मनुष्य की कृति ही उसकी स्मृति बनती है:-
मिट्टी सबको खा गई,
रावण बचे ना राम।
पीछे दो ही रह गये,
अच्छे बुरे दो काम॥2407॥
ब्रह्म की उपस्थिति के संदर्भ में
” शेर ”
तेरी खुशबू से तेरे होने का,
अहसास होता है।
जैसे पौ फटने पर,
सूर्य का आभास होता है॥2408॥
परमपिता परमात्मा के स्वरूप के संदर्भ में-
शरणागति होकर मिले,
जीव को परमानन्द।
तेरे स्वरूप में छिप रहे,
सत् – चित और आनन्द॥2409॥
शरणाग गति से यहां अभिप्रिय है अनन्य भक्ति।
अन्त:करण की पवित्रता के संदर्भ में –
खुद से आंखें मिलाना,
आसान नहीं होता।
जब तक दिल का आइना,
साफ नहीं होता॥2410॥
"शेर"
तेरी महानता का पता तेरी रचना से चलता है –
तेरी रोशनी से रोशन,
सारा जहां है।
देखी तेरी खुदाई,
तो तू ही महान है॥2411॥
विरह वेदना के संदर्भ में “शेर” –
इस सूने से जहां में,
कोई हमदम नहीं मिलता।
तेरा दीदार करा दे,
ऐसा गम नहीं मिलता॥2412॥
शिखर पर पहुंचने के संदर्भ में “शेर”-
शिखर पर पहुंचने के लिए,
तप करना पड़ता है।
कोयला हीरा बन जाये,
खान में रहना पड़ता है॥2413॥
"दोहा"
दोषो की पराकाष्ठा के संदर्भ में-
दोषो की पराकाष्ठा,
करती शर्म विहीन।
वाणी पर संयम नहीं,
नर मर्यादाहीन॥2414॥
उद्गगों के दुष्परिणामों के संदर्भ में –
भरने में लगे जिंदगी,
पल में होवे घाव।
मुरझाता सद्भाव है,
लहलाता दुर्भाव॥2415॥
मन की शान्ति के संदर्भ में-
साधन से सुविधा मिले,
साधन से आनन्द।
मन की शान्ति तब मिले,
खुश हो सच्चिदानन्द॥2416॥
भगवान भक्त की को हर आवश्यक सुनते हैं-
कौन कहता है प्रभु !
सुनता नहीं पुकार।
हृदय से निकली हुई,
फौरन सुन गुहार॥2417॥
क्रमशः