजना लायी गयी उस समय भारत में हिंदू 67.7 फीसदी था। शेष में मुसलमान थे, जिनमें ईसाईयों का अनुपातएक प्रतिशत से भी कम था। उस समय भारत के बंटवारे की बातें चल रही थीं। द्वितीय विश्वयुद्घ छिड़ चुका था। मुसलमानों की ओर से निरंतर विभाजन की मांग बढ़ती ही जा रही थी। तब तुष्टिकरण का खेल खेलते हुए गांधी ने वर्धास्कीम बनवाई, जिसमें हिंदू संस्कृति का सत्यानाश कर दिया गया था।
इस स्कीम में सात दर्जे तक की शिक्षा योजना तैयार की गयी थी। इसको तैयार कराने में काका कालेलकर जैसे लोगों ने ही सहयोग दिया था। कांग्रेस की वर्धा स्कीम का विवरण निम्नवत है –
पहला दर्जा : प्राचीनकाल, मनुष्य का जीवन, प्राचीन मिश्र, प्राचीन चीन और प्राचीन भारत, कहानियों के रूप में (यहां देखें कि भारत की सर्वाधिक प्राचीन संस्कृति से पहले मिश्र व चीन की संस्कृतियों को पढ़ाने की बात कही गयी है)
(क) मिश्र के पिरामिड बनाने की कहानी। उसमें जो दास काम करते थे उनमें से एक दास की कहानी।
(ख) चीन के पहले पांच सम्राटों की कहानी।
(ग) मोहनजोदड़ो के एक लडक़े की कहानी और शुन:शेप की कहानी। अरब देश के वेडूइन, अफ्रीका के पिगमीज और अमेरीका के रेड इंडियन आदि।
दूसरा दर्जा :- वर्तमान काल में आदिम जीवन। अफ्रीका के मूल निवासी, आस्ट्रेलिया के बुशमैन, सीलोन के वेद्दा और हिंदुस्तान के संथाल, भील, गोंड आदि। प्राचीन काल में मनुष्य का जीवन। प्राचीन यहूदी प्राचीन रोम और प्राचीन भारत कहानियों के रूप में। मूसा, अब्राहम वाक्र्स ओरोलियम, नचिकेता और गार्गी, अफरीदी लडक़े की कहानी, फारसी लडक़े की कहानी, जापानी लडक़े की कहानी, स्विटजरलैंड के ग्रामीण लडक़े की कहानी।
तीसरा दर्जा :- प्राचीन काल में मनुष्य का जीवन। बुद्घ की कहानी, अशोक संघमित्रा और महेन्द्र की कहानी, कुमारजीव की कहानी, काबा लोहार की कहानी, थर्मापोली के युद्घ की कहानी, दाराऊस के दरबार की कहानी, ग्रीस के दास की कहानी, सुकरात की कहानी, ओलंपिक खेलों में नौजवान आदमी के भाग लेने की कहानी, मेगास्थनीज की कहानी, पिड्डी पिड्रस और मैराथान जाति की कहानी। न्यूयार्क चीन और रूसी लडक़े की कहानी।
चौथा दर्जा :- (क) समुद्रगुप्त, कालिदास, आर्यभट्ट, अरबी व्यापारियों द्वारा भारत में व्यापार, हर्षवर्धन और हारूण रशीद की कहानी।
(ख) फाहियान और हवेनसांग की कहानियां।
(ग) भारतीय व्यापारियों का जावा और स्याम जाना।
(घ) ईसा प्राचीन ईसाईयों और सीरियन ईसाईयों की कहानियां।
(च) मानव जाति के उद्वारकों यथा-जरथुस्त्र, सुकरात, हुसैन, लिंकन, पास्तिकर, डेबी, युकलिन, फ्लोरेंस नाइटींगेल, टालस्टाय, बुकर, वाशिंगटन, सनयात सेन और गांधी की कहानियां।
पांचवां दर्जा :- हिंदुस्तान और दुनिया में इस्लामी सभ्यता का इतिहास।
(क) पैगम्बर मुहम्मद का जीवन और उनके समय अरब देश की दशा।
(ख) इस्लामी इतिहास के आदि युग के कुछ नेताओं का जीवन चरित्र, उमर, अली, हुसैन, खलीफा अब्दुल अजीज।
(ग) हिंदुस्तान के साथ इस्लामी सभ्यता के संयोग का आरंभ। मुसलमान व्यापारी और मंत्रियों का भारत में आगमन मौहम्मद बिन कासिम और ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती।
(घ) हिंदू धर्म और इस्लाम का परस्पर प्रभाव। मीर खुसरो, कबीर गुरू नानक, अकबर और दाराशिकोह।
(च) दोनों के मिले हुए जीवन का विकास। खाना, पहनावा, आमोद-प्रमोद उत्सव और त्यौहार।
(छ) मिला हुआ राजनीतिक जीवन -शेरशाह, अकबर, टोडरमल।
(ज) भाषा और साहित्य-फारसी का राजभाषा के रूप में विकास।
(झ) कलायें :-हिंदू-मुस्लिम संगीत। मीर खुसरो, तानसेन, स्थापत्य कला, कुतुबमीनार, फतहपुर सीकरी और ताजमहल। राजपत्र, फरमानों और सनदों का सुंदर हस्तलेखन और चारों ओर की सुनहरी चित्रकारी।
(ञ) अल्बरूनी, इब्नबतूता, फीरोज तुगलक, बाबर चांद बीबी, नूरजहां, दादू कबीर, नानक और बाबा फरीद की कहानियां।
(ट) विश्व को इस्लाम की देन। यथा-मानवता और विद्वत्ता के प्रतीक अली, विद्वानों के आश्रयदाता, हारून रशीद, मुस्लिम क्षात्र धर्म के मूर्तिमान स्वरूप सल्लादीन, नीग्रो प्रजातंत्र के प्रवर्तक बहलाल, स्पेन में संस्कृति के संदेशवाहक, बहलाल का हाल बताया जाएगा और साथ में मुस्लिम साम्राज्य का विस्तार कि कौन से सन में कितना मुसलमान राज्य रहा, यह बताया जाएगा।
छठे दर्जे में :- मुगल साम्राज्य का भंग, हिंदू मुस्लिम सभ्यता का ह्रास और भारत में विदेशी व्यापारियों, सिपाहियों और प्रचारकों के आगमन तथा अंग्रेजों का भारत पर अधिकार सिक्खों का उत्थान तथा पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव बताया जाएगा।
सातवें दर्जे में :- वर्तमान जगत का हाल, अर्थात वैज्ञानिक आविष्कार, औद्योगिक क्रांति, वर्तमान युद्घ प्रणाली साम्राज्यवाद का विकास, महायुद्घ, रूस में साम्यवादी शासन कैसा चल रहा है और वह पूंजीवाद से कैसे लड़ रहा है? राष्ट्रसंघ, सत्याग्रह का संसार में स्थान, हिंदुस्तान में राष्ट्रीय जागरण, हिंदुस्तानी का राष्ट्रभाषा के रूप में महत्व और राष्ट्रीय शिक्षा (?) का इतिहास बताया जाएगा।
इस प्रकार सात श्रेणियों का पाठ्यक्रम बनाया गया। वर्धा स्कीम के इस पाठ्यक्रम को देखने से ही स्पष्ट हो जाता है कि इसमें अस्सी प्रतिशत से अधिक मुस्लिम मान्यताओं और सभ्यता को पोषित करने वाली बातों को स्थान दिया गया है। 67 प्रतिशत से अधिक हिंदुओं को बीस प्रतिशत से भी कम में ही संतोष करना पड़ा। भारत को ऐसे दिखाया गया जैसे कि इसका अपना अपने पास कुछ नहीं है। विदेशियों का और मुस्लिमों का विशेष सहयोग और कृपा रही है कि उन्होंने हमें तहजीब सिखा दी। इसलिए गांधी के शिष्य नेहरू के लिए भारत कुछ इस तरह बना था :-
सर जमीने हिंद पर अखलाके आवामे फिराक।
काफिले आते गये और हिंदोस्तां बनता गया।
विदेशियों के काफिलों के नीचे भारत के वेद, उपनिषद, स्मृतियां, रामायण, महाभारत, गीता आदि को यूं दबा दिया गया मानो यह कभी थे ही नहीं, राम और कृष्ण के प्रति गांधी का अनुराग नहीं था। उनकी समाधि पर लिखा – हे राम शब्द भी काल्पनिक जान पड़ता है। जिस राम के अस्तित्व में उन्हें विश्वास ही नही था – वह अंत समय में उन्हें याद कैसे आ गया?
वर्धा स्कीम के बाद भी भारत का विभाजन हो गया। तब 1947 में भारत के पहले शिक्षामंत्री बने मौलाना अबुल कलाम आजाद। उन्होंने इसी शिक्षा योजना को लगभग इसी रूप में लागू कराया। यद्यपि 85 प्रतिशत हिन्दू देश में उस समय था। लेकिन पंद्रह प्रतिशत अल्पसंख्यकों के तुष्टिïकरण के लिए 85 प्रतिशत की बलि दे दी गयी। क्योंकि इंसाफ का तराजू इस समय मौलाना कलाम के हाथ में था। भानुमति के कुनबे की तरह का संविधान और उसी तरह की शिक्षानीति लागू की गयी। इसका परिणाम आया कि तेजोमहालय मंदिर (ताजमहल) दिल्ली में प्राचीन काल के सुप्रसिद्घ गणितज्ञ वराह मिहिर की मिहिरावली (महरौली) स्थित वेधशाला (कुतुबमीनार) आज कल भारत में स्थायी रूप से मुस्लिम कला के बेजोड़ नमूने माने जाने लगे हैं। जब गलत पढ़ोगे और अपने बारे में ही गलत धारण बनाओगे तो परिणाम तो ऐसे आने ही हैं। एक और परिणाम उदाहरण के रूप में पेश है। यूपी प्रांत के पहले शिक्षामंत्री बाबू संपूर्णानंद मथुरा के एक कालेज में गये थे। उनके स्वागत में कुछ मारवाडिय़ों ने राणा प्रताप का नाटक दिखाया। देखने के बाद जनाब की भौहें तन गयीं, और तुनक कर आयोजकों से बोले-तुम्हें जमाने की रफ्तार के साथ चलना नहीं आता। (उनका आशय था कि हमने वर्धा स्कीम के अनुसार जो तुम्हें बताना समझाना चाहा है उसे मानते क्यों नहीं हो?) अब भी वही मूर्खता दिखा रहे हो? वही दकियानूसी की बातें! यह नहीं सोचते कि कौन बैठा है?
संस्कृत के कवि ने कहा है :-
यत्र अपूज्य पूज्यन्ते तत्र दुर्भिक्ष, मरणं, भयं। अर्थात जहां नालायकों का सम्मान होता है, वहां दुर्भिक्ष, मरण और भय का साम्राज्य होता है। यही कारण है आज के भारत की बहुत सी समस्याओं का। जिसकी वजह से यहां झूठ की जय जयकार हो रही है और सच का गला घोटा जा रहा है। फिर भी हम कहे जा रहे हैं-मेरा भारत महान। भारत महान तो जरूर है लेकिन भारत महान की बात कहने वाले ये नहीं जानते कि भारत की महानता को उन्होंने कितना दूषित और विद्रूपित कर दिया है। संस्कृति नाशकों का सम्मान करना जिस दिन यह देश छोड़ देगा, उसी दिन सचमुच मेरा भारत महान हो जाएगा।