हिन्दू धर्म में एक ईश्वर के अतिरिक्त वृक्ष आदि की पूजा* भाग -2
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डॉ डी के गर्ग
हिन्दू धर्म में पशु पक्षी पूजा :
सभी जीव अपने अपने कर्म का परिणाम ईश्वर की आज्ञा से भोगते है। पशु पक्षी ईश्वर का मानव के लिया उपहार है जो उसकी सहायता करते है। गौ का दूध अमृत सामान है इसीलिए गौ को माता कहा है ,इस अलोक में गौ पूजा का मतलब गौ पालन और गौ रक्षा से है ना की गौ की तस्वीर पूजने और आरती उतरने से। ऐसी प्रकार अन्य पशु पक्षियों की भी अपनी अपनी जगह महत्ता है।
मनुष्य को ऐसे सभी मंदिरो और पंडो का त्याग करना चाहिए जो मांसाहार और पशु बलि की बात करते है। वेदों में मांस भक्षण का स्पष्ट निषेध किया गया हैं। अनेक वेद मन्त्रों में स्पष्ट रूप से किसी भी प्राणि को मारकर खाने का स्पष्ट निषेध किया गया हैं। जैसे
हे मनुष्यों ! जो गौ आदि पशु हैं वे कभी भी हिंसा करने योग्य नहीं हैं – यजुर्वेद १।१
वह लोग जो नर और मादा, भ्रूण और अंड़ों के नाश से उपलब्ध हुए मांस को कच्चा या पकाकर खातें हैं, हमें उनका विरोध करना चाहिए- अथर्ववेद ८।६।२३
निर्दोषों को मारना निश्चित ही महापाप है, हमारे गाय, घोड़े और पुरुषों को मत मार। -अथर्ववेद १०।१।२९
हे मनुष्य तुम दो पैर वाले अर्थात अन्य मनुष्यों एवं चार पैर वाले अर्थात पशुओं कि भी सदा रक्षा कर। – यजुर्वेद 14 /8
चारों वेदों में दिए अनेक मन्त्रों से यह सिद्ध होता है कि यज्ञों में हिंसा रहित कर्म करने का विधान है एवं मनुष्य का अन्य पशु पक्षियों कि रक्षा करने का स्पष्ट आदेश है।
हिन्दू धर्म में वृक्ष की पूजा : अब मुख्य विषय पर आते है की हिन्दू धर्म में वृक्ष पूजा का क्या भावार्थ है ?
पौराणिक मान्यताये : पहले कुछ वृक्षों के विषय में क्या पौराणिक कहते है ये समझते है :
१ पीपल: पीपल के वृक्ष में जड़ से लेकर पत्तियों तक देवी-देवताओं का वास होता है. पीपल के वृक्ष में जड़ से लेकर पत्तियों तक तैंतीस कोटि देवताओं का वास होता है और इसलिए पीपल का वृक्ष प्रात: पूजनीय माना गया है। उक्त वृक्ष में जल अर्पण करने से रोग और शोक मिट जाते हैं।
२ बरगद या वटवृक्ष : बरगद में ब्रह्मा, विष्णु और शिव का वास माना गया है. वट वृक्ष में भगवान भोलेनाथ वास करते हैं. वट वृक्ष के पूजन से अक्षय पुण्य फल प्राप्त होता है. प्रत्येक महीने में दोनों पक्ष की त्रयोदशी तिथि को बरगद के पेड़ की पूजा करना शुभ माना जाता है. बरगद के पेड़ के नीचे शिवलिंग रखकर पूजा करने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है.
३ खेजड़ी का पेड़: दशहरे के दिन शमी के वृक्ष की पूजा करने की परंपरा रही है. लंका विजय से पूर्व भगवान राम द्वारा शमी के वृक्ष की पूजा की गयी . पांडवों द्वारा अज्ञातवास के अंतिम वर्ष में गांडीव धनुष इसी पेड़ में छुपाए जाने के उल्लेख मिलते हैं.
४ बिल्व वृक्ष: इसे भगवान शिव का रूप ही माना जाता है व मान्यता है कि इसके मूल यानि जड़ में महादेव का वास है तथा इनके तीन पत्तों को जो एक साथ होते हैं उन्हे त्रिदेव का स्वरूप मानते हैं परंतु पाँच पत्तों के समूह वाले को अधिक शुभ माना जाता है, अतः पूज्य होता है.
५ अशोक का पेड़: मान्यता है कि अशोक वृक्ष घर में लगाने से या इसकी जड़ को शुभ मुहूर्त में धारण करने से मनुष्य को सभी शोकों से मुक्ति मिल जाती है.
६ नारियल का वृक्ष: पूजा के दौरान कलश में पानी भरकर उसके ऊपर नारियल रखा जाता है. यह मंगल प्रतीक है. नारियल का प्रसाद भगवान को चढ़ाया जाता है.
७ केले का पेड़: भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी को केले का भोग लगाया जाता है. केले के पत्तों पर प्रसाद बांटा जाता है.
८ तुलसी :मान्यता है कि जब भगवान विष्णु को कुछ भी भोग अर्पित करते हैं तब तुलसी की पत्तियां जरूर उस भोग में शामिल करनी चाहिए अन्यथा उन्हें भोग स्वीकार्य नहीं होता है।
विश्लेषण : उपरोक्त सभी मान्यताये अज्ञानियों की है ,जो अवैज्ञानिक और प्रामाणिक नहीं है ,सिर्फ जबरन अंधविस्वास में धकेलने का प्रयास है। इससे अनुयायी को शर्मंदगी महसूस करते है , हम यहाँ कुछ वृक्षो के महत्व समझने का प्रयास करेंगे :
नारियल के गुण : नारियल एंटी-डायरियल ,ऐन्टीपाइरेटिक (बुखार से राहत देने वाला) ,यह एंटी-इंफ्लेमटरी की तरह काम करता है यानि की शरीर के दर्द और सूजन की वजह को कम करता है) और यह एक एंटी-डाययूरेटिक यानि मूत्र कम करता है । नारियल एक जादुई भोजन है इसमें कार्ब्स कम होते हैं, इसलिए यह कार्ब युक्त स्नैक्स का सबसे अच्छा विकल्प है।इसमें पोटेशियम, सोडियम, मैंगनीज, विटामिन बी, तांबा और आयरन जैसे खनिज और पोषक तत्व होते हैं। मैंगनीज हमारी हड्डियों के स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है। तांबा और आयरन लाल रक्त कोशिका के स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद करते हैं।नारियल के गूदे में वसा (मध्यम-श्रृंखला ट्राइग्लिसराइड्स) की उच्च मात्रा होती है जो तत्काल ऊर्जा प्रदान करती है और मोटे लोगों में वसा हानि को बढ़ावा देती है।
2 पीपल : पीपल के पेड़ में कई औषधीय गुण छुपे हुए हैं. इस पेड़ की पत्तियों से लेकर, फल और जड़ तक सभी हिस्से गुणकारी हैं। किसी जहरीले जीव-जंतु द्वारा काट लेने पर अगर समय पर कोई चिकित्सक मौजूद नहीं हो, जबपीपल के पत्ते का रस थोड़ी-थोड़ी देर में पिलाने पर विष का प्रभाव उतरने लगता है। एक वैज्ञानिक अध्ययन के अनुसार यह देखा गया कि पीपल के पत्ते के अर्क में ऐसे विशेष गुण पाए जाते हैं, जो ब्रोंकोस्पास्म (bronchospasm – अस्थमा की एक स्थिति) पर प्रभावी असर दिखा सकता है।
3 वट : अकाल की स्थिति में इसके पत्ते जानवरों को खिलाए जाते हैं। इसके कच्चे फल को छाया में सुखाकर उसको पीसकर दो चम्मच की मात्रा में 150 मिली दूध के साथ पीने से कम शक्ति बढ़ती है।आयुर्वेद में इसे दैवीय उपहार के रूप में माना गया है। बरगद की जड़ें मिट्टी को पकड़कर रखती हैं। पत्तिया हवा को शुद्ध करती हैं। बरगद की तासीर ठंडी होती है, जो कफ और पित्त की समस्या को दूर करता है।
3)केले के पत्ते में पॉलीफेनोल्स का समृद्ध स्रोत होता है जो कैंसर कोशिकाओं के खिलाफ काम कर सकता है। ताजा केले के पत्ते का रस सोरायसिस (त्वचा पर खुजली, पपड़ीदार चकत्ते) से पीड़ित लोगों को राहत दे सकता है। सुबह नियमित रूप से केले के पत्ते का रस पीने से खांसी और सर्दी कम हो सकती है।केले के पत्तों में कई तरह के एंटीऑक्सीडेंट होते हैं, जो कि पत्तेदार सब्जियों में पाए जाते हैं।
4) बेलपत्र में एंटीऑक्सीडेंट गुण पाए जाते हैं, जो दिल को खतरनाक बीमारियों से बचाने का काम करते हैं. बेलपत्र खाने से दिल हेल्दी रहता है. हार्ट अटैक और हाई ब्लड प्रेशर का खतरा भी कम रहता है. अगर बेलपत्र को रोजाना सुबह खाली पेट खाया जाए, तो दिल से जुड़ी बीमारियों के खतरे को काफी हद तक कम किया जा सकता है.
5) खेजड़ी का पेड़: इसकी छाल कड़वी, कसैली, और कृमिनाशक होती है। इसे बुखार, त्वचा रोग, प्रमेह, उच्च रक्तचाप, कृमि और वात-पित्त के प्रकोप से होने वाले रोगों में प्रयोग किया जाता है। शमी की पत्तियों को गो मूत्र अथवा धि में पीस कर प्रभावित स्थानों पर बाह्य रूप से लेप किया जाता है। इसकी लकड़ी मजबूत होती है जो फर्नीचर बनाने ,किसान के लिए हल बनाने के काम आती है। अकाल के समय रेगिस्तान के आदमी और जानवरों का यही एक मात्र सहारा है। सन १८९९ में दुर्भिक्ष अकाल पड़ा था जिसको छपनिया अकाल कहते हैं, उस समय रेगिस्तान के लोग इस पेड़ के तनों के छिलके खाकर जिन्दा रहे थे।
वृक्ष पूजा का तात्पर्य : वृक्षों के औषोधी के गुणों का उल्लेख करने का उद्देश्य ये बताना है की इनको उगाना ,सवारना , चिकित्सा के लिए प्रयोग करना ,पर्यावरण की रक्षा के लिए देखभाल करना अत्यंत आवश्यक है। इनके गुणों के कारण ही इन्हे पूजनीय मना गया है लेकिन पूजा का अर्थ ये नहीं की वृक्ष के आगे दीप जलाया जाये , कलावा बंधे ,इसके पत्ते तोड़कर बहा दे आदि। इसे तो अज्ञानता का प्रदर्शन ही कहा जायेगा। वृक्ष पूछा का भावार्थ है इनको काटा ना जाये , इनका और विस्तार करे ,इनसे औषधि बनाये।