स्वतंत्रता मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है के उद्घोषक — बाल गंगाधर तिलक

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अनन्या मिश्रा

देश के प्रमुख नेता, समाज सुधारक, स्वतंत्रता सेनानी लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का 1 अगस्त को निधन हो गया था। उन्होंने सबसे पहले ब्रिटिश राज से भारतीयों के लिए पूर्ण स्वराज की मांग उठाई थी।

आज यानी की 1 अगस्त को लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का निधन हो गया था। वह देश के प्रमुख नेता, समाज सुधारक, स्वतंत्रता सेनानी थे। बता दें कि बाल गंगाधर तिलक के नाम के आगे जो ‘लोकमान्य’ लगाया जाता है। यह ख्याति बाल गंगाधर ने खुद अर्जित की थी। उन्होंने ही सबसे पहले ब्रिटिश राज के दौरान पूर्ण स्वराज की मांग को उठाया था। इसी वजह से तिलक को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का जनक भी कहा जाता ह।
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के नायक बाल गंगाधर तिलक ने ‘स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है’ का नारा दिया था। वह स्वतंत्रता सेनानी और लोकप्रिय नेता ही नहीं बल्कि इतिहास, संस्कृत, हिंदू धर्म, गणित और खगोल विज्ञान जैसे विषयों के विद्धान भी थे। तिलक का पूरा जीवन आदर्श है। आइए जानते हैं लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की डेथ एनिवर्सरी के मौके पर उनके जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में…

महाराष्ट्र के रत्नागिरी में 13 जुलाई 1856 को लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का जन्म हुआ था। उनके पिता का नाम गंगाधर रामचंद्र तिलक था। जो संस्कृत के विद्वान और शिक्षक थे। वहीं तिलक की माता का नाम पार्वती बाई गंगाधर था। साल 1871 में तिलक का विवाह तपिबाई नामक कन्या से हुआ था। तपिबाई का विवाह के बाद नाम सत्यभामा हो गया था।

तिलक के पिता संस्कृत के विद्वान थे। ऐसे में तिलक भी पढ़ाई में निपुण होने के साथ ज्ञानी थे। जब बाल गंगाधर तिलक के पिता का ट्रांसफर पूणे हुआ तो तिलक ने पूणे के एंग्लो वर्नाकुलर स्कूल से शिक्षा प्राप्त की। वहीं 16 साल की उम्र में तिलक के सिर से माता का साया उठ गया और यहीं से उनके असली संघर्ष की कहानी शुरू हुई। साल 1877 में बाल गंगाधर तिलक ने पुणे के डेक्कन कॉलेज से संस्कृ्त और गणित विषय की डिग्री प्राप्त की। जिसके बाद मुंबई के सरकारी कॉलेज से LLB की पढ़ाई पूरी की। तिलक आधुनिक शिक्षा प्राप्त करने वाले पहले भारतीय युवाओं में शामिल थे।

अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद तिलक एक प्राइवेट स्कूल में अंग्रेजी और गणित के शिक्षक बन पढ़ाने लगे। लेकिन स्कूल के अन्य शिक्षकों से मतभेद के चलते साल 1880 में तिलक ने पढ़ाना छोड़ दिया। बता दें कि वह अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली के आलोचक थे। ब्रिटिश विद्यार्थियों की तुलना में भारतीय विद्यार्थियों के हो रहे दोहरे व्यवहार का वह विरोध करते थे। इसके अलावा उन्होंने समाज में फैली छुआछूत के खिलाफ भी आवाज उठाई थी।

इसके बाद तिलक ने भारत में शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए दक्खन में शिक्षा सोसायटी की स्थापना की। वहीं मराठी भाषा में उन्होंने मराठा दर्पण और केसरी नामक दो अखबारों की शुरूआती की, यह दोनों ही अखबार उस दौरान काफी फेमस हुए थे। तिलक ने स्वतंत्रता आंदोलन का हिस्सा बन अंग्रेजी हुकूमत का विरोध किया। साथ ही ब्रिटिश राज से भारतीयों को पू्र्ण स्वराज देने की मांग की। समाचार पत्र केसरी में छपने वाले लेखों के कारण बाल गंगाधर तिलक को कई बार जेल यात्रा भी करनी पड़ी। अपने प्रयासों के चलते बाल गंगाधर तिलक को ‘लोकमान्य’ की उपाधि से नवाजा गया था।

वहीं 1 अगस्त 1920 में स्वतंत्रता सेनानी और लोकप्रिय नेता लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने सदा के लिए अपनी आंखें मूंद लीं।

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