वरदान या श्राप कितने सच ,कितने अविज्ञानिक ?*

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Dr D K Garg
भाग-2
श्राप के बाद इसके उलट वरदान पर बात करते है ।इस विषय में मुख्य प्रश्न है की वरदान किसे कहते है और क्या वरदान वास्तव में फलीभूत होते है ?

पौराणिक साहित्य में उपलब्ध वरदान की कुछ बानगी देखो :
१ भगवान शंकर द्वारा भस्मासुर की तपस्या से खुश होकर उसको वरदान दिया गया की ’जिसके सिर पर मैं हाथ रख दोगे, वह भस्म हो जायेगा ।’
२ दुर्वासा ऋषि ने कुन्ती को वरदान में एक मंत्र देते हुए कहा कि इसके द्वारा तू जिस देवता का आह्वान करेगी, वह तेरे समीप उपस्थित हो जाएगा ।
३ मंत्र शक्ति से विवश होकर सूर्यदेव कुन्ती के सामने प्रकट हो गए और उसे कवच और कुण्डल से सज्जित पराक्रमी पुत्र होने का वरदान दे दिया । कुन्ती का वही पुत्र कर्ण है ।
४ यह मान्यता है कि जब हनुमानजी माता सीता की खोज में लंका पहुंचे और उन्होंने श्री राम की अंगूठी सीता को दी, तब प्रसन्न होकर माता सीता ने हनुमानजी को अजर अमर होने का वरदान दिया था.
५ भगवान शिव ने दिया ऋषि लोमश को वरदा। दधीचि को वरदान ,भृंगी ऋषि को वरदान आदि ।

वरदान देना ,आशीर्वाद देना और शुभ इच्छा करना ,इन सभी में अंतर भी समझ लेना चाहिए। वरदान पुराण और प्राचीन क्थाकारो के दिमाक की उपज है की किसी ऋषि ने ,शिव ने या अन्य देवता ने अपनी सेवा या किसी घोर तपस्या से खुश होकर या कहो की चापलूसी से खुश होकर उसको वरदान दे दिया जैसे की अमर रहो ,पुत्रवती हो, महाबली हो जाओ आदि और कभी कभी वरदान देकर पछताना भी पड़ा है जैसे भस्मासुर की कथा।
ये सभी अज्ञानियो के कपोल कल्पनाएं है जो ईश्वरीय नियमो और वेद विरुद्ध है ।
आशीर्वाद देना ,शुभ इच्छा व्यक्त करना ठीक है ,ये मानव का स्वभाव है और दूसरे को उत्साहित करने के लिए पुरस्कार है
मनुस्मृति में लिखा है:- अभिवादन शीलस्य नित्य वृद्धोपसेविनः। चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयु र्विद्या यशो बलम।।

हिंदी अर्थ – जो व्यक्ति सुशील और विनम्र होते हैं, बड़ों का अभिवादन व सम्मान करने वाले होते हैं तथा अपने बुजुर्गों की सेवा करने वाले होते हैं। उनकी आयु, विद्या, कीर्ति और बल इन चारों में वृद्धि होती है।
जब माता-पिता ,बुजुर्ग , बड़े आशीर्वाद देते हैं कि बड़ी उम्र वाले हो, खूब फलों-फूलो, आगे बढ़ो, उन्नाति करो, सुखी रहो। ऐसा वरदान ठीक है।
भगवान का मानव को मनुष्य जन्म देना ही सबसे बड़ा वरदान है। मनुष्य रूप बहुत अच्छे भाग्य से प्राप्त होता है।ध्यान रहे की सृष्टि नियम के अनुकूल वरदान भी होता है और श्राप भी होता है।एक मनुष्य था, वह गड़बड़ यानी बुरे काम करता था, उसको श्राप दिया – तू अभी-अभी यहाँ पर सुअर बन जा, तू अभी-अभी इसी जन्म में कुत्ता बन जा। ऐसा कभी नहीं होगा। व्यक्ति इसी जन्म में तो कुत्ता नहीं बन सकता। हां ,मरने के बाद भले ही वह बन जाए। भगवान उसको कर्म के अनुसार दंड दे देंगे।ये ईश्वर का विधान है।
वरदान को ऐसे व्यक्त किया जाता है जैसे की वरदानी के हाथ में सब कुछ हो,इसी तरह टोटके ,तंत्र मंत्र से ठीक करने वाले पाखंडी है , यहाँ एक मुर्ख है तो दूसरा धूर्त है।
आपको कोई भी अमर होने का वरदान नहीं दे सकता। क्योंकि आत्मा तो वैसे ही अजर अमर अविनाशी है।
अवतारवाद और अपने को भगवान का स्वरूप कहने वाले बाबा लोग वरदान की कहानियों का भरपूर लाभ उठा रहे है, एक हाथ से आशीर्वाद देते हुए अपनी फोटो का प्रचार कर रहे है की बाबा से वरदान मांग लो।ये वरदानी बाबा आपको धनी बनाने का सपना दे रहे है,और खुद कगांल बनकर भीख मागं रहे हैं,सुगर, दमा के मरीज है ,अल्प आयु में प्राण त्याग रहे है ,दूसरे को क्या शतायु बनाएंगे।

आपको अपनी आँखों से चश्मे को उतार कर अज्ञानता को दूर फैककर वैदिक धर्म और विज्ञानं को स्वीकार करना होगा ,यही मानवता के लिए सबसे बड़ा वरदान है।

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